छपरा: बिहार में जहरीली शराब (Bihar Hooch Tragedy) से हुए मौतों ने सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के शराबबंदी कानून और उसे लागू करने की व्यवस्था की पोल खोल दी है. सुशासन का दावा सवालों के घेरे में है और टारगेट पर नीतीश सरकार है. छपरा में जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या बढ़कर 11 हो गई है. हालांकि, जहरीली शराब से हुईं इन मौतों ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बिहार में शराबबंदी फेल हो गई है क्योंकि अगर नहीं, तो फिर लोगों तक शराब कैसे पहुंची और प्रशासन इस शराब को ट्रैस क्यों नहीं कर पाया.
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छपरा में जहरीली शराब से 11 लोगों की मौत: बिहार के छपरा के मकेर और भेल्दी में जहरीली शराब पीने से 11 लोगों की मौत की आधिकारिक पुष्टि कर दी गई है. कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है. मृतक के परिजनों का कहना है कि शराब सस्ते दामों पर मिल रही थी जिससे ग्रामीण शराब पीने के लिए दौड़ पड़े और अगली सुबह उनकी हालत गंभीर हो गयी और मौत हो गयी. एक युवक ने बताया कि उसने इंग्लिश शराब पी थी. जांच के लिए आए अन्य लोगों ने ये स्वीकार किया कि उन्होंने पूजा के दौरान शराब पी थी. इसके बाद लगभग 15-16 लोग बीमार पड़ गए.
"सर हम तो इंगलिश पीए हैं, झूठ नहीं बोलेंगे. हम ऊ सब नहीं पीए हैं. एक पार्टी कहीं से लाकर दिया था हमको इंगलिश शराब. कुछ लोग महुआ पीए हैं. गांव में ही पूजा-पाठ थी, उसी समय शराब पिलाया जा रहा था. पीने के बाद 15-16 लोग बीमार हो गए. हम गांव में नहीं थे, गांव में आए तो देखा कि हलचल मचा है" - स्थानीय व्यक्ति
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बिहार में शराबबंदी फेल? : यह पहली बार नहीं है जब बिहार में जहरीली शराब से लोगों की मौत हुई है. राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में जहरीली शराब के सेवन से करीब 173 लोगों की मौत हुई है. जनवरी 2022 में बिहार के बक्सर, सारण और नालंदा जिलों में बैक टू बैक घटनाओं में 36 लोगों की मौत हुई थी. ये घटनाएं साबित करती हैं कि बिहार में शराबबंदी विफल है, लेकिन सरकार इस हकीकत को स्वीकार नहीं करना चाहती है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार का अपना तर्क है कि जहरीली शराब से हुई मौतों को किसी भी तरह से शराबबंदी से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
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शराबबंदी कानून फेल होने के कारण?: सरकार का अपना तर्क है कि जहरीली शराब से मौतें उन राज्यों में भी हो रही है, जहां शराबबंदी लागू नहीं है. ईटीवी भारत ने बिहार में शराबबंदी कानून के विफल होने का कारण जानने के लिए कई लोगों से बात की. पटना के जाने माने राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय कुमार ने कहा कि राज्य ने कानून बनाया लेकिन सामाजिक जागरूकता के बिना इसे लागू किया, जिसके परिणामस्वरूप इस तरह की घटनाएं बिहार में हो रही है.
