ETV Bharat / city

तो...RJD की राजनीति में 'जींस' से नहीं आ रही 'कृपा' ! - बिहार की खबरें

राजनीति में 'जींस' ने नेतागिरी को वह रंग दे दिया है जिसमें जमीन से जुड़ पाना और जमीन पर बैठ पाना नेताओं के लिए मुश्किल हो रहा है. 'जींस' वाली सियासत अब समाजवादियों को खटक रही है. क्योंकि 'जींस वाली राजनीति' जमीन पर नहीं आई तो फिर 'जमीन की राजनीति' जो सदन में जाकर करनी है, उसका क्या होगा?

Jagdanand Singh
Jagdanand Singh
author img

By

Published : Aug 8, 2021, 7:05 PM IST

Updated : Aug 9, 2021, 4:42 AM IST

पटना: राजनीति में 'जींस' लगातार मुद्दों की सियासत में जगह बनाने के लिए उस बदलाव की परिपाटी में भी रहा है जो आज से 75 साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) ने भारत को आजाद कराने की अंतिम लड़ाई में शुरुआत की थी. उस समय की राजनीतिक 'जींस' में देश की आजादी के लिए मर मिटने का जज्बा था. हालांकि जब राजनीति बदली है, उसमें जाति सियासत की 'जींस' ने जगह बना ली है. सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) का एक बड़ा समीकरण भी खड़ा हुआ. अब जबकि समाज ने एक बार राजनीति की दूसरी ऊंचाई को जगह दे दी तो नीचे आने की सियासत लोगों को चौंका भी रही है. हालांकि कुछ लोगों को इससे गुरेज भी है.

ये भी पढ़ें: जानें क्यों...नीतीश के ललन वाले पोस्टर पर रातों-रात चला 'सुशासन का बुल्डोजर'?

सवाल इसलिए भी पैदा हो रहा है कि जाति जनगणना को लेकर राष्ट्रीय जनता दल का विरोध मार्च था. राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) ने कह दिया कि पार्टी में जो लोग 'जींस' पहन कर आएंगे, उन लोगों को पार्टी में जगह नहीं दी जाएगी. उसकी वजह भी उन्होंने साफ-साफ बतायी थी. सिंह का कहना था कि 'जींस' की वजह से लोग जमीन पर बैठ नहीं पाते हैं. जगदानंद सिंह ने इस बात को चाहे जिस रूप में कहा हो, लेकिन हकीकत यही है कि 'जींस' ने नेतागिरी को वह रंग दे दिया है जिसमें जमीन से जुड़ना और जमीन पर बैठ पाना नेताओं के लिए मुश्किल हो रहा है. जेपी की धरती पर एक बार इसकी चर्चा जरूर शुरू हो गई है कि 'जींस वाली राजनीति' जमीन पर आ नहीं रही है. जमीन वाली राजनीति 'जींस' पहनने वाले नेता करना नहीं चाह रहे. इसमें दो राय नहीं कि राजनीति अब जनसेवा के लिए मर-मिटने के जज्बे के साथ रही ही नहीं. अब तो सियासत में कब्जे की बात चल रही है.

देखें वीडियो

जाति पर कब्जा, सरकार पर कब्जा सरकार बनाने पर दबाव को लेकर कब्जा, पार्टी को तोड़कर उस पर कब्जा जमाने वाली जिस राजनीति को सभी जगह पर अब जींस वाले नेता जगह ले रहे हैं. उसमें सिद्धांत वाली राजनीति दम तोड़ गई है. जगदानंद सिंह समाजवादी पृष्ठभूमि के नेता हैं तो संभव है कि राजनीति के आंदोलन वाली दूरी जो सड़क से सदन तक पहुंचाती थी, वह जींस वाले नेताओं को दिख नहीं रही है. उसकी भी एक वजह है, आज जिनके जिम्मे पार्टियां हैं, वह वैसे नेताओं के बेटे हैं जिनकी परवरिश महंगी टाइल्स वाले घरों में हुई है.

