पटना: राजनीतिक रूप से देश के सबसे उर्वर राज्यों में शामिल बिहार में राजनीतिक उठापटक (Political Upheaval in Bihar) कुछ इस कदर होती है कि बरबस ही लोगों का ध्यान उस उठापटक पर चला जाता है. दरअसल अभी तक लार्जेस्ट पार्टी के रूप में राज्य में दूसरे नंबर पर काबिज राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal), असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम में इस कदर सेंध लगाई कि बिहार की पूरी पॉलिटिक्स सीमांचल पर जाकर केंद्रित हो गई है. हालांकि राजद में शामिल होने के बाद इन विधायकों ने अभी तक खुलकर कुछ भी नहीं कहा है लेकिन राजनीति पर पैनी नजर रखने वालों की माने तो इसका आने वाले वक्त में बिहार की राजनीति पर गहरा असर पड़ सकता है.
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मुस्लिम वोट बैंक पर नजर : दरअसल राजद ने उस वोट बैंक पर अपनी पैनी नजर को बना के रखा हुआ है जो परंपरागत रूप से उसका साथ देता रहा है. अगर सीमांचल की बात करें तो सीमांचल के कई ऐसे लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र हैं जहां पर मुस्लिम वोट बैंक चुनाव के परिणाम को उलट-पुलट करने का माद्दा रखते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की करीब 11 करोड़ की आबादी में 16.9 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. राज्य में 13 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां 12 से 67% मुस्लिम वोटर हैं.
सीमांचल में मुस्लिम मतदाता भाग्यविधाता : इनमें किशनगंज ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा 67% मुस्लिम वोटर हैं, इसके बाद अगर देखा जाए तो कटिहार में 38%, अररिया में 32%, पूर्णिया में 30%, मधुबनी में 24%, दरभंगा में 22%, सीतामढ़ी में 21%, पश्चिम चंपारण में 21% और पूर्वी चंपारण में 20% मुस्लिम वोटर हैं. बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं इनमें कम से कम 36 ऐसी सीटें हैं जहां पर मुस्लिम वोटर जीत और हार का निर्णय करने की ताकत रखते हैं. इन 36 सीटों में 20 से 40% मुस्लिम वोटर हैं जबकि ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां 40% मुस्लिम वोटर हैं और यह किसी के भी राजनीतिक भविष्य को तय करने का माद्दा रखते हैं.
RJD ने AIMIM को तोड़ा : राजनीतिक विशेषज्ञ की माने तो तेजस्वी ने एआईएमआईएम के 5 में से 4 विधायकों को तोड़कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. दरअसल पिछले विधानसभा चुनाव में सीमांचल की ज्यादा सीटों को राजद ने तब महागठबंधन में शामिल कांग्रेस को दे दिया था. जहां पर महागठबंधन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, क्योंकि सीमांचल में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है. इसलिए राज्य की नजर इस क्षेत्र पर हमेशा से ही लगी रही. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का जो वोट है, वह अल्पसंख्यक ही है और राजद को कहीं ना कहीं इस बात का भी डर था कि अगर ओवैसी की पार्टी आगे बढ़ती है तो उससे अल्पसंख्यक वोट बंट सकता है.
एआईएमआईएम का हुआ बंटाधार : हालांकि गौर करने वाली बात यह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने ग्रैंड यूनाइटेड सेकुलर फ्रंट में शामिल होकर जनता के बीच अपनी दावेदारी को पेश किया था. फ्रंट का नेतृत्व राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा कर रहे थे. इसमें एआईएमआईएम के अलावा मायावती की बसपा, देवेंद्र प्रसाद यादव की समाजवादी जनता दल के अलावा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी एवं जनवादी पार्टी सोशलिस्ट शामिल थी. लेकिन चुनावी नतीजे कुछ इस कदर आए जिससे यह तस्वीर साफ हो गई कि यह फ्रंट मुकाबले में कहीं टिकने लायक नहीं था. सबसे बड़ी बात यह कि विधानसभा में जीत कर आने वाले एआईएमआईएम के पांचों विधायक कभी राष्ट्रीय जनता दल में हुआ करते थे. इस बात की तस्दीक खुद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने की थी जब उन्होंने कहा था कि इनकी घर वापसी हो गई है. हालांकि अपनी पार्टी छोड़कर राजद में शामिल होने के बाद इन चारों विधायकों ने अभी तक कोई भी आधिकारिक रूप से बयान नहीं दिया है.
