पटना: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान गुरूवार को अचानक पटना पहुंचे थे. वे सीधे सीएम नीतीश से मुलाकात करने मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे. दोनों नेताओं के बीच घंटे भर की बातचीत हुई थी. सीएम नीतीश कुमार और धर्मेंद्र प्रधान की मुलाकात (Nitish Dharmendra Pradhan Meeting) के बाद बिहार का राजनीतिक तापमान बढ़ गया है. सूत्रों की माने तो बैठक के दौरान 'मोदी के दूत' धर्मेन्द्र प्रधान ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह आश्वासन दिया कि वह 2025 तक राज्य के मुख्यमंत्री पद (nitish will remain cm till 2025) पर बने रहेंगे.
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जेटली की भूमिका में धर्मेन्द्र प्रधान! : दरअसल, धर्मेन्द्र प्रधान और नीतीश की मुलाकात को लेकर एक और चर्चा यह है कि अब केंद्रीय नेतृत्व की ओर से बिहार बीजेपी के प्रभारी भूपेंद्र यादव की जगह धर्मेंद्र प्रधान को एनडीए में कॉर्डिनेशन समन्वय की जिम्मेदारी दी गई है. यह काम पहले अरुण जेटली करते थे. अब ऐसे समय में जब बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच तमाम मुद्दों पर टकराव देखने को मिल रहे हैं, धर्मेन्द्र प्रधान की भूमिका अहम मानी जा रही हैं. दूसरी तरफ सूत्रों की माने तो केंद्रीय नेतृत्व नहीं चाहता कि राज्य के बीजेपी नेता यह धारणा बनाएं कि वो नीतीश की जगह किसी और चेहरे को लाने के लिए बेताब हैं. ऐसे में साफ है कि नेतृत्व लोकसभा चुनाव तक प्रदेश में बदलाव के मूड में नहीं है.
मोदी के भरोसेमंद धर्मेंद्र प्रधान : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने धर्मेन्द्र प्रधान को में हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में शिक्षा मंत्रालय जैसा अहम विभाग दिया. यूपी जैसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण चुनावी राज्य में प्रधान को प्रभारी बनाया गया. प्रधान इससे पहले बिहार, उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ और कनार्टक जैसे राज्यों के प्रभारी का दायित्व निभा चुके हैं जिनमें भाजपा ने कामयाबी हासिल की.
इधर, आगामी राष्ट्रपति चुनावों के लिए, बीजेपी को देश के शीर्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा करने के लिए बिहार जैसे राज्यों से अच्छे समर्थन की आवश्यकता होगी. बीजेपी बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू के साथ सत्ता साझा कर रही है और पार्टी अपने गठबंधन सहयोगियों जेडीयू और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का समर्थन लेने का भी प्रबंधन जरूर करेगी, इस तथ्य के बावजूद कि सीएए, एनआरसी, समान नागरिक संहिता आदि सहित कई मुद्दों पर उनके मतभेद हैं.
जानकारों का मानना है कि राष्ट्रपति चुनाव बिहार में जमीनी स्तर पर जदयू और हम जैसी पार्टियों के राजनीतिक हितों पर असर नहीं डाल सकता. इसलिए, वे बीजेपी उम्मीदवार का विरोध नहीं करेंगे. ऐसी भी चर्चाएं चली हैं कि बीजेपी के समर्थन से नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है. हालांकि नीतीश कुमार ने कहा कि उन्हें केंद्र की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है.