मिट्टी में दौड़ कर आम लोगों के साथ रंग में रंग कर उनके मुद्दे पर सड़क पर बैठकर सरकार को हिला कर सियासत नहीं की बल्कि विरासत में मिल गई. जींस वाली सियासत अब समाजवादियों को खटक रही है. क्योंकि जींस वाली राजनीति जमीन पर नहीं आई तो फिर जमीन की राजनीति जो सदन में जाकर करनी है, उसका क्या होगा. यह सवाल सिर्फ बिहार के लिए नहीं उन सभी राजनीति करने वाले लोगों से है कि आखिर जमीन वाली राजनीति से वह दूर क्यूं होते जा रहे हैं.

देश कुछ दिनों बाद ही आजादी की 75 वीं सालगिरह मनाएगा. अब यहां सिद्धांत वाली राजनीति भारतीय नेताओं को मुंह चिढ़ाते दिखेगी कि जिस बापू को जेपी ने माना, कर्पूरी ने माना, लोहिया ने माना, देश ने माना, विश्व ने माना, उस बापू ने कहा था खादी उनकी आत्मा है. जन भावनाओं के लिए खादी को आत्मसात करना पड़ेगा. सियासत में बापू सभी नेताओं के सिर पर तो टांग दिए जाते हैं लेकिन सत्ता का रसूख और मनमानी वाली सियासत जिस तरीके से नेताओं के सिर चढ़कर बोलती है, उसमें बापू के हर सिद्धांत समाज में सिर्फ मुंह चिढ़ाने जैसे दिखते हैं.

अब जगदानंद सिंह ने एक ऐसी परिपाटी की शुरुआत की है जो राष्ट्रीय जनता दल के गरीब-गुरबा वाली राजनीति से है. उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष का सबसे बड़ा नारा भी और अगर ना माना जाए तो जुमला भी. अब पार्टी के कर्ता-धर्ता लालू के दोनों बेटे हैं जिनकी जमीन और राजनीति दोनों नए जींस वाली सियासत में है.

अब देखना यही होगा कि समाजवाद की जिस पृष्ठ भूमि को पकड़कर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने जमीन से सियासत को पूरे देश के फलक पर चमका दिया, उस सियासत को नई जींस वाली राजनीति किस तरीके से आगे बढ़ाती है. क्योंकि लालू यादव के भाई जगदानंद सिंह ने तो कह दिया जींस वाली राजनीति जमीन वाली राजनीति को नहीं छू पा रही है. सवाल किसी एक दल के नेता का है पर विचार तो सबको करना पड़ेगा किस में समाजवाद कहां है.

पटना: राजनीति में 'जींस' लगातार मुद्दों की सियासत में जगह बनाने के लिए उस बदलाव की परिपाटी में भी रहा है जो आज से 75 साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) ने भारत को आजाद कराने की अंतिम लड़ाई में शुरुआत की थी. उस समय की राजनीतिक 'जींस' में देश की आजादी के लिए मर मिटने का जज्बा था. हालांकि जब राजनीति बदली है, उसमें जाति सियासत की 'जींस' ने जगह बना ली है. सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) का एक बड़ा समीकरण भी खड़ा हुआ. अब जबकि समाज ने एक बार राजनीति की दूसरी ऊंचाई को जगह दे दी तो नीचे आने की सियासत लोगों को चौंका भी रही है. हालांकि कुछ लोगों को इससे गुरेज भी है.

ये भी पढ़ें: जानें क्यों...नीतीश के ललन वाले पोस्टर पर रातों-रात चला 'सुशासन का बुल्डोजर'?

सवाल इसलिए भी पैदा हो रहा है कि जाति जनगणना को लेकर राष्ट्रीय जनता दल का विरोध मार्च था. राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) ने कह दिया कि पार्टी में जो लोग 'जींस' पहन कर आएंगे, उन लोगों को पार्टी में जगह नहीं दी जाएगी. उसकी वजह भी उन्होंने साफ-साफ बतायी थी. सिंह का कहना था कि 'जींस' की वजह से लोग जमीन पर बैठ नहीं पाते हैं. जगदानंद सिंह ने इस बात को चाहे जिस रूप में कहा हो, लेकिन हकीकत यही है कि 'जींस' ने नेतागिरी को वह रंग दे दिया है जिसमें जमीन से जुड़ना और जमीन पर बैठ पाना नेताओं के लिए मुश्किल हो रहा है. जेपी की धरती पर एक बार इसकी चर्चा जरूर शुरू हो गई है कि 'जींस वाली राजनीति' जमीन पर आ नहीं रही है. जमीन वाली राजनीति 'जींस' पहनने वाले नेता करना नहीं चाह रहे. इसमें दो राय नहीं कि राजनीति अब जनसेवा के लिए मर-मिटने के जज्बे के साथ रही ही नहीं. अब तो सियासत में कब्जे की बात चल रही है.

