पटनाः बिहार में कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट (Kusheshwarsthan Assembly Seat) के लिए इस तरह का राजनीतिक घमासान मचा कि राजद और कांग्रेस का गठबंधन टूट गया. यह अलग बात है कि कांग्रेस जिस सियासी समीकरण को समझाने की कोशिश कर रही थी, उसे राष्ट्रीय जनता दल समझने को तैयार नहीं थी. राष्ट्रीय जनता दल जो बताना चाह रही थी, उसे कांग्रेस मानने को तैयार नहीं थी. आरजेडी सुप्रीमो लालू दोनों सीटों के समीकरण और पार्टी के फीडबैक से मिले आंकड़ों से सियासी दशा भांप चुके थे, लेकिन कांग्रेस की जिद के आगे घुटने नहीं टेके, इसी कारण कांग्रेस (Congress) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का गठबंधन टूट गया.
अहम बात लालू यादव का वह बयान है, जिसके कई मायने उस समय तो निकाले गए थे. लेकिन अब जो मायने निकाला जा रहा है, उससे एक बात तो साफ है कि लालू यादव को इतनी जमीनी जानकारी जरूर थी कि अगर कांग्रेस को टिकट देंगे तो हार जाएंगे. कुशेश्वरस्थान जीते भले नहीं हैं लेकिन राजद ने जिस तरीके से कुशेश्वरस्थान में बढ़त बनाई उससे एक बात तो साफ है कि अगर कांग्रेस के खाते में कुशेश्वरस्थान की सीट जाती तो संभवतः यहां तक भी कांग्रेस का पहुंचना नामुमकिन हो जाता.
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2 सीटों पर हुए उपचुनाव की अहम लड़ाई और बिहार में इसके सियासी मायने काफी बड़े थे. देश के राजनीतिक हालात पर नई सियासी चर्चा को लेकर इतनी ज्यादा जगह मिल गई थी कि लालू यादव भी चुनावी मैदान में आ गए थे. हालांकि जब दिल्ली से लालू यादव चले तो कांग्रेस को ले कर उन्होंने जो बयान दिया, उसको लेकर कांग्रेसी काफी नाराज थे. भक्त चरण दास को लेकर भी उन्होंने कुछ ऐसी बात कह दी थी, जिसको लेकर कांग्रेसियों के भीतर काफी नाराजगी थी. लेकिन लालू यादव ने यह भी कहा था कि उनकी बात सोनिया गांधी से हुई है. राजद के कुछ लोगों ने यह भी कह दिया कि लालू यादव ने बेहतर तरीके से सोनिया गांधी और कांग्रेस के बड़े नेताओं को समझा दिया है कि कुशेश्वरस्थान में हार जाने के बाद भी कांग्रेस ने कोई ऐसा काम किया नहीं जिसके बदौलत जीत का दावा किया जा सके.
क्योंकि उम्मीदवार भी उतना मजबूत नहीं है और उम्मीदवार चयन को लेकर के बहुत सारी बातें भी नेपथ्य में रहीं. अब लालू यादव चुनावों से पहले यह बोल दिए थे कि सीट कांग्रेस को इसलिए नहीं दे सकते कि हम हारना नहीं चाहते. कुशेश्वरस्थान की सीट राष्ट्रीय जनता दल के खाते में भले नहीं आई हो लेकिन अब जीत-हार की समीक्षा में लालू इसे कैसे बताएंगे और जिस तरीके से लालू यादव ने कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ा था कि हारने के लिए सीट नहीं दे सकते तो अब हार जाने के बाद उस सीट को किस रूप में लेंगे. यह भी महागठबंधन के बीच एक सवाल होगा और लालू यादव पर आरोप भी. लेकिन एक बात तो साफ है कि लालू यादव को इस बात का अंदाजा पहले से ही था कि कुशेश्वरस्थान में कांग्रेस की तैयारी इतनी मजबूत नहीं है कि उसे सीट दिया जा सके.
कुशेश्वरस्थान पर राजद की प्रतिष्ठा लालू यादव की बात और दबाव की राजनीति इतनी जबरदस्त रही कि मतगणना के दिन तेजस्वी यादव सुबह-सुबह ही कुशेश्वरस्थान में डेरा डाल दिए. मामला साफ है कि लालू यादव ने कुशेश्वरस्थान पर कांग्रेस को टिकट देने की बात इस आधार पर ठुकरा दिए थे. कांग्रेस वहां हार जाएगी तो राष्ट्रीय जनता दल ने जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस को जिताने के लिए जितना दम कांग्रेसी नेताओं को लगाना था, वह कुशेश्वरस्थान और तारापुर दोनों सीटों पर उम्मीदवार होने के बाद भी कांग्रेस नहीं लगा पाई. चर्चा में कांग्रेस इस बात के दबाव को देना चाह रही थी कि उसके पास कन्हैया और दूसरे बड़े नेता शामिल हो गए हैं. लेकिन जनता इस महापर्व में उसके साथ शामिल होगी. इस बात का भरोसा नहीं दिला पाए और लालू यादव इस बात को जानते थे कि कुशेश्वरस्थान में कांग्रेस की तैयारी इतनी मजबूत है ही नहीं कि वह टक्कर जेडीयू को दे पाए.
लालू यादव ने कांग्रेस को सीट देने पर हार जाने की बात कही थी लेकिन खुद सीट रखकर कुशेश्वरस्थान हार गए. चुनावी मैदान में उतरे तेजस्वी यादव ने पूरा दम लगा दिया. आरोप की जितनी बातें हैं सब कुछ आ गई. विसर्जन और दूसरी भाषा की मर्यादा भी टूटी. लेकिन उसके बाद भी कुशेश्वरस्थान की सीट राजद के खाते में नहीं आई. अब देखने वाली बात यह है कि लालू यादव ने कांग्रेस को सीट इस आधार पर नहीं दिया कि हम हार जाएंगे. लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन की कुर्बानी दे दी. अब सीट भी हाथ नहीं आई तो सवाल उठ रहा है कि राजनीति अब किस राह पर होगी.
समझौते की कोई बात आगे बनेगी या फिर 2 सीटों की लड़ाई ही महागठबंधन की कुर्बानी की वजह बनी रहेगी. क्योंकि जिसने जीत का दावा किया था वो जीत नहीं पाया और जो लोग हारे हैं वह जीतने का अब कौन सा दावा करेंगे, यह देखने वाली बात होगी. लेकिन कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कुशेश्वरस्थान पर राष्ट्रीय जनता दल की प्रतिष्ठा इस स्थान पर भी रही है कि लालू यादव को मैदान में उतर कर एक बार फिर से मोर्चा संभालना पड़ा. अब इसके बाद राजद, कांग्रेस, तेजस्वी की राजनीति को लालू यादव कैसे संभालते हैं यह भी काफी अहम है.
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