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ये है बिहार की शिक्षा व्यवस्था, शिक्षण संस्थानों पर भी नौकरशाहों ने जमाया कब्जा, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

एक ओर जहां विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का घोर अभाव है तो वहीं दूसरी तरफ बिहार के शिक्षण संस्थानों पर नौकरशाहों का कब्जा है. जिस वजह से प्रदेश में उच्च शिक्षा दम तोड़ रही है. सरकार की नीतियों की वजह से शिक्षा व्यवस्था (Education System in Bihar) पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

बिहार में ब्यूरोक्रेट्स का वर्चस्व
बिहार में ब्यूरोक्रेट्स का वर्चस्व
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Published : Feb 10, 2022, 10:39 PM IST

पटना: इन दिनों बिहार की शिक्षा व्यवस्था (Education System in Bihar) बुरे दौर से गुजर रही है. कुलपति की नियुक्ति को लेकर जहां एक और बवाल खड़ा है, वहीं दूसरी तरफ शिक्षण संस्थानों को नौकरशाहों के हवाले किया जा रहा है. ऐसे में शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार और क्वालिटी एजुकेशन पर बेहतर काम नहीं हो पा रहा है. कहा जा रहा है कि सरकार शिक्षा व्यवस्था में मूलभूत सुधार को लेकर गंभीर नहीं है. ज्यादातर शिक्षण संस्थान नौकरशाहों के भरोसे (Educational Institutions Depend on Bureaucrats) चल रहा है. एकेडमिक जगत से जुड़े लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जा रही है, जिसके चलते शिक्षा के क्षेत्र में विकास के कार्य पूरे तौर पर बाधित है.

ये भी पढ़ें: 'प्रीमियम कॉलेज में एडमिशन के लिए बिहार बोर्ड से मैट्रिक पास छात्रों को मिले आरक्षण'

एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट एक स्वायत्त संस्था है. सन 1964 में स्थापित संस्थान में महत्वपूर्ण शोध कार्य होते हैं और संस्थान के निदेशक के रूप में देश के बड़े शिक्षाविदों की नियुक्ति होती रही है लेकिन पिछले कुछ समय से परंपरा बीते दिनों की बात हो गई है. जून 2018 के बाद से निदेशक के पद पर नौकरशाहों को बिठाया जा रहा है. वर्तमान में संस्थान के निदेशक के पद पर शिक्षा विभाग के सचिव असंगबा चुबाओ हैं. एलएन मिश्रा इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनामिक डेवलपमेंट एंड सोशल चेंज के चेयरमैन मुख्यमंत्री होते हैं. निदेशक के पद पर एकेडमिक और अर्थशास्त्र से जुड़े लोगों की नियुक्ति होती थी लेकिन 2015-16 से निदेशक के पद पर नौकरशाह की नियुक्ति की जा रही है. वर्तमान में एस सिद्धार्थ एलएन मिश्रा इंस्टीट्यूट में निदेशक के पद पर हैं.

बिहार बोर्ड के चेयरमैन भी शिक्षाविद हुआ करते थे लेकिन पिछले कुछ समय से चेयरमैन का प्रभार नौकरशाहों के हाथ में है. वर्तमान में आनंद किशोर बिहार बोर्ड के चेयरमैन हैं. वे पिछले 6 साल से वहां पदस्थापित हैं. उसी तरह बिहार लोक सेवा आयोग के चेयरमैन भी शिक्षाविद हुआ करते थे लेकिन पिछले कुछ समय से वहां भी नौकरशाहों की नियुक्ति होती है. वर्तमान में एके महाजन चेयरमैन के पद पर हैं. इससे पहले वीआरएस लेने के बाद शिशिर सिन्हा को चेयरमैन बनाया गया था.

बीएसएससी के जरिए ग्रैजुएट लेवल पर छात्रों की भर्ती होती है. घोटाले के चलते नौकरशाह सुधीर कुमार लंबे समय तक जेल में रहे थे. उनके कार्यकाल में कर्मचारी चयन घोटाला हुआ था. वर्तमान में भी चेयरमैन के पद पर सीनियर आईएएस दीपक प्रसाद कार्यरत हैं. बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग के जरिए व्याख्याताओं की भर्ती की जाती है. यहां नौकरशाह तो नहीं है लेकिन पेशे से चिकित्सक को चेयरमैन बनाया गया है. फिलहाल राजवर्धन आजाद आयोग के चेयरमैन हैं.

