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बिहार में तेजी से बढ़ रहे हैं Brain TB के मामले, जानिए क्या है बीमारी, कितना है खतरनाक

टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) रोग काफी खतरनाक (Brain TB Case In Bihar) रूप ले रहा है. वहीं हाल के सालों में ब्रेन टीबी के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है. बड़ी संख्या में ब्रेन टीबी के मामले राज्य के कई अस्पतालों में आ रहे हैं. सही समय पर लोगों को इस बीमारी का पता चले तो दवाइयों के माध्यम से पूरा इलाज संभव है. पढ़े पूरी खबर..

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Published : Apr 4, 2022, 4:22 PM IST

डॉ मनीष मंडल
डॉ मनीष मंडल

पटनाः राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में ब्रेन टीबी के मामले इन दिनों तेजी से बढ़ (Brain Tuberculosis Case Are Increasing In Bihar) रहे हैं. समय पर ब्रेन टीबी के मामलों की डायग्नोसिस नहीं होने से लोगों की मौतें भी हो रही है. ब्रेन टीबी के मरीजों में मेनिनजाइटिस के लक्षण भी मिल रहे हैं. राजधानी पटना के पीएमसीएच, आईजीआईएमएस और एम्स जैसे बड़े अस्पतालों में प्रतिदिन इससे जुड़े मामले आ रहे हैं. आईजीआईएमएस (IGIMS Patna) की बात करें तो ब्रेन टीबी के 3 से 4 मरीज प्रतिदिन आ रहे हैं. महीने भर में इनकी संख्या 100 से अधिक हो जा रही है. कोरोना के समय लोगों को सही समय पर ब्रेन टीबी का इलाज नहीं मिल पाने के कारण मरीजों की समस्या बढ़ी है.

पढ़ें- TB के खिलाफ प्रदेश के 3 जिलों में चलाए जा रहे विशेष जागरूकता कार्यक्रम



क्या है ब्रेन टीबी का कारणः आईजीआईएमएस के सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल (IGIMS Superintendent Dr Manish Mandal) ने बताया कि जैसे फेफड़े में टीबी होता है, उसी प्रकार दिमाग में टीबी होता है जिसे ब्रेन टीबी कहते हैं. ब्रेन टीबी की प्रमुख वजह है कि आजकल के जीवन शैली के कारण लोगों के शरीर में इम्यूनिटी क्षमता कम हो रही गई है. टीबी कहीं भी होता है वह इम्यूनिटी की कमी की वजह से ही होता है. ब्रेन टीबी के पीछे का कारण भी भी शरीर में इम्यूनिटी का स्तर कम होना है. यह उन लोगों में अधिक