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खुलासा : बिहार सरकार के ये आयोग वार्षिक लेखाजोखा देने में फिसड्डी

आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय का कहना है कि जनता के पैसा से चलने वाले यह आयोग सरकार को खर्च का हिसाब नहीं दे पाते. बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम लिमिटेड का हाल सबसे बुरा तो बीपीएससी की हालत सबसे अच्छी है.

आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय
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Published : Nov 23, 2019, 8:39 PM IST

पटना: बिहार सरकार के आयोग वार्षिक लेखाजोखा देने में फिसड्डी साबित हुई है. विधानसभा से सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय की ओर से मांगी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ हैं. जानकारी के अनुसार 27 आयोग वार्षिक खर्च का लेखाजोखा देने में नाकाम साबित हो रहे हैं.

सरकार को खर्च का हिसाब नहीं दे पाते आयोग
आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय का कहना है कि जनता के पैसा से चलने वाले यह आयोग सरकार को खर्च का हिसाब नहीं दे पाते. लेखा जोखा देने में सबसे बुरा हाल तो बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम लिमिटेड का है. जिसने 2004-2005 के बाद अभी तक कोई लेखाजोखा जमा ही नहीं किया है. बीपीएससी की हालत सबसे ज्यादा अच्छी है, जिसने 2015-16 का लेखाजोखा 2017 में विधानसभा को दिया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

लेखा-जोखा पेश करने में कई साल पीछे हैं कई आयोग
बात करें सूचना आयोग की तो उसका भी यही हाल है. 2016 के बाद से विभाग ने खर्च का लेखा जोखा नहीं दिया है. वहीं बिहार विद्युत विनियामक आयोग ने वार्षिक प्रतिवेदन 2016-17 को तीन साल देरी से 2019 में विधानसभा के सदन पटल पर रखा. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने 2008 का लेखा जोखा सदन के पटल पर 2016 में पेश किया. बिहार राज वित्तीय निगम ने सदन में 2014 के खर्च का प्रतिवेदन 2016 में रखा. बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम के 2006 के वार्षिक खर्च का हिसाब किताब सदन के पटल पर 2013 में रखा गया और तबसे लेकर अब तक सदन में कोइ हिसाब नहीं लाया गया है.

'यह विभाग की बंदरबाट है'
जानकारों का कहना है कि जब निगम और आयोग सरकार से मिलने वाले खर्च को विधानसभा में पेश नहीं कर पा रहे तो उन्हें साल दर साल खर्च का पैसे किस आधार पर मिल रहे है. आरटीआई कार्यकर्ता का कहना है यह विभाग की बंदर बाट है. बता दें कि बिहार में कुल 27 आयोग और बोर्ड काम कर रहे हैं लेकिन इनमें से किसी का भी सलाना प्रतिवेदन या लेखा जोखा सदन के पटल पर सही तरीके से नहीं पेश किया जाता.

पटना: बिहार सरकार के आयोग वार्षिक लेखाजोखा देने में फिसड्डी साबित हुई है. विधानसभा से सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय की ओर से मांगी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ हैं. जानकारी के अनुसार 27 आयोग वार्षिक खर्च का लेखाजोखा देने में नाकाम साबित हो रहे हैं.

सरकार को खर्च का हिसाब नहीं दे पाते आयोग
आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय का कहना है कि जनता के पैसा से चलने वाले यह आयोग सरकार को खर्च का हिसाब नहीं दे पाते. लेखा जोखा देने में सबसे बुरा हाल तो बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम लिमिटेड का है. जिसने 2004-2005 के बाद अभी तक कोई लेखाजोखा जमा ही नहीं किया है. बीपीएससी की हालत सबसे ज्यादा अच्छी है, जिसने 2015-16 का लेखाजोखा 2017 में विधानसभा को दिया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

लेखा-जोखा पेश करने में कई साल पीछे हैं कई आयोग
बात करें सूचना आयोग की तो उसका भी यही हाल है. 2016 के बाद से विभाग ने खर्च का लेखा जोखा नहीं दिया है. वहीं बिहार विद्युत विनियामक आयोग ने वार्षिक प्रतिवेदन 2016-17 को तीन साल देरी से 2019 में विधानसभा के सदन पटल पर रखा. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने 2008 का लेखा जोखा सदन के पटल पर 2016 में पेश किया. बिहार राज वित्तीय निगम ने सदन में 2014 के खर्च का प्रतिवेदन 2016 में रखा. बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम के 2006 के वार्षिक खर्च का हिसाब किताब सदन के पटल पर 2013 में रखा गया और तबसे लेकर अब तक सदन में कोइ हिसाब नहीं लाया गया है.

'यह विभाग की बंदरबाट है'
जानकारों का कहना है कि जब निगम और आयोग सरकार से मिलने वाले खर्च को विधानसभा में पेश नहीं कर पा रहे तो उन्हें साल दर साल खर्च का पैसे किस आधार पर मिल रहे है. आरटीआई कार्यकर्ता का कहना है यह विभाग की बंदर बाट है. बता दें कि बिहार में कुल 27 आयोग और बोर्ड काम कर रहे हैं लेकिन इनमें से किसी का भी सलाना प्रतिवेदन या लेखा जोखा सदन के पटल पर सही तरीके से नहीं पेश किया जाता.

Intro:सरकारी विभाग में काम का खेल भी निराला है काम करने में तो फिसड्डी है ही सरकार से मिले वार्षिक बजट का हिसाब भी सरकार को नहीं देते इसके बावजूद हर साल उन्हें वार्षिक खर्च मिलता रहता है.आर टी आई से हुआ खुलासा..


Body:पटना--- बिहार सरकार के आयोग काम करने में तो पीछे है ही साथ ही वार्षिक लेखाजोखा देने में भी फिसड्डी साबित हो रही है।विधानसभा से सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय के द्वारा मांगी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ हैं जानकारी के अनुसार 27 आयोग वार्षिक खर्च का लेखाजोखा देने में नाकाम साबित हो रहे हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता का कहना है कि जनता का पैसा से चलने वाला यह आयोग सरकार को खर्च का हिसाब नहीं दे पाती है।लेखा जोखा देने में सबसे बुरा हाल तो बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम लिमटेड का है जो 2004 -5 के बाद अभी तक कोई लेखाजोखा जमा ही नहीं किया है, तो वही सबसे अच्छी स्थिति में है बीपीएससी है जो 2 साल पीछे का 2015-16 का लेखाजोखा 2017 को बिधान सभा मे दिया था वही सूचना आयोग का भी यही हाल है की 2016के बाद खर्च का लेखा जोखा नही दी है। वही बिहार विधुत विनियामक आयोग ने वार्षिक प्रतिवेदन 2016- 17 का विधानसभा के सदन पटल पर 2019में रखा गया तो बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद का लेखा जोखा 2008 का सदन के पटल पर 2016 में रखा गया और बात करें बिहार राज वित्तीय निगम का तो सदन में खर्च का 2014 का 2016 में रखा गया तो बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम का वार्षिक खर्च का हिसाब किताब सदन के पटल पर 2006 का 2013 में रखा गया और उसके बाद अभी तक सदन में इसको नही लाया गया है अब सवाल यह उठता है कि जब निगम और आयोग सरकार से लेने वाले खर्च को विधानसभा में पेश नहीं कर रहे हैं तो उन्हें किस तरह साल दर साल खर्च का पैसा मिल रहा है आखिर उनको जो पैसा मिला है उसका हिसाब कौन करेगा आरटीआई से सूचना मांगने वाले शिव प्रकाश राय का कहना है यह विभाग का बंदर बाट है कैसे खजाने का लूट हो रहा है इसका नमूना है आखिर सरकार से कैसे इन्हें हर साल मोटी रकम मिल रही है ।

बाइट--- शिवप्रकाश राय --आरटीआई कार्यकर्ता


Conclusion:आपको बता दें कि बिहार में कुल 27 आयोग और बोर्ड काम कर रहे हैं लेकिन इनमें से किसी का भी सलाना प्रतिवेदन या लेखा जोखा सदन के पटल पर सही से नहीं जाता है।

ईटीवी भारत के लिए पटना से अरविंद राठौर की रिपोर्ट
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