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बिहार पुलिस को 'जनसंख्या के आधार पर' अपराध ग्राफ दिखाने की क्यों पड़ी जरूरत.. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में इन दिनों अपराध का ग्राफ (Crime Graph In Bihar) लगातार बढ़ता जा रहा है. जिसको लेकर काफी बयानबाजी भी की जाती है. वहीं पुलिस मुख्यालय ने जनसंख्या का हवाला देकर अपराध का ग्राफ बढ़ने की बात कही है.

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Published : Aug 6, 2021, 11:49 AM IST

Updated : Aug 6, 2021, 2:14 PM IST

पटना: बिहार की राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में इन दिनों अपराध का ग्राफ (Crime Graph In Bihar) लगातार बढ़ता जा रहा है. अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि आम इंसान तो छोड़िए, पुलिस वालों पर भी गोली चलाने से परहेज नहीं कर रहे हैं. बिहार में नई सरकार के गठन के बाद बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं.

इसे भी पढ़ें: बिहार के कई थानों में नहीं है लैंडलाइन फोन की सुविधा, क्राइम पर कैसे होगा कंट्रोल?

बिहार में बढ़ते अपराध को लेकर पुलिस मुख्यालय (Police Headquarters) की ओर से एक दावा किया गया है. मुख्यालय ने दावा किया है कि 2005 के मुकाबले अपराध दर में कमी आई है. हत्या, फिरौती और अपहरण के मामले समेत अधिकांश मामले में कमी आई है. दरअसल पुलिस मुख्यालय की माने तो अपराध दर का निर्धारण प्रति एक लाख की जनसंख्या पर घटित घटनाओं पर किया जाता है.

ईटीवी भारत GFX.
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ये भी पढ़ें: मुंगेर में बंद हुई 'तीसरी आंख', 32 में से 29 CCTV बंद

पुलिस मुख्यालय के मुताबिक वर्ष 2005 में बिहार के संभावित जनसंख्या 8,98,02000 थी जो वर्ष 2019 में 12,01,01000 हो गई है. साल 2005 के मुकाबले इस वर्ष जनसंख्या में 33.72% की वृद्धि हुई है. इस वजह से अपराध के आंकड़े में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. पुलिस मुख्यालय ने दावा किया है कि अब राज्य में अपहरण के ज्यादातर मामले शादी से जुड़े हुए हैं. 70% मामलों की जांच में प्रेम प्रसंग की बात सामने आती है.

बिहार पहले और आज भी कहीं न कहीं क्राइम वाला राज्य माना जाता है. बिहार की तस्वीर इन दिनों पुलिस मुख्यालय के अनुसार बदल रही है. दरअसल पुलिस मुख्यालय के आंकड़े के दावे के अनुसार बिहार में अब शादी के लिए अधिक अपहरण हो रहा है. किडनैपिंग में अधिकांश मामले शादी के लिए अपहरण के साथ प्रेम प्रसंग से जुड़ा रहता है.

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यही नहीं पुलिस मुख्यालय के मुताबिक महिलाओं के विरुद्ध अपराध की घटनाओं में वर्ष 2019 की राष्ट्रीय अपराध दर 62.4 प्रतिशत है. वहीं बिहार में यह दर 32.3 प्रतिशत रही जो की राष्ट्रीय औसत का लगभग आधा है. पुलिस मुख्यालय के माध्यम से दी गई दलील में यह भी कहा गया है कि 2005 में बिहार इस मामले में पहले स्थान पर था. वहीं आज 28वें स्थान पर है.

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दंगा के मामले में वर्ष 2018 में बिहार का स्थान जहां चौथा स्थान था, वहीं 2019 में 8वां स्थान है. पुलिस मुख्यालय के माध्यम से एनसीआरबी के आंकड़े का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2019 में कुल संगे अपराध का राष्ट्रीय औसत 385.5 है. 2019 में 224.0 प्रतिशत अपराध दर के साथ बिहार 25वें स्थान पर रहा.

पुलिस मुख्यालय के आंकड़े के मुताबिक साल 2005 में अपहरण के 251 कांड दर्ज किए गए थे. वर्ष 2021 में जून तक हत्या की घटनाओं का औसत 1.72 प्रतिशत रहा. वहीं वर्ष 2019 में हत्या के शिर्ष में राष्ट्रीय औसत दर 2.2 प्रतिशत है. हत्या के मामले में वर्ष 2015 से 2019 के दौरान बिहार का स्थान 9 से 17 के बीच रहा.

एनसीआरबी (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए पुलिस मुख्यालय ने कहा कि चोरी के मामले में राष्ट्रीय औसत अपराध दर 50.5 है. इस वर्ष में चोरी की घटनाओं में बिहार की अपराध दर 29.1 प्रतिशत रहा, जिसके साथ बिहार देश में 13वें स्थान पर रहा. हालांकि पुलिस मुख्यालय के अनुसार वाहन की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि की वजह से गाड़ियों की चोरी की संख्या में वृद्धि स्वाभाविक मानी गई है.

