पटना: विधानसभा चुनाव 2020 में जेडीयू के तीसरे नंबर की पार्टी होने के बाद भी नीतीश कुमार एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद भी नीतीश कुमार अपने सहयोगी दलों के नेताओं की बयानबाजी पर कंट्रोल नहीं लगा पा रहे हैं. यहां तक कि पिछले कुछ महीनों में चाहे वह जातीय जनगणना का मामला हो या फिर जनसंख्या नियंत्रण कानून का मामला हो, एनडीए की बैठक में भी उनके खिलाफ अब लोग बोलने लगे हैं. हाल में नीति आयोग की रिपोर्ट के बाद विशेष राज्य के दर्जे का मामला और शराबबंदी जैसे बड़े मुद्दे पर विपक्ष से ज्यादा सहयोगी दल ही सीएम नीतीश की चुनौती (CM Nitish Challenges in New Year) बढ़ा रहे हैं.
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नीतीश कुमार के लिए नया साल चुनौतियों से भरा होना तय है. जेडीयू के वरिष्ठ नेता और ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार का कहना है कि नीतीश कुमार हमेशा चुनौतियों से ही खेलते रहे हैं. जब उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी उससे अधिक बड़ी चुनौती अब नहीं मिल सकती है.
''जब नीतीश कुमार ने उस समय की मुश्किलों को आसानी से पार कर लिया और बिहार को आज इस स्थिति में पहुंचा दिया है, तो अब कोई भी चुनौती को हंसते-हंसते पार कर लेंगे. लेकिन, विरोधियों को मौका नहीं देंगे. सरकार के कामकाज से जनता तो खुश है, लेकिन परेशानी सिर्फ आरजेडी को हो रही है.''- श्रवण कुमार, मंत्री, ग्रामीण विकास विभाग
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संख्या बल के हिसाब से विपक्ष इस बार काफी मजबूत है. विपक्ष के पास 110 सदस्यों का साथ है. आरजेडी और कांग्रेस के बीच विधानसभा उपचुनाव में जरूर मतभेद हुए थे, उसके बावजूद विपक्ष तेजस्वी के साथ है. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है और पहले भी जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी को आरजेडी की तरफ से ऑफर दिया जा चुका है. जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी भी अपनी नाराजगी कई बार जता चुके हैं.
''नीतीश कुमार को जनता ने 2020 के चुनाव में ही अस्वीकार कर दिया है. नीतीश कुमार ने विश्वास खो दिया है और सहयोगी दलों को पता है कि नीतीश कुमार आगे आने वाले चुनाव चाहे 2024 में हो या 2025 में उनकी नैया पार नहीं कर सकते हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव की तरफ लोग देख रहे हैं और सब का साथ तेजस्वी को मिलेगा.''- एजाज अहमद, आरजेडी प्रवक्ता
''चार दल मिलकर एनडीए है जो बिहार के हित में काम कर रहे हैं. हमारी पार्टी का अलग एजेंडा है और उनकी पार्टी का अलग एजेंडा है. उनकी पार्टी का एजेंडा हम नहीं मानेंगे, हमारी पार्टी का एजेंडा वो नहीं मानेंगे. हम लोग बिहार के विकास के लिए कॉमन मिनिमम प्रोगाम पर काम कर रहे हैं.''- अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता
''नीतीश कुमार 2020 के विधानसभा चुनाव में कमजोर हुए हैं. उनकी पार्टी के विधायक की संख्या भी घटी है, लेकिन इसके बावजूद न तो बीजेपी के पास और ना ही आरजेडी के पास नीतीश कुमार का कोई ऑप्शन है, इसलिए नए साल में चुनौतियां भले अधिक हों, लेकिन बहुत ज्यादा मुश्किल खड़ी होगी, ऐसा नहीं लगता है.''- प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ
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बता दें कि हाल के दिनों में बीजेपी के मंत्री से लेकर विधायक तक की बयानबाजी बढ़ी है. बीजेपी की तरफ से जातीय जनगणना कराने का विरोध किया गया. विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर भी सवाल खड़ा किया जा रहा है. वहीं, जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की मांग भी हो रही है. सहयोगी जीतनराम मांझी का शराबबंदी कानून पर सवाल (Manjhi question on prohibition law) खड़ा कर रहे हैं. यही नहीं अपने बेटे के विभाग में 1000 करोड़ की राशि की मांग भी कर दी और नहीं देने पर एनडीए से अलग होने की चेतावनी भी दे दी थी.
जेडीयू के नेता भी बयानबाजी में पीछे नहीं हैं. गोपाल मंडल से लेकर कई नेता अपने बयानों से सहयोगी दलों की नाराजगी और नीतीश कुमार की मुश्किलें भी बढ़ा रहे हैं. विधानसभा से लेकर लोकसभा में भी जेडीयू और बीजेपी के बीच विरोधाभास साफ दिखा है. डिप्टी सीएम रेणु देवी से लेकर बीजेपी विधायक निक्की हेंब्रम और बीजेपी के कई मंत्रियों का बयान जिस प्रकार से हाल के दिनों में आया है, साफ है कि सीएम नीतीश कमजोर हुए हैं. मांझी भी खुले मंच से शराबबंदी के बड़े फैसले पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. ऐसे में तय है कि आने वाला साल नीतीश कुमार के लिए चुनौतियों भरा होगा. ऐसे में चुनौतियों से नीतीश कैसे नहीं निपटते हैं, यह देखना भी दिलचस्प होगा.
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