प्रदेश की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार संजय उपाध्याय कहते हैं- 'सीमांचल की राजनीति मुख्य रूप से मुस्लिमों पर केंद्रित है, हालांकि वहां हिंदुओं की भी आबादी है. अकेला किशनगंज एक ऐसा जिला है, जहां 70% आबादी है. यह लद्दाख के बाद दूसरी जनसंख्या घनत्व वाला जिला है इसके अलावा अररिया, कटिहार और पूर्णिया ऐसे जिले हैं. जहां मुख्य रूप से मुस्लिमों की आबादी है. सीमांचल की मुस्लिम राजनीति अवधि समाप्त हो गई और खास करके राजद ने उसे समेट लिया है. अब वहां ओवैसी का कुछ नहीं रहा एक तरह से यह कहे कि ओवैसी का चारमीनार ध्वस्त हो गया है. अब उनके पास केवल एक अध्यक्ष रह गया है और वह अध्यक्ष कितने दिनों तक रहते हैं यह सोचने वाली बात है'
AIMIM की राजनीति पर लगा ग्रहण : यह फिलहाल बिहार का बहुत बड़ा घटनाक्रम है जिसकी उम्मीद लोगों ने नहीं की थी. लेकिन राजनीतिक प्रेक्षक तब से ही उम्मीद कर रहे थे जब से वीआईपी के 3 विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया था और बीजेपी विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी.अब विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी 80 का संख्या बल लेकर राजद हो गया है. लाजमी है कि यह कहीं ना कहीं से बहुत बड़ा पॉलिटिकल गेम है जो आम लोगों के समझ में नहीं आ रहा है.
RJD बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी : राजद विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. वहीं, राजनीतिक विश्लेषक राजेश भट्ट कहते हैं- बहुत दिनों से नूरा-कुश्ती का यह खेल चल रहा था. उसका पटाक्षेप हुआ है और नई स्थिति सामने आई है. राजद नंबर वन पार्टी के रूप में उभरी है. राजनीतिक पंडित कह रहे थे कि खेला होवे. यह अवश्य समझा जाना चाहिए कि बिहार में भी खेला होगा. खेल के पीछे कौन है ? आगे कौन है ? यह देखने वाली बात होगी. यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं हो रही है कि खेल के पीछे सत्ता में बैठे 16 साल से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. जिन विचारधारा को लेकर एआईएमआईएम को वोट मिला था, वह विचारधारा विलोपित हो गई। आने वाले दिनों में बिहार में भी वैसा ही होगा जैसे महाराष्ट्र में हुआ है। वक्त कितना लगेगा यह कहना अभी मुश्किल है.'
बिहार में ओवैसी के लिए बड़ी चुनौती : राजनीतिक विश्लेषक राजेश भट्ट कहते हैं राजनीति में नया शब्द आ गया है और वह है घर वापसी जो आ गया वह मेरा और जो नहीं आया वह दूसरे का. तेजस्वी जो कह रहे हैं वह गलत नहीं कह रहे हैं, वह घर वापसी ही कहेंगे. लेकिन जिन विचारधारा को लेकर यह आगे बढ़े थे विचारधारा का विलोपित होना देखा गया है. राजेश कहते हैं कि अख्तरुल इमान ने कई बड़ी-बड़ी बातें कही है. उन्होंने कहा है कि जिन विचारधारा को लेकर, बिहार के पिछड़ेपन को लेकर, वंचितों के हक को लेकर, बाढ़ की समस्या को लेकर जनता ने उन्हें चुना था इनलोगों ने उनको धोखा दिया है. उनका कहना स्वभाविक था उनको बड़ी क्षति हुई है उनकी पार्टी ही ध्वस्त है. ओवैसी के लिए बड़ी चुनौती सामने खड़ी हो गई है.
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