बिहार ओपन स्कूल बोर्ड गठन के बाद से ही नौकरशाहों के हाथ में है. लंबे समय तक आईपीएस दिनेश सिंह बिष्ट वहां चेयरमैन रहे. वर्तमान में आईआरएस सेवा के अधिकारी सतीश चंद्र झा चेयरमैन के पद पर कार्यरत हैं. तकनीकी सेवा आयोग के अध्यक्ष के पद पर भी आईएएस ऑफिसर को बिठाया गया है. लंबे समय से पटना विश्वविद्यालय में कुलपति नहीं है. वहां भी व्यवस्था भगवान भरोसे है. शिक्षा जगत से जुड़े लोग भी हालात को लेकर चिंतित हैं.

एन सिन्हा संस्थान के प्राध्यापक डॉ. विद्यार्थी विकास का मानना है कि शिक्षण संस्थानों में प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका पहले से ही तय है लेकिन अगर सिर्फ पदों पर उन्हें बिठा दिया जाता है तो बहुत सारे विकास कार्य बाधित होते हैं. एकेडमिक जगत से जुड़े लोग शिक्षण संस्थान को जितने अच्छे तरीके से चला सकते हैं, नौकरशाह उतने दक्ष नहीं हो सकते.

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के समाज शास्त्र के प्राध्यापक डॉ. बीएन प्रसाद का कहना है कि समाज में जैसे-जैसे जटिलताएं हैं, वैसे-वैसे विशेषज्ञों की भूमिका बढ़ी है. पहले ट्रेडिशनल सोसाइटी थी और उसकी आवश्यकताएं भी सीमित थी लेकिन समाज का स्वरूप जैसे-जैसे व्यापक हुआ है, वैसे वैसे जटिलताएं भी बढ़ी हैं. विशेषज्ञों की भूमिका भी व्यापक हुई है. विकास कार्यों में नौकरशाहों की भूमिका जरूर है लेकिन शिक्षण संस्थानों का संचालन ठीक तरीके से हो, इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को ही शिक्षण संस्थानों पर प्रमुख के पद पर नियुक्त किए जाएं.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था कैसी है, यह किसी से छुपी हुई नहीं है. वाकई अगर सरकार की मंशा शिक्षा में सुधार की है तो राष्ट्रीय स्तर पर एकेडमिक जगत से जुड़े लोगों को ही शिक्षण संस्थानों का प्रमुख बनाया जाए. नौकरशाह के जरिए शिक्षा व्यवस्था को गति नहीं दी जा सकती है. बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था के मूल में भी शायद नौकरशाही है.

ये भी पढ़ें: Education System in Patna: जिस स्कूल का लालू ने किया उद्घाटन, नीतीश सरकार में कैसे बन गया गैराज?

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पटना: इन दिनों बिहार की शिक्षा व्यवस्था (Education System in Bihar) बुरे दौर से गुजर रही है. कुलपति की नियुक्ति को लेकर जहां एक और बवाल खड़ा है, वहीं दूसरी तरफ शिक्षण संस्थानों को नौकरशाहों के हवाले किया जा रहा है. ऐसे में शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार और क्वालिटी एजुकेशन पर बेहतर काम नहीं हो पा रहा है. कहा जा रहा है कि सरकार शिक्षा व्यवस्था में मूलभूत सुधार को लेकर गंभीर नहीं है. ज्यादातर शिक्षण संस्थान नौकरशाहों के भरोसे (Educational Institutions Depend on Bureaucrats) चल रहा है. एकेडमिक जगत से जुड़े लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जा रही है, जिसके चलते शिक्षा के क्षेत्र में विकास के कार्य पूरे तौर पर बाधित है.

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एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट एक स्वायत्त संस्था है. सन 1964 में स्थापित संस्थान में महत्वपूर्ण शोध कार्य होते हैं और संस्थान के निदेशक के रूप में देश के बड़े शिक्षाविदों की नियुक्ति होती रही है लेकिन पिछले कुछ समय से परंपरा बीते दिनों की बात हो गई है. जून 2018 के बाद से निदेशक के पद पर नौकरशाहों को बिठाया जा रहा है. वर्तमान में संस्थान के निदेशक के पद पर शिक्षा विभाग के सचिव असंगबा चुबाओ हैं. एलएन मिश्रा इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनामिक डेवलपमेंट एंड सोशल चेंज के चेयरमैन मुख्यमंत्री होते हैं. निदेशक के पद पर एकेडमिक और अर्थशास्त्र से जुड़े लोगों की नियुक्ति होती थी लेकिन 2015-16 से निदेशक के पद पर नौकरशाह की नियुक्ति की जा रही है. वर्तमान में एस सिद्धार्थ एलएन मिश्रा इंस्टीट्यूट में निदेशक के पद पर हैं.