सवाल यह उठ रहा है कि पुलिस मुख्यालय के माध्यम से 2005 से 2021 की तुलना की गई है और खुद को पुलिस से बचाती दिख रही है. कहीं न कहीं यह सवाल उठ रहा है कि 2005 में भी यही पुलिस प्रशासन काम कर रही थी और आज भी यही पुलिस काम कर रही है. आखिर क्यों जनसंख्या के आधार पर पुलिस को अपराध का ग्राफ दिखाने की जरूरत आन पड़ी है. हालांंकि 2005 की तुलना में 2021 में पुलिस बल में भी काफी बढ़ोतरी हुई है.

पटना: बिहार की राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में इन दिनों अपराध का ग्राफ (Crime Graph In Bihar) लगातार बढ़ता जा रहा है. अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि आम इंसान तो छोड़िए, पुलिस वालों पर भी गोली चलाने से परहेज नहीं कर रहे हैं. बिहार में नई सरकार के गठन के बाद बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं.

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बिहार में बढ़ते अपराध को लेकर पुलिस मुख्यालय (Police Headquarters) की ओर से एक दावा किया गया है. मुख्यालय ने दावा किया है कि 2005 के मुकाबले अपराध दर में कमी आई है. हत्या, फिरौती और अपहरण के मामले समेत अधिकांश मामले में कमी आई है. दरअसल पुलिस मुख्यालय की माने तो अपराध दर का निर्धारण प्रति एक लाख की जनसंख्या पर घटित घटनाओं पर किया जाता है.

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पुलिस मुख्यालय के मुताबिक वर्ष 2005 में बिहार के संभावित जनसंख्या 8,98,02000 थी जो वर्ष 2019 में 12,01,01000 हो गई है. साल 2005 के मुकाबले इस वर्ष जनसंख्या में 33.72% की वृद्धि हुई है. इस वजह से अपराध के आंकड़े में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. पुलिस मुख्यालय ने दावा किया है कि अब राज्य में अपहरण के ज्यादातर मामले शादी से जुड़े हुए हैं. 70% मामलों की जांच में प्रेम प्रसंग की बात सामने आती है.

बिहार पहले और आज भी कहीं न कहीं क्राइम वाला राज्य माना जाता है. बिहार की तस्वीर इन दिनों पुलिस मुख्यालय के अनुसार बदल रही है. दरअसल पुलिस मुख्यालय के आंकड़े के दावे के अनुसार बिहार में अब शादी के लिए अधिक अपहरण हो रहा है. किडनैपिंग में अधिकांश मामले शादी के लिए अपहरण के साथ प्रेम प्रसंग से जुड़ा रहता है.

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यही नहीं पुलिस मुख्यालय के मुताबिक महिलाओं के विरुद्ध अपराध की घटनाओं में वर्ष 2019 की राष्ट्रीय अपराध दर 62.4 प्रतिशत है. वहीं बिहार में यह दर 32.3 प्रतिशत रही जो की राष्ट्रीय औसत का लगभग आधा है. पुलिस मुख्यालय के माध्यम से दी गई दलील में यह भी कहा गया है कि 2005 में बिहार इस मामले में पहले स्थान पर था. वहीं आज 28वें स्थान पर है.

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दंगा के मामले में वर्ष 2018 में बिहार का स्थान जहां चौथा स्थान था, वहीं 2019 में 8वां स्थान है. पुलिस मुख्यालय के माध्यम से एनसीआरबी के आंकड़े का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2019 में कुल संगे अपराध का राष्ट्रीय औसत 385.5 है. 2019 में 224.0 प्रतिशत अपराध दर के साथ बिहार 25वें स्थान पर रहा.

पुलिस मुख्यालय के आंकड़े के मुताबिक साल 2005 में अपहरण के 251 कांड दर्ज किए गए थे. वर्ष 2021 में जून तक हत्या की घटनाओं का औसत 1.72 प्रतिशत रहा. वहीं वर्ष 2019 में हत्या के शिर्ष में राष्ट्रीय औसत दर 2.2 प्रतिशत है. हत्या के मामले में वर्ष 2015 से 2019 के दौरान बिहार का स्थान 9 से 17 के बीच रहा.

एनसीआरबी (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए पुलिस मुख्यालय ने कहा कि चोरी के मामले में राष्ट्रीय औसत अपराध दर 50.5 है. इस वर्ष में चोरी की घटनाओं में बिहार की अपराध दर 29.1 प्रतिशत रहा, जिसके साथ बिहार देश में 13वें स्थान पर रहा. हालांकि पुलिस मुख्यालय के अनुसार वाहन की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि की वजह से गाड़ियों की चोरी की संख्या में वृद्धि स्वाभाविक मानी गई है.

सवाल यह उठ रहा है कि पुलिस मुख्यालय के माध्यम से 2005 से 2021 की तुलना की गई है और खुद को पुलिस से बचाती दिख रही है. कहीं न कहीं यह सवाल उठ रहा है कि 2005 में भी यही पुलिस प्रशासन काम कर रही थी और आज भी यही पुलिस काम कर रही है. आखिर क्यों जनसंख्या के आधार पर पुलिस को अपराध का ग्राफ दिखाने की जरूरत आन पड़ी है. हालांंकि 2005 की तुलना में 2021 में पुलिस बल में भी काफी बढ़ोतरी हुई है.

Last Updated : Aug 6, 2021, 2:14 PM IST
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