पटना: बिहार में सुशासन का दावा किया जाता है. राज्य के नौकरशाहों पर सुशासन को धरातल पर लाने का जिम्मा है. हाल के कुछ वर्षों में दूसरे राज्यों से प्रतिनियुक्ति पर नौकरशाहों को लाने की परंपरा बनी है. यही परंपरा सरकार के लिए गले की फांस बन गई है. प्रतिनियुक्ति पर आए (Deputation to bureaucrats in Bihar) अधिकारियों ने सुशासन को कई बार दागदार (Bureaucrats came on deputation caused trouble) किया है. कुछ अधिकारियों ने जरूर अपनी जिम्मेदारियों का शानदार तरीके से निर्वहन किया है.
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दूसरे राज्यों से आए अधिकारियों ने कराई फजीहत: बिहार विकास के मामले में अव्वल है. विकास दर डबल डिजिट में है और नौकरशाहों के कंधों पर राज्य को विकास के पथ पर आगे ले जाने की जिम्मेदारी है. हाल के कुछ वर्षों में सरकार ने दूसरे राज्यों से अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर बुलाया है. कुछ एक अधिकारियों ने तो बिहार के विकास में कदमताल किया लेकिन ज्यादातर अधिकारियों ने सुशासन के चेहरे को दागदार किया. दूसरे राज्यों से प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारियों पर कई गंभीर आरोप भी लगे हैं. अंततः सरकार को उन्हें उनके कैडर वापस भेजना पड़ा.
कइयों पर लगे गंभीर आरोप: सबसे चर्चित नाम गुजरात कैडर के अधिकारी अनुपम सुमन का है. उन्हें डेपुटेशन पर बिहार लाया गया था. अनुपम सुमन की पोस्टिंग पटना नगर निगम में नगर आयुक्त के पद पर की गई. उन पर कई गंभीर आरोप लगे. बिना टेंडर के ठेका दिया गया, घोर विभागीय लापरवाही के चलते पटना जलमग्न हुआ. इसके चलते सरकार की खूब फजीहत हुई. फिलहाल अनुपम सुमन प्लूरल्स पार्टी की सियासत कर रहे हैं. अब तक सरकार की ओर से इनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है.
गुजरात कैडर से एक और अधिकारी रंजीत कुमार डेपुटेशन पर बिहार आए. शिक्षा विभाग में निदेशक के पद पर काम किया और फिलहाल बीपीएससी प्रश्नपत्र लीक मामले में वे सुर्खियों में हैं. आर्थिक अपराध की एसआईटी टीम ने रंजीत कुमार से प्रश्नपत्र लीक मामले में पूछताछ भी की है. फिलहाल जांच की प्रक्रिया जारी है.
'बिहार में डेपुटेशन घोटाला चल रहा है. दूसरे राज्यों से अधिकारी डेपुटेशन पर आते हैं और यहां भ्रष्टाचार में संलिप्त हो जाते हैं. बाद में सरकार को मजबूर होकर उन्हें वापस करना पड़ता है. जाति के आधार पर डेपुटेशन करने का नतीजा यही होता है.'-अमिताभ कुमार दास, पूर्व आईपीएस अधिकारी.
'हाल के वर्षों में दूसरे राज्यों से डेपुटेशन पर आए अधिकारियों की वजह से सरकार की फजीहत हुई है. सुशासन पर भी सवाल खड़े हुए हैं. सरकार को भी इस पर मंथन करने की जरूरत है.'-डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक.
आलोक कुमार जम्मू कश्मीर कैडर के आईपीएस अधिकारी थे. पटना में सीनियर एसपी के पद पर कार्यरत रहे. इनके खिलाफ आर्थिक अपराध इकाई में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. फिलहाल आर्थिक अपराध इकाई ने चार्जशीट दाखिल कर दिया है और उनकी मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.
गया के तत्कालीन जिलाधिकारी अभिषेक सिंह त्रिपुरा से डेपुटेशन पर बिहार आए थे. इनके खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और स्पेशल विजिलेंस ने अभिषेक सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई. अभिषेक सिंह को भी वापस बेआबरू होकर अपने कैडर वापस जाना पड़ा. मनीष वर्मा भी पटना के जिलाधिकारी थे. इनके कार्यकाल में दशहरा हादसा हुआ था. जिलाधिकारी एक होटल में अपने बेटे का जन्मदिन मना रहे थे. रास्ते को एक तरफ से रोक दिया गया था जिसके चलते हादसा हुआ और 33 बेगुनाहों की जान चली गई थी. 2010-11 में संजय कुमार जो एलाइड सर्विस के थे, मुख्यमंत्री के पीएस के रूप में दूसरे राज्य से आए थे. इनके ऊपर भी दवा घोटाला मामले में आरोप लगे थे. इसके बाद फौरन इन्हें अपने मूल कैडर वापस भेजना पड़ा.
कुछ अधिकारियों ने किया बेहतर काम: जितेंद्र कुमार सिन्हा और संजय कुमार सिंह दूसरे राज्यों से प्रतिनियुक्ति पर बिहार आए थे. जितेंद्र सिन्हा त्रिपुरा कैडर के आईएएस अधिकारी है. पटना के जिलाधिकारी के रूप में काम किया. इनके खिलाफ कोई आरोप नहीं लगे. सीएम के सचिव के रूप में भी उन्हें काम करने का अवसर मिला. इन्होंने बेहतर कार्य किया. संजय सिंह ओडीशा कैडर के आईएएस अधिकारी थे. इन्हें भी पटना डीएम के तौर पर काम करने का मौका मिला. जिला अधिकारी के तौर पर इन्होंने बेहतर काम किया. बाद में मुख्यमंत्री सचिवालय में भी कार्यरत रहे.
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