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सवाल : बिहार में शराबबंदी कानून पर मद्य निषेध विभाग सच्चा या बिहार पुलिस मुख्यालय?

बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Prohibition Law In Bihar) पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पा रहा है. शराबबंदी कानून बिहार में पूरी तरह से फेल है और बिहार में शराबबंदी को लेकर अराजकता वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है. हालांकि पिछले 6 महीने में अब तक एंटी लिकर टास्क फोर्स के द्वारा 40,074 लोगों की गिरफ्तारी की गई है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Aug 5, 2022, 10:14 PM IST

औरंगाबाद: बिहार में 6 साल बीत जाने के बावजूद भी बिहार में शराबबंदी कानून पूर्ण रुप से लागू (Liquor prohibition law not fully implemented in Bihar) नहीं हो पा रहा है. यानी की साल 2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बावजूद भी बिहार में शराबबंदी पूर्ण रुप से लागू नहीं हो पा रही है. आए दिन शराबबंदी कानून के तहत लोगों की गिरफ्तारी हो रही है. भारी मात्रा में शराब भी बरामद भी हो रही है. यही नहीं अवैध रूप से बिकने वाली जहरीली शराब के वजह से बिहार में अब तक सैकडों लोगों की मौत हो चुकी है. बिहार में शराबबंदी का हाल यह हो गया है कि बिहार पुलिस मुख्यालय और मद्य निषेध विभाग कहीं ना कहीं आरोप-प्रत्यारोप करते नजर आ रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Explainer: बिहार में शराबबंदी कानून के नाम पर कब तक जारी रहेगा मौत का तांडव?

बिहार में शराबबंद कानून पर लग रहा प्रश्नचिन्ह : मद्य निषेध विभाग (Bihar Prohibition Department) बिहार में शराबबंदी कानून के तहत मद्य निषेध विभाग के मांग पर बिहार पुलिस मुख्यालय के द्वारा शराब बंदी कानून को सख्ती से लागू करवाने को लेकर जनवरी 2022 में एंटी लिकर टास्क फोर्स का गठन किया गया था. जिसके तहत 233 एंटी लिकर टास्क फोर्स बनाया गया था जिसमें करीबन 3000 पुलिसकर्मी की तैनाती की गई थी. पुलिस मुख्यालय के अनुसार एंटी लिकर टास्क फोर्स के गठन के बाद पिछले 6 महीने में अब तक एंटी लिकर टास्क फोर्स के द्वारा 40074 लोगों की गिरफ्तारी की गई है. मध निषेध कानून के तहत जुलाई माह तक कुल 73413 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. जिसमें से एंटी लिकर टास्क फोर्स के द्वारा 40074 लोगों की गिरफ्तारी की गई है.

'शराबबंदी कानून बिहार में पूरी तरह से फेल है और बिहार में शराबबंदी को लेकर अराजकता वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है. बिहार पुलिस और मद्य निषेध विभाग में तालमेल सही से नहीं बैठ रहा है. जिसका कारण यह है कि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप और फेंका फेकि वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है. जिस तरह से पुलिस मुख्यालय के द्वारा आंकड़ा दिया गया है और एंटी लिकर टास्क फोर्स पर मध्य निषेध विभाग ने जो आरोप लगाया है. इससे यह पता चल रहा है कि सरकार के ही दोनों अंग है होने के बावजूद भी इनमें तालमेल की काफी कमी है.' - पूर्व आईपीएस अमिताभ दास

बिहार में शराबबंदी कानून : एंटी लिकर टास्क फोर्स मद्य निषेध के अंतर्गत काम कर रही है. जिस वजह से मद्य निषेध के द्वारा हर टीम पर लगभग 50,000 रुपए का खर्च आ रहा है. अब मद्य निषेध विभाग की माने तो एंटी लिकर टास्क फोर्स सही काम नहीं कर पा रही है. जिस वजह से उन्हें मिलने वाली सुविधाएं जैसे फोर व्हीलर टू व्हीलर और मोबाइल की सुविधा को वापस लेने का निर्णय लिया गया है. ऐसे में कहीं ना कहीं बिहार पुलिस और मध्य निषेध के बीच में तनातनी देखने को मिल रहा है. सवाल यह उठ रहा है कि कौन सच्चा कौन झूठा है.

