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पीएमसीएच के पुनर्निर्माण प्रक्रिया के दौरान फिर उठी हेरिटेज भवनों के संरक्षण की मांग

पीएमसीएच के पुनर्निर्माण प्रक्रिया (PMCH reconstruction process) के दौरान एक बार फिर ऐतिहासिक भवनों के संरक्षण की मांग उठी है. वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि पुनर्निर्माण के साथ ही हेरिटेज भवनों का संरक्षण भी जरूरी है ताकि पीएमसीएच के गौरवशाली इतिहास की अनुभूति कॉलेज छात्र भी महसूस कर सकें. पीएमसीएच के कुछ भवनों का इतिहास पीएमसीएच से भी पुराना है. पढ़ें पूरी खबर.

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Published : Feb 26, 2022, 12:22 PM IST

पटना: पीएमसीएच को वर्ल्ड क्लास सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (PMCH World Class Super Specialty Hospital) बनाने के लिए पुनर्निर्माण प्रक्रिया काम चल रहा है. पुनर्निर्माण प्रक्रिया के तहत अस्पताल के सभी पुराने निर्माण को ध्वस्त किया जाना है और नये भवन तैयार किये जायेंगे. ऐसे में पीएमसीएच के 97वें स्थापना दिवस (97th Foundation Day of PMCH) के मौके पर पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (Patna Medical College Hospital) के पूर्ववर्ती छात्रों ने अस्पताल के ऐतिहासिक भवनों को संरक्षित (Demand for heritage buildings conservation in PMCH) करने की मांग की है. वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि नए निर्माण के साथ-साथ पुराने हेरिटेज भवनों का संरक्षण भी उतना ही जरूरी है. जिससे पीएमसीएच के गौरवशाली इतिहास की अनुभूति कॉलेज में आने वाले छात्र भी महसूस कर सकें.

पीएमसीएच के कुछ भवनों का इतिहास पीएमसीएच से भी पुराना है. अस्पताल का अधीक्षक कक्ष और हथुआ वार्ड 1874 में बना था. वहां पूर्व से टेंपल मेडिकल स्कूल चलता था. इसके अलावा अस्पताल के वर्तमान एडमिनिस्ट्रेटिव भवन, जिसमें प्रिंसिपल कार्यालय है, वहां बांकीपुर मेडिकल हॉल था. यह ब्रिटिश सेना के जवानों के लिए था. ऐसे में पीएमसीएच के रिटायर्ड वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि पुनर्निर्माण जरूरी है लेकिन इसके साथ-साथ हेरिटेज के तौर पर कुछ भवनों के अवशेष भी संरक्षित किए जाएं.

ये भी पढ़ें: 25 फरवरी को 97 साल का हो जाएगा PMCH, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे करेंगे कार्यक्रम का उद्घाटन

पीएमसीएच के एडमिनिस्ट्रेटिव भवन और हथुआ वार्ड का इतिहास काफी लंबा रहा है. यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जैसे कई विभूति भी आए थे. पीएमसीएच के पूर्ववर्ती छात्र व आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रोफेसर डॉ. ए.के. अग्रवाल ने कहा कि अधीक्षक कक्ष का भवन और प्राचार्य कक्ष का भवन सबसे पुराना है. अधीक्षक कक्ष के पीछे जो हथुआ वार्ड है, वहीं से 1925 में प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज अस्पताल शुरू हुआ था. इससे पहले हथुआ वार्ड में टेंपल मेडिकल स्कूल चला करता था.

प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज 1925 में जब बना था, उस जमाने में दरभंगा महाराज ने 5 लाख और इतनी ही राशि हथुआ महाराज ने दान दिया था. यह भवन 1874 में बना था. जब पीएमसीएच शुरू हुआ था, उस समय पूरे अस्पताल का कार्य इसी भवन से होता था. उन्होंने सरकार से हेरिटेज प्रिजर्वेशन के नाम पर प्रिंसिपल कार्यालय के भवन को तोड़ने से बचाने और उसे संरक्षित करने की मांग की. साथ ही कहा कि समय-समय पर उसका जीर्णोद्धार होता रहेगा.

देखें विशेष रिपोर्ट

ये भी पढ़ें: पटना में स्कूल संचालक पर ताबड़तोड़ फायरिंग, PMCH में भर्ती

रूबन हॉस्पिटल के संचालक और पीएमसीएच के पूर्ववर्ती छात्र, प्रख्यात चिकित्सक डॉक्टर सत्यजीत सिंह ने कहा कि इस परिसर में मेडिकल एजुकेशन 1874 से हो रहा है. उसके बाद यहां पर बांकीपुर हॉस्पिटल बना जो ब्रिटिश सेना के जवानों के लिए था. 1925 में जब प्रिंस ऑफ वेल्स आए थे, तब उन्होंने पीएमसीएच की शुरुआत की थी. इस अस्पताल का काफी गौरवपूर्ण इतिहास रहा है और 1943 में जब महात्मा गांधी बिहार दौरे पर आए थे, तब उनके साथ उनकी पोती मनु भी आई थीं. उन्हें अपेंडिक्स की शिकायत हुई और पीएमसीएच में महात्मा गांधी की मौजूदगी में वर्तमान में स्थित हथुआ वार्ड में मनु के अपेंडिक्स का सफल ऑपरेशन संपन्न हुआ था. पीएमसीएच के आर्काइव में इसका फोटो भी मौजूद है. उन्होंने कहा कि पुनर्निर्माण प्रक्रिया के तहत सभी भवन टूट रहे हैं. ऐसे में उन्होंने सरकार से अनुरोध किया है कि दुनिया भर में हेरिटेज के संरक्षण की प्रवृत्ति है. पीएमसीएच के हथुआ वार्ड के एक छोटे स्पेस और प्रिंसिपल कक्ष के फोन को अलग कर टूटने से बचाया जाए. उसे हेरिटेज के तौर पर संरक्षित किया जाए.