''नीतीश कुमार के उप राष्ट्रपति बनने की जो चर्चा हो रही है वह सब सिर्फ अटकलें हैं. ऐसा कुछ भी नहीं होने जा रहा. वह बिहार की सेवा करते रहेंगे. मुख्यमंत्री बने रहेंगे. वह निस्संदेह जेडीयू के निर्विवाद शीर्ष नेता हैं. वह केंद्र की राजनीति के लिए नहीं जा रहे हैं, न ही वह राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति पदों के लिए मैदान में हैं." - नीरज कुमार, एमएलसी व जदयू के मुख्य
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इस बीच, आरजेडी उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने भी कहा है कि इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि नीतीश कुमार केंद्र में नहीं जाएंगे. "उन्हें कुर्सी से प्यार है और अगर वह राष्ट्रपति के प्रतिष्ठित पद के लिए सौदेबाजी करने में विफल रहते हैं, तो वे केंद्र में क्यों जाएंगे? मुझे विश्वास है कि बीजेपी राष्ट्रपति पद के लिए वर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को बढ़ावा देगी. यह देखते हुए कहा जा सकता है कि संभवत: नीतीश कुमार बिहार में ही रहेंगे." - शिवानंद तिवारी, आरजेडी उपाध्यक्ष
शिवानंद तिवारी ने आगे कहा, "जेडीयू नीतीश कुमार के राजनीतिक उत्तराधिकारी के संकट का भी सामना कर रहा है. वर्तमान में, जेडी-यू के पास आरसीपी सिंह कैंप, राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह कैंप और उपेंद्र कुशवाहा कैंप जैसे कई समूह हैं. अगर नीतीश कुमार केंद्र में जाते हैं, बिहार में जेडीयू बिखर जाएगी. ऐसे में जदयू के कुछ नेता बीजेपी की ओर जाएंगे, जबकि कुछ अन्य आरजेडी में शामिल होंगे और नीतीश कुमार ऐसी स्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकते."
JDU में नीतीश 'केवलम'! : हाल ही में जेडीयू ने पार्टी में गुटबाजी को रोकने के लिए सभी नेताओं के लिए आधिकारिक अधिसूचना जारी की थी कि हर पोस्टर और विज्ञापन में केवल नीतीश कुमार की तस्वीर का इस्तेमाल किया जाएगा. बिहार में अब कोई अन्य नेता पोस्टर राजनीति के माध्यम से खुद को बढ़ावा देने का हकदार नहीं है. नीतीश कुमार जानते थे कि वह जमीनी स्तर पर अपनी पार्टी को मजबूत करके ही बीजेपी के साथ मजबूत सौदेबाजी की स्थिति में आएंगे. वर्तमान में, बिहार विधानसभा में जेडीयू के पास केवल 45 सीटें हैं, जो 2015 के चुनावों में जीती 69 सीटों से काफी कम है. बिहार में जेडीयूतभी मजबूत होगी जब नीतीश कुमार पार्टी मामलों की कमान संभालेंगे.
राष्ट्रपति चुनाव नीतीश कुमार के किसी भी राजनीतिक हित को प्रभावित नहीं करेगा. इसलिए, सबसे अधिक संभावना है कि वह बीजेपी उम्मीदवार को अपनी पार्टी का समर्थन देंगे. हालांकि बीजेपी नेता राष्ट्रपति चुनाव पर चुप्पी साधे हुए हैं. उनका मानना है कि पार्टी के पास लक्ष्य हासिल करने के लिए पर्याप्त संख्या है और यूपी चुनाव के बाद सीटों की गिरावट पार्टी को प्रभावित नहीं करेगी.
फिलहाल बिहार में बीजेपी के 77 विधायक हैं जबकि जेडीयू के पास 45 विधायक हैं. हम के पास 4 विधायक हैं और उम्मीद है कि वह इस मुद्दे पर जेडीयू के रुख का पालन करेगी और बीजेपी का समर्थन करेगी. विधान परिषद में एनडीए के पास 53 सीटें हैं, जिनमें जेडी-यू के पास 28, बीजेपी के पास 22, हम के पास 1, आरएलजेपी के पास 1 और वीआईपी के पास 1 सीट शामिल हैं.
जहां तक आरजेडी की बात है तो उसके नेताओं ने हमेशा कहा है कि केंद्र के स्तर पर किसी भी फैसले पर वह कांग्रेस के साथ जाएगी. बिहार में आरजेडी के 76, कांग्रेस के 19, वाम दलों के 16 और एआईएमआईएम के 5 विधायक हैं. विधान परिषद में आरजेडी के पास 11, कांग्रेस के पास 4, भाकपा के पास 2 सीटें हैं, जबकि 5 निर्दलीय सदस्य हैं. फिलहाल, नीतीश कुमार को बिहार से हटाने के बाद बीजेपी को 2024 में पहली अग्नि परीक्षा देनी होगी. वैसे तो 2024 का आम चुनाव मोदी के नाम पर होगा, लेकिन 2019 जैसा प्रदर्शन बीजेपी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
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