एंटी लिकर टास्क फोर्स भी शराबबंदी लागू कराने में नकाम : दरअसल मद्य निषेध विभाग के समीक्षा के बाद निर्णय लिया गया है कि बिहार में शराबबंदी के अभियान को और सख्ती से लागू करने के लिए पूरे बिहार में 220 एंटी लिकर टास्क फोर्स जो बनी थी वह खरी नहीं उतर रही है. मद्य निषेध विभाग के अनुसार बीते 6 महीने में टास्क फोर्स ने बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है. शराब माफिया के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है. मद्य निषेध विभाग में हुई समीक्षा में यही नतीजे सामने आने के बाद मद्य निषेध उत्पाद और निबंधन विभाग ने एलटीएफ को कार्रवाई करने के लिए दिए गए चार पहिया वाहन बाइक और मोबाइल को वापस ले लिया है.

जहरीली शराब से कई लोगों की गई जान : दरअसल मद्य निषेध के संयुक्त आयुक्त श्री कृष्ण पासवान ने सभी सहायक उत्पाद आयुक्त मध्य निषेध और सभी अधीक्षक के मध्य निषेध को ईमेल द्वारा पत्र भेजकर लिखा गया है कि एलटीएस के प्रभाव में कमी और विभाग की सीमित बजट संसाधन की वजह से टीम को जो चार पहिया वाहन, दोपहिया वाहन और मोबाइल दिया गया था, इसे 1 अगस्त से वापस ले लिया जाए. मोटे तौर पर एलटीएफ को वेतन छोड़कर औसतन 40 से 50 हजार हर टीम तक खर्च गिर रहा था. वहीं बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़े पर ध्यान दें तो जनवरी 2022 में एलटीएफ के 233 टीमों का गठन किया गया था. प्रत्येक टीम में लगभग 12 से 13 लोग थे करीबन 3000 पुलिसकर्मी जिसमें होमगार्ड के जवान से लेकर सिपाही और पुलिस के अधिकारी भी मौजूद हैं उनका गठन किया गया था. एलटीएफ पर जो आरोप मध निषेध विभाग के द्वारा लगाया गया है हालांकि उस पर पुलिस मुख्यालय के अधिकारी ऑफिसअली कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.

बिहार में साल 2016 से पूर्ण शराब बंदी कानून लागू है : पुलिस मुख्यालय के एडीजी जितेंद्र सिंह गंगवार ने टेलिफोनिक बातचीत के दौरान बताया कि बिहार में साल 2016 से पूर्ण शराब बंदी कानून लागू है और साल 2016 से लेकर 2021 तक के आंकड़े के तुलना में साल 2022 से एलटीएफ़ गठन से काफी फायदा हुआ है. पुलिस मुख्यालय के आंकड़े के अनुसार साल 2016 से 17 के बीच कुल 2530 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. साल 2018 में 4012 साल 2019 में 4313 साल 2020 में 3802 और साल 2021 में कुल 55226 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. यह आंकड़ें एलटीएफ के गठन कब पहले का है और साल 2022 में एलटीएफ के गठन के बाद एलटीएस के द्वारा सिर्फ 6 महीने में 40074 और कुल 73413 लोगों की गिरफ्तारी शराब बंदी कानून के तहत हुआ है. ऐसे में कहीं ना कहीं मद्य निषेध विभाग द्वारा लिया गया निर्णय जिसमें एलटीएफ को दी गई वाहनों और सुविधा को वापस से लिया गया है उससे कहीं ना कहीं पुलिस मुख्यालय मैं नाराजगी भी देखने को मिल रही है.

कौन सच्चा, कौन झूठा ? : इस मुद्दे पर नई पुलिस मुख्यालय खुलकर कुछ बोल रहा है और ना ही मद्य निषेध विभाग कुछ बोल रहा है. हालांकि मद्य निषेध विभाग के विशेष सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार एलटीएस के 233 टीमों पर प्रति महीने करीबन 1 करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है जबकि मध निषेध कानून में परिवर्तन के बाद पकड़े जा रहे वाहनों के नीलामी या उनसे फाइन के रूप में प्रति माल परिवहन 6 रुपए की वसूली होती है. आपको बता दें कि मद्य निषेध विभाग द्वारा निकाले गए पत्र जिसमें निर्णय लिया गया है कि एलटीएफ को दी जाने वाली सुविधा को वापस लिया जाए. इससे कहीं ना कहीं मद्य निषेध विभाग और पुलिस विभाग में काफी अंदरुनी नाराजगी देखने को मिल रही है. मद्य निषेध विभाग के द्वारा लिखे गए पत्र के बाद पुलिस मुख्यालय ने कहीं ना कहीं यह आंकड़े प्रस्तुत किया है जिससे साफ तौर पर कहा जा सकता है कि मद्य निषेध विभाग द्वारा लगाया गया आरोप बिल्कुल निराधार है. क्योंकि इस साल 2016 से 21 के आंकड़े की तुलना में साल 2022 के महज 6 महीने में काफी संख्या में शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तारी हुई है. ऐसे में फिर से सवाल उठ रहा है कि मध निषेध विभाग सच्चा है या बिहार पुलिस मुख्यालय सच्चा है.