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पटना: पीएमसीएच को वर्ल्ड क्लास सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (PMCH World Class Super Specialty Hospital) बनाने के लिए पुनर्निर्माण प्रक्रिया काम चल रहा है. पुनर्निर्माण प्रक्रिया के तहत अस्पताल के सभी पुराने निर्माण को ध्वस्त किया जाना है और नये भवन तैयार किये जायेंगे. ऐसे में पीएमसीएच के 97वें स्थापना दिवस (97th Foundation Day of PMCH) के मौके पर पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (Patna Medical College Hospital) के पूर्ववर्ती छात्रों ने अस्पताल के ऐतिहासिक भवनों को संरक्षित (Demand for heritage buildings conservation in PMCH) करने की मांग की है. वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि नए निर्माण के साथ-साथ पुराने हेरिटेज भवनों का संरक्षण भी उतना ही जरूरी है. जिससे पीएमसीएच के गौरवशाली इतिहास की अनुभूति कॉलेज में आने वाले छात्र भी महसूस कर सकें.

पीएमसीएच के कुछ भवनों का इतिहास पीएमसीएच से भी पुराना है. अस्पताल का अधीक्षक कक्ष और हथुआ वार्ड 1874 में बना था. वहां पूर्व से टेंपल मेडिकल स्कूल चलता था. इसके अलावा अस्पताल के वर्तमान एडमिनिस्ट्रेटिव भवन, जिसमें प्रिंसिपल कार्यालय है, वहां बांकीपुर मेडिकल हॉल था. यह ब्रिटिश सेना के जवानों के लिए था. ऐसे में पीएमसीएच के रिटायर्ड वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि पुनर्निर्माण जरूरी है लेकिन इसके साथ-साथ हेरिटेज के तौर पर कुछ भवनों के अवशेष भी संरक्षित किए जाएं.

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पीएमसीएच के एडमिनिस्ट्रेटिव भवन और हथुआ वार्ड का इतिहास काफी लंबा रहा है. यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जैसे कई विभूति भी आए थे. पीएमसीएच के पूर्ववर्ती छात्र व आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रोफेसर डॉ. ए.के. अग्रवाल ने कहा कि अधीक्षक कक्ष का भवन और प्राचार्य कक्ष का भवन सबसे पुराना है. अधीक्षक कक्ष के पीछे जो हथुआ वार्ड है, वहीं से 1925 में प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज अस्पताल शुरू हुआ था. इससे पहले हथुआ वार्ड में टेंपल मेडिकल स्कूल चला करता था.

प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज 1925 में जब बना था, उस जमाने में दरभंगा महाराज ने 5 लाख और इतनी ही राशि हथुआ महाराज ने दान दिया था. यह भवन 1874 में बना था. जब पीएमसीएच शुरू हुआ था, उस समय पूरे अस्पताल का कार्य इसी भवन से होता था. उन्होंने सरकार से हेरिटेज प्रिजर्वेशन के नाम पर प्रिंसिपल कार्यालय के भवन को तोड़ने से बचाने और उसे संरक्षित करने की मांग की. साथ ही कहा कि समय-समय पर उसका जीर्णोद्धार होता रहेगा.

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रूबन हॉस्पिटल के संचालक और पीएमसीएच के पूर्ववर्ती छात्र, प्रख्यात चिकित्सक डॉक्टर सत्यजीत सिंह ने कहा कि इस परिसर में मेडिकल एजुकेशन 1874 से हो रहा है. उसके बाद यहां पर बांकीपुर हॉस्पिटल बना जो ब्रिटिश सेना के जवानों के लिए था. 1925 में जब प्रिंस ऑफ वेल्स आए थे, तब उन्होंने पीएमसीएच की शुरुआत की थी. इस अस्पताल का काफी गौरवपूर्ण इतिहास रहा है और 1943 में जब महात्मा गांधी बिहार दौरे पर आए थे, तब उनके साथ उनकी पोती मनु भी आई थीं. उन्हें अपेंडिक्स की शिकायत हुई और पीएमसीएच में महात्मा गांधी की मौजूदगी में वर्तमान में स्थित हथुआ वार्ड में मनु के अपेंडिक्स का सफल ऑपरेशन संपन्न हुआ था. पीएमसीएच के आर्काइव में इसका फोटो भी मौजूद है. उन्होंने कहा कि पुनर्निर्माण प्रक्रिया के तहत सभी भवन टूट रहे हैं. ऐसे में उन्होंने सरकार से अनुरोध किया है कि दुनिया भर में हेरिटेज के संरक्षण की प्रवृत्ति है. पीएमसीएच के हथुआ वार्ड के एक छोटे स्पेस और प्रिंसिपल कक्ष के फोन को अलग कर टूटने से बचाया जाए. उसे हेरिटेज के तौर पर संरक्षित किया जाए.

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