बिहार बोर्ड के चेयरमैन भी शिक्षाविद हुआ करते थे लेकिन पिछले कुछ समय से चेयरमैन का प्रभार नौकरशाहों के हाथ में है. वर्तमान में आनंद किशोर बिहार बोर्ड के चेयरमैन हैं. वे पिछले 6 साल से वहां पदस्थापित हैं. उसी तरह बिहार लोक सेवा आयोग के चेयरमैन भी शिक्षाविद हुआ करते थे लेकिन पिछले कुछ समय से वहां भी नौकरशाहों की नियुक्ति होती है. वर्तमान में एके महाजन चेयरमैन के पद पर हैं. इससे पहले वीआरएस लेने के बाद शिशिर सिन्हा को चेयरमैन बनाया गया था.

बीएसएससी के जरिए ग्रैजुएट लेवल पर छात्रों की भर्ती होती है. घोटाले के चलते नौकरशाह सुधीर कुमार लंबे समय तक जेल में रहे थे. उनके कार्यकाल में कर्मचारी चयन घोटाला हुआ था. वर्तमान में भी चेयरमैन के पद पर सीनियर आईएएस दीपक प्रसाद कार्यरत हैं. बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग के जरिए व्याख्याताओं की भर्ती की जाती है. यहां नौकरशाह तो नहीं है लेकिन पेशे से चिकित्सक को चेयरमैन बनाया गया है. फिलहाल राजवर्धन आजाद आयोग के चेयरमैन हैं.

बिहार ओपन स्कूल बोर्ड गठन के बाद से ही नौकरशाहों के हाथ में है. लंबे समय तक आईपीएस दिनेश सिंह बिष्ट वहां चेयरमैन रहे. वर्तमान में आईआरएस सेवा के अधिकारी सतीश चंद्र झा चेयरमैन के पद पर कार्यरत हैं. तकनीकी सेवा आयोग के अध्यक्ष के पद पर भी आईएएस ऑफिसर को बिठाया गया है. लंबे समय से पटना विश्वविद्यालय में कुलपति नहीं है. वहां भी व्यवस्था भगवान भरोसे है. शिक्षा जगत से जुड़े लोग भी हालात को लेकर चिंतित हैं.

एन सिन्हा संस्थान के प्राध्यापक डॉ. विद्यार्थी विकास का मानना है कि शिक्षण संस्थानों में प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका पहले से ही तय है लेकिन अगर सिर्फ पदों पर उन्हें बिठा दिया जाता है तो बहुत सारे विकास कार्य बाधित होते हैं. एकेडमिक जगत से जुड़े लोग शिक्षण संस्थान को जितने अच्छे तरीके से चला सकते हैं, नौकरशाह उतने दक्ष नहीं हो सकते.

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के समाज शास्त्र के प्राध्यापक डॉ. बीएन प्रसाद का कहना है कि समाज में जैसे-जैसे जटिलताएं हैं, वैसे-वैसे विशेषज्ञों की भूमिका बढ़ी है. पहले ट्रेडिशनल सोसाइटी थी और उसकी आवश्यकताएं भी सीमित थी लेकिन समाज का स्वरूप जैसे-जैसे व्यापक हुआ है, वैसे वैसे जटिलताएं भी बढ़ी हैं. विशेषज्ञों की भूमिका भी व्यापक हुई है. विकास कार्यों में नौकरशाहों की भूमिका जरूर है लेकिन शिक्षण संस्थानों का संचालन ठीक तरीके से हो, इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को ही शिक्षण संस्थानों पर प्रमुख के पद पर नियुक्त किए जाएं.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था कैसी है, यह किसी से छुपी हुई नहीं है. वाकई अगर सरकार की मंशा शिक्षा में सुधार की है तो राष्ट्रीय स्तर पर एकेडमिक जगत से जुड़े लोगों को ही शिक्षण संस्थानों का प्रमुख बनाया जाए. नौकरशाह के जरिए शिक्षा व्यवस्था को गति नहीं दी जा सकती है. बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था के मूल में भी शायद नौकरशाही है.

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