औरंगाबाद: बिहार में 6 साल बीत जाने के बावजूद भी बिहार में शराबबंदी कानून पूर्ण रुप से लागू (Liquor prohibition law not fully implemented in Bihar) नहीं हो पा रहा है. यानी की साल 2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बावजूद भी बिहार में शराबबंदी पूर्ण रुप से लागू नहीं हो पा रही है. आए दिन शराबबंदी कानून के तहत लोगों की गिरफ्तारी हो रही है. भारी मात्रा में शराब भी बरामद भी हो रही है. यही नहीं अवैध रूप से बिकने वाली जहरीली शराब के वजह से बिहार में अब तक सैकडों लोगों की मौत हो चुकी है. बिहार में शराबबंदी का हाल यह हो गया है कि बिहार पुलिस मुख्यालय और मद्य निषेध विभाग कहीं ना कहीं आरोप-प्रत्यारोप करते नजर आ रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Explainer: बिहार में शराबबंदी कानून के नाम पर कब तक जारी रहेगा मौत का तांडव?

बिहार में शराबबंद कानून पर लग रहा प्रश्नचिन्ह : मद्य निषेध विभाग (Bihar Prohibition Department) बिहार में शराबबंदी कानून के तहत मद्य निषेध विभाग के मांग पर बिहार पुलिस मुख्यालय के द्वारा शराब बंदी कानून को सख्ती से लागू करवाने को लेकर जनवरी 2022 में एंटी लिकर टास्क फोर्स का गठन किया गया था. जिसके तहत 233 एंटी लिकर टास्क फोर्स बनाया गया था जिसमें करीबन 3000 पुलिसकर्मी की तैनाती की गई थी. पुलिस मुख्यालय के अनुसार एंटी लिकर टास्क फोर्स के गठन के बाद पिछले 6 महीने में अब तक एंटी लिकर टास्क फोर्स के द्वारा 40074 लोगों की गिरफ्तारी की गई है. मध निषेध कानून के तहत जुलाई माह तक कुल 73413 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. जिसमें से एंटी लिकर टास्क फोर्स के द्वारा 40074 लोगों की गिरफ्तारी की गई है.

'शराबबंदी कानून बिहार में पूरी तरह से फेल है और बिहार में शराबबंदी को लेकर अराजकता वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है. बिहार पुलिस और मद्य निषेध विभाग में तालमेल सही से नहीं बैठ रहा है. जिसका कारण यह है कि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप और फेंका फेकि वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है. जिस तरह से पुलिस मुख्यालय के द्वारा आंकड़ा दिया गया है और एंटी लिकर टास्क फोर्स पर मध्य निषेध विभाग ने जो आरोप लगाया है. इससे यह पता चल रहा है कि सरकार के ही दोनों अंग है होने के बावजूद भी इनमें तालमेल की काफी कमी है.' - पूर्व आईपीएस अमिताभ दास

बिहार में शराबबंदी कानून : एंटी लिकर टास्क फोर्स मद्य निषेध के अंतर्गत काम कर रही है. जिस वजह से मद्य निषेध के द्वारा हर टीम पर लगभग 50,000 रुपए का खर्च आ रहा है. अब मद्य निषेध विभाग की माने तो एंटी लिकर टास्क फोर्स सही काम नहीं कर पा रही है. जिस वजह से उन्हें मिलने वाली सुविधाएं जैसे फोर व्हीलर टू व्हीलर और मोबाइल की सुविधा को वापस लेने का निर्णय लिया गया है. ऐसे में कहीं ना कहीं बिहार पुलिस और मध्य निषेध के बीच में तनातनी देखने को मिल रहा है. सवाल यह उठ रहा है कि कौन सच्चा कौन झूठा है.

एंटी लिकर टास्क फोर्स भी शराबबंदी लागू कराने में नकाम : दरअसल मद्य निषेध विभाग के समीक्षा के बाद निर्णय लिया गया है कि बिहार में शराबबंदी के अभियान को और सख्ती से लागू करने के लिए पूरे बिहार में 220 एंटी लिकर टास्क फोर्स जो बनी थी वह खरी नहीं उतर रही है. मद्य निषेध विभाग के अनुसार बीते 6 महीने में टास्क फोर्स ने बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है. शराब माफिया के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है. मद्य निषेध विभाग में हुई समीक्षा में यही नतीजे सामने आने के बाद मद्य निषेध उत्पाद और निबंधन विभाग ने एलटीएफ को कार्रवाई करने के लिए दिए गए चार पहिया वाहन बाइक और मोबाइल को वापस ले लिया है.

