जमुई: जमुई में नक्सल प्रभावित इलाके (Naxal in Jamui) में इन दिनों बच्चों में शिक्षा और संस्कार की अलख जगाई जा रही है. जर्मनी की संस्था टीडीएच (German organization TDH) और नव भारत जागृति केंद्र के सहयोग से धीरेंद्र कुमार धीरज बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं. इस संस्था के जरिए नक्सल प्रभावित क्षेत्र के 15 आदिवासी बाहुल्य गांव में 450 बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, इसके लिए सभी गांव में एक-एक शिक्षक को नियुक्त किया गया है. इतनी ही नहीं सभी शिक्षकों को 6000 रुपये प्रति महीना मानदेय दिया जा रहा है.
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पायलट प्रोजेक्ट के तहत पिछले साल के अप्रैल माह से ही बच्चों को चयनित कर पढ़ाने का काम शुरू किया गया है. ईटीवी भारत को धीरेंद्र ने बताया कि सामाजिक कार्यों के दौरान उन्होंने उन बच्चों के दर्द को सुना और एक योजना बनाकर बच्चों को शिक्षित बनाने का बीड़ा उठाया. शुरूआती दौर में बच्चों के अभिभावकों को समझाने में काफी परेशानी हुई. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई उनके बच्चों को पढ़ाने लिखाने का कार्य करेगा. इन सबके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आदिवासी समुदाय के ही शिक्षित लोगों को शिक्षक के रूप में चयनित कर बच्चों को पढ़ाने में जुट गए.
वर्तमान में 450 बच्चे इसी इलाके में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. इन बच्चों को पढ़ने लिखने के साथ खेलकूद की सामग्री तक उपलब्ध कराई जा रही है. साथ ही इन बच्चों को स्थानीय स्कूलों से भी जोड़ा जा रहा है. धीरेंद्र कुमार धीरज का कहना है कि आने वाले समय में बच्चों के अभिभावकों के जीविकोपार्जन को लेकर कार्य किया जाएगा, इसके लिए कार्य योजना बनाई जा रही है. जल्द ही 10 अन्य गांव को इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत जोड़ा जाएगा.
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चकाई प्रखंड में पोझा पंचायत के चीहरा, बेहरा, धमना, पोजहा, सिकटिया, कर्माकोला, बेलखरी और मंजलाकोला गांव के 450 चयनित बच्चों को स्थानीय आदिवासी समुदाय के शिक्षकों के सहयोग से शिक्षित किया जा रहा है. यह इलाका एक दशक पहले नक्सलियों के रेड कारिडोर के रूप में विख्यात था. नक्सली इस इलाके में दिन में ही जनता दरबार लगाते थे. समय के साथ सुरक्षा बलों की कार्रवाई से नक्सलियों की गतिविधियां थम गई.
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