देखें वीडियो

जाति पर कब्जा, सरकार पर कब्जा सरकार बनाने पर दबाव को लेकर कब्जा, पार्टी को तोड़कर उस पर कब्जा जमाने वाली जिस राजनीति को सभी जगह पर अब जींस वाले नेता जगह ले रहे हैं. उसमें सिद्धांत वाली राजनीति दम तोड़ गई है. जगदानंद सिंह समाजवादी पृष्ठभूमि के नेता हैं तो संभव है कि राजनीति के आंदोलन वाली दूरी जो सड़क से सदन तक पहुंचाती थी, वह जींस वाले नेताओं को दिख नहीं रही है. उसकी भी एक वजह है, आज जिनके जिम्मे पार्टियां हैं, वह वैसे नेताओं के बेटे हैं जिनकी परवरिश महंगी टाइल्स वाले घरों में हुई है.

मिट्टी में दौड़ कर आम लोगों के साथ रंग में रंग कर उनके मुद्दे पर सड़क पर बैठकर सरकार को हिला कर सियासत नहीं की बल्कि विरासत में मिल गई. जींस वाली सियासत अब समाजवादियों को खटक रही है. क्योंकि जींस वाली राजनीति जमीन पर नहीं आई तो फिर जमीन की राजनीति जो सदन में जाकर करनी है, उसका क्या होगा. यह सवाल सिर्फ बिहार के लिए नहीं उन सभी राजनीति करने वाले लोगों से है कि आखिर जमीन वाली राजनीति से वह दूर क्यूं होते जा रहे हैं.

देश कुछ दिनों बाद ही आजादी की 75 वीं सालगिरह मनाएगा. अब यहां सिद्धांत वाली राजनीति भारतीय नेताओं को मुंह चिढ़ाते दिखेगी कि जिस बापू को जेपी ने माना, कर्पूरी ने माना, लोहिया ने माना, देश ने माना, विश्व ने माना, उस बापू ने कहा था खादी उनकी आत्मा है. जन भावनाओं के लिए खादी को आत्मसात करना पड़ेगा. सियासत में बापू सभी नेताओं के सिर पर तो टांग दिए जाते हैं लेकिन सत्ता का रसूख और मनमानी वाली सियासत जिस तरीके से नेताओं के सिर चढ़कर बोलती है, उसमें बापू के हर सिद्धांत समाज में सिर्फ मुंह चिढ़ाने जैसे दिखते हैं.

अब जगदानंद सिंह ने एक ऐसी परिपाटी की शुरुआत की है जो राष्ट्रीय जनता दल के गरीब-गुरबा वाली राजनीति से है. उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष का सबसे बड़ा नारा भी और अगर ना माना जाए तो जुमला भी. अब पार्टी के कर्ता-धर्ता लालू के दोनों बेटे हैं जिनकी जमीन और राजनीति दोनों नए जींस वाली सियासत में है.

अब देखना यही होगा कि समाजवाद की जिस पृष्ठ भूमि को पकड़कर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने जमीन से सियासत को पूरे देश के फलक पर चमका दिया, उस सियासत को नई जींस वाली राजनीति किस तरीके से आगे बढ़ाती है. क्योंकि लालू यादव के भाई जगदानंद सिंह ने तो कह दिया जींस वाली राजनीति जमीन वाली राजनीति को नहीं छू पा रही है. सवाल किसी एक दल के नेता का है पर विचार तो सबको करना पड़ेगा किस में समाजवाद कहां है.

Last Updated : Aug 9, 2021, 4:42 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.