जहरीली शराब से कई लोगों की गई जान : दरअसल मद्य निषेध के संयुक्त आयुक्त श्री कृष्ण पासवान ने सभी सहायक उत्पाद आयुक्त मध्य निषेध और सभी अधीक्षक के मध्य निषेध को ईमेल द्वारा पत्र भेजकर लिखा गया है कि एलटीएस के प्रभाव में कमी और विभाग की सीमित बजट संसाधन की वजह से टीम को जो चार पहिया वाहन, दोपहिया वाहन और मोबाइल दिया गया था, इसे 1 अगस्त से वापस ले लिया जाए. मोटे तौर पर एलटीएफ को वेतन छोड़कर औसतन 40 से 50 हजार हर टीम तक खर्च गिर रहा था. वहीं बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़े पर ध्यान दें तो जनवरी 2022 में एलटीएफ के 233 टीमों का गठन किया गया था. प्रत्येक टीम में लगभग 12 से 13 लोग थे करीबन 3000 पुलिसकर्मी जिसमें होमगार्ड के जवान से लेकर सिपाही और पुलिस के अधिकारी भी मौजूद हैं उनका गठन किया गया था. एलटीएफ पर जो आरोप मध निषेध विभाग के द्वारा लगाया गया है हालांकि उस पर पुलिस मुख्यालय के अधिकारी ऑफिसअली कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.

बिहार में साल 2016 से पूर्ण शराब बंदी कानून लागू है : पुलिस मुख्यालय के एडीजी जितेंद्र सिंह गंगवार ने टेलिफोनिक बातचीत के दौरान बताया कि बिहार में साल 2016 से पूर्ण शराब बंदी कानून लागू है और साल 2016 से लेकर 2021 तक के आंकड़े के तुलना में साल 2022 से एलटीएफ़ गठन से काफी फायदा हुआ है. पुलिस मुख्यालय के आंकड़े के अनुसार साल 2016 से 17 के बीच कुल 2530 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. साल 2018 में 4012 साल 2019 में 4313 साल 2020 में 3802 और साल 2021 में कुल 55226 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. यह आंकड़ें एलटीएफ के गठन कब पहले का है और साल 2022 में एलटीएफ के गठन के बाद एलटीएस के द्वारा सिर्फ 6 महीने में 40074 और कुल 73413 लोगों की गिरफ्तारी शराब बंदी कानून के तहत हुआ है. ऐसे में कहीं ना कहीं मद्य निषेध विभाग द्वारा लिया गया निर्णय जिसमें एलटीएफ को दी गई वाहनों और सुविधा को वापस से लिया गया है उससे कहीं ना कहीं पुलिस मुख्यालय मैं नाराजगी भी देखने को मिल रही है.

कौन सच्चा, कौन झूठा ? : इस मुद्दे पर नई पुलिस मुख्यालय खुलकर कुछ बोल रहा है और ना ही मद्य निषेध विभाग कुछ बोल रहा है. हालांकि मद्य निषेध विभाग के विशेष सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार एलटीएस के 233 टीमों पर प्रति महीने करीबन 1 करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है जबकि मध निषेध कानून में परिवर्तन के बाद पकड़े जा रहे वाहनों के नीलामी या उनसे फाइन के रूप में प्रति माल परिवहन 6 रुपए की वसूली होती है. आपको बता दें कि मद्य निषेध विभाग द्वारा निकाले गए पत्र जिसमें निर्णय लिया गया है कि एलटीएफ को दी जाने वाली सुविधा को वापस लिया जाए. इससे कहीं ना कहीं मद्य निषेध विभाग और पुलिस विभाग में काफी अंदरुनी नाराजगी देखने को मिल रही है. मद्य निषेध विभाग के द्वारा लिखे गए पत्र के बाद पुलिस मुख्यालय ने कहीं ना कहीं यह आंकड़े प्रस्तुत किया है जिससे साफ तौर पर कहा जा सकता है कि मद्य निषेध विभाग द्वारा लगाया गया आरोप बिल्कुल निराधार है. क्योंकि इस साल 2016 से 21 के आंकड़े की तुलना में साल 2022 के महज 6 महीने में काफी संख्या में शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तारी हुई है. ऐसे में फिर से सवाल उठ रहा है कि मध निषेध विभाग सच्चा है या बिहार पुलिस मुख्यालय सच्चा है.


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