"शराबबंदी कानून लागू करने से पहले कोई भी सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम नहीं किया गया और कानून को लागू करने के लिए अधिकारी ईमानदारी से अपना काम नहीं कर रहे हैं. बिहार में समानांतर अर्थव्यवस्था स्थापित है, यहां शराब माफिया, पुलिस और एक्साइज के बीच एक मजबूत गठजोड़ है. केवल सामाजिक परिवर्तन के नाम पर आप उसके दुष्परिणामों को देखे बिना कुछ भी लागू नहीं कर सकते. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, बिहार में शराब कैसे प्रवेश कर रही है? इसका मतलब है कि सीमावर्ती इलाकों को सील नहीं किया गया है और वहां कोई चेक और बैलेंस नहीं है.'' - डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ
डॉ संजय कुमार ने बताया कि, ''राज्य सरकार शराब के तस्करों को पकड़ने के लिए ड्रोन, हेलीकॉप्टर और त्वरित मोबाइल सेवा का उपयोग कर रही है. इतना सब होने के बावजूद शराब मिल रही है और होम डिलीवरी हो रही है. इसका मतलब है कि पुलिस और एक्साइज अधिकारी राज्य में शराब आने की अनुमति दे रहे हैं. ये लोग दिखावे के लिए एक ट्रक पकड़ते हैं और नौ ट्रकों की अनुमति देते हैं. पुलिस और एक्साइज केवल रिकॉर्ड के लिए छोटी मछली पकड़ते हैं और बड़ी मछली को नहीं छूते क्योंकि वे रिश्वत देकर छूट जाते हैं. कानून को लागू करने में लगी पूरी व्यवस्था शराब बिक्री का हिस्सा बन गई है. यदि व्यवस्था नहीं बदली तो राज्य में शराबबंदी कभी भी सफलतापूर्वक लागू नहीं होगी और एक असफल कानून बना रहेगा.''
क्या कहते है एक्सपर्ट: बिहार में शराबबंदी फेल है, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, शराबबंदी के बावजूद, बिहार में महाराष्ट्र की तुलना में अधिक शराब की खपत होती है. राज्य में शराब की तस्करी और प्रतिबंधित सामग्री की होम डिलीवरी एक कड़वी सच्चाई है. इसके अलावा, शराबबंदी कानून का इस्तेमाल बदले के लिए भी किया जा रहा है और बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों को फंसाया जा रहा है. प्रभावशाली लोग कभी भी कानून के उल्लंघन की सूची में नहीं आते हैं. शराब तस्करी के लिए शराब माफिया द्वारा रोज नए-नए तरीके अपनाए जा रहे है. एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के सहायक प्रोफेसर डॉ विद्यार्थी विकास ने कहा कि सरकार की मंशा अच्छी है, लेकिन पुलिस कानून को लागू नहीं कर रही है.
“मुझे सरकार की मंशा और नीति पर संदेह नहीं है. इससे समाज में आंशिक बदलाव आया है और घरेलू हिंसा में भी कमी आई है. उदाहरण के लिए, पहले जब 100 लोग शराब पीते थे अब यह 40 हो गया है. हालांकि, शराबबंदी पुलिस के लिए पैसे कमाने की मशीन बन गई है. पहले जब लोग कोई कानून तोड़ते थे तो कम से कम 100 रुपये और 200 रुपये का जुर्माना देकर छूट जाते थे लेकिन शराबबंदी में पकड़े जाने पर भारी जुर्माना देना पड़ता है. पुलिस पैसे कमाने के लिए कानून का दुरुपयोग कर रही है, जिसके कारण बिहार में शराबबंदी पूरी तरह से लागू नहीं हुई है.'' - डॉ विद्यार्थी विकास, सहायक प्रोफेसर, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज
2016 से शराबबंदी कानून लागू, नतीजा शून्य: उन्होंने आगे कहा, “युवा बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं और वे अवैध रूप से शराब की तस्करी और प्रतिबंधित सामग्री की आपूर्ति में कूद गए हैं. राज्य सरकार को इस मोर्चे पर जोर देने की जरूरत है क्योंकि यह युवाओं के भविष्य का मामला है. शराबबंदी को सफल बनाने के लिए जादा ऊर्जा, संसाधन और समय को अनुपातहीन मात्रा में लगाया गया है 2016 से ही लेकिन इसे लागू किए जाने के बाद भी परिणाम शून्य है.''
इस बीच, एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (ADRI) के सदस्य डॉ बख्शी अमित कुमार सिन्हा ने कहा ''शराबबंदी के कारण अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है. शराबबंदी का मुख्य उद्देश्य सामाजिक लाभ है और इसका लाभ सीधे लोगों तक पहुंचना चाहिए. शराब की तस्करी और तस्करी से जो अवैध धन उत्पन्न हो रहा है, वह अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालता है. शराब से कमाए गए पैसे कानूनी रूप से बाजार में नहीं रहता है, जिसके कारण पैसा का अवैध कामों में उपयोग किया जाता है. यह कर संग्रह को भी बाधित करता है."
बिहार में शराबबंदी कानून : बिहार सरकार ने पांच अप्रैल 2016 से राज्य में शराब के निर्माण, व्यापार, भंडारण, परिवहन, बिक्री और खपत पर रोक लगाने और इसका उल्लंघन दंडनीय अपराध बनाने के कानून को लागू किया था. इसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि राज्य में पूर्ण शराबबंदी होगी और बिहार एक आदर्श राज्य बनेगा. लेकिन आए दिन शराब कानून तोड़ने न केवल बिहार सरकार को झटका लगा है, बल्कि अन्य राज्यों में भी शराबबंदी कानून को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.
शराबबंदी कानून में संशोधन: हालांकि, शराबबंदी कानून (Prohibition Law In Bihar) को लेकर लगातार हो रही फजीहत से बचने के लिए बिहार सरकार ने शराबबंदी कानून संशोधन विधेयक 2022 (Prohibition Law Amendment Bill 2022) को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद कानून संबंधी कई नियम बदल गए. नए कानून के तहत पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर 2 से 5 हजार रुपये के बीच जुर्माना देना होगा. अगर कोई जुर्माना नहीं देता है तो उसे एक महीने की जेल हो सकती है. बता दें कि पहले जुर्माना 50 हजार था.
एएलटीएफ का दावा: इस बीच, शराबबंदी कानून को गलत तरीके से लागू करने को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही राज्य पुलिस और शराब विरोधी कार्य बल (एएलटीएफ) ने पिछले 7 महीनों में 73,000 से अधिक अपराधियों को गिरफ्तार करने का दावा किया. एएलटीएफ के एक अधिकारी के अनुसार, विभाग ने 40,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है, जबकि शेष को जिला पुलिस ने गिरफ्तार किया है. अधिकारी ने आंकड़े साझा करते हुए कहा कि राज्य में गिरफ्तार किए गए लोगों की कुल संख्या 73,413 है, जिनमें से 40,074 को एएलटीएफ ने पकड़ा है. सात माह की अवधि में प्रदेश के विभिन्न थानों में 52,770 प्राथमिकी दर्ज की गई है. बिहार में अप्रैल 2016 से शराबबंदी अधिनियम लागू किया गया था.
'शराबियों' से भर रही हैं बिहार की जेलें : आंकड़ों की माने तो एएलटीएफ की बात सच साबित होती है. क्योंकी, राज्य के सभी जिलों में उत्पाद विभाग और मद्य निषेध विभाग सक्रिय है. अगर दोनों विभाग एक्टिव नहीं होती तो हजारों गिरफ्तारियां नहीं होती. गिरफ्तार के बाद कुछ को जमानत मिली, लेकिन ज्यादातर लोग जेल भेजे गए. लेकिन मुश्किल यहीं से शुरू हुई, शराबी कैदियों की संख्या जेलों में बढ़ गई और पहले से जेलों में सजा काट रहे कैदी परेशान हो गए, क्योंकि जेलों में क्षमता से दोगुना ज्यादा कैदी भर गए हैं. आंकड़ों की माने तो अकेले बेउर जेल में 5500 से ज्यादा कैदी हैं. इनमें से 21 सौ से ज्यादा शराब पीने और तस्करी करने के आरोप में बंद हैं.
सरकार के आंकड़ों पर एक नजर: बिहार सरकार के आंकड़ों पर नजर डाले तो जनवरी 2021 से अक्टूबर 2021 तक विशेष छापेमारी कर प्रदेश के जिलों में 49 हजार 900 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. जिसमें शराबी और शराब तस्कर शामिल थे. इस दौरान कुल 38 लाख 72 हजार 645 लीटर अवैध शराब जब्त की गई थी. जिसमें 12 लाख 93 हजार 229 लीटर देशी शराब और 25 लाख 79 हजार 415 लीटर विदेशी शराब शामिल है. पुलिस और उत्पाद विभाग की माने तो कार्रवाई में 1 हजार 590 ऐसे लोग पकड़े गए थे, जो दूसरे राज्यों से आकर बिहार में शराब का सेवन कर रहे थे या फिर तस्करी कर रहे थे.
शराबबंदी मामलों के कारण लेट हो रहे हैं केस : बता दें कि 25 फरवरी 2022, बिहार के शराबबंदी कानून के चलते अदालतों में बढ़ते मुकदमों की संख्या पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि क्या कानून लागू करने से पहले यह देखा कि इसके लिए अदालती ढांचा तैयार है या नहीं? अगर ऐसा कोई अध्ययन किया था तो कोर्ट और जजों की संख्या बढ़ाने को लेकर क्या किया ? कोर्ट ने सरकार से कहा था कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू करने के पहले राज्य सरकार में कोई अध्ययन किया या इसके लिए किसी तरह की तैयारी की? इस बाबत पूरी जानकारी कोर्ट को मुहैया कराएं.
जेल में बढ़ते कैदियों की संख्या पर चिंता : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटना हाईकोर्ट के 26 में से 16 जज बिहार में लागू शराबबंदी कानून से जुड़े मसले ही देखने में व्यस्त हैं. इसके साथ ही बिहार में निचली में भी जमानत याचिकाओं की बाढ़ आ गई है. इस वजह से कोर्ट के 16 जजों को इसकी सुनवाई करनी पड़ रही है. कोर्ट ने यह चिंता भी जताई है कि अगर जमानत याचिकाओं को खारिज किया जाता है जेलों मे कैदियों की संख्या तेजी से बढ़ेगी.
'हम समीक्षा करेंगे' : इधर, राज्य में लगातार बार-बार जहरीली शराब से हो रही मौतों के बीच सरकार की ओर से हर बार एक जैसा ही बयान सामने आता है कि कार्रवाई करेंगे और शराब बंदी को लेकर अभियान तेज करेंगे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद अक्सर कहते है कि "राज्य में शराबबंदी कानून को कड़ाई से लागू करने के लिए समीक्षा की जाएगी.''
सरकार नहीं करती दोषियों पर कार्रवाई?: हालांकि, हर बार की तरफ एक बार फिर विपक्ष की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि सरकार दोषियों पर कार्रवाई नहीं करती है. मुख्य विपक्षी दल आरजेडी ने सरकार पर सीधा निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि शराबबंदी नहीं है, होम सप्लाई हो रहा है.
"हम लोग तो लगातार कहते रहे हैं कि शराबबंदी नहीं है. होम सप्लाई हो रहा है. पुलिस की मिलीभगत से खुलेआम शराब की बिक्री हो रही है. जहरीली शराब से कितने लोगों की मौत हो रही है लेकिन नीतीश कुमार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा है. वृषिण पटेल ने कहा है कि बार-बार नीतीश कुमार से कहा जा रहा है कि शराबबंदी की जो नीति है उसमें बदलाव करें हम लोगों की पार्टी से उन्हें सुझाव लेना चाहिए. हम लोग भी शराबबंदी के पक्षधर हैं लेकिन शराबबंदी गरीबों के लाश पर हो इसके पक्षधर नहीं हैं." - वृषिण पटेल, वरिष्ठ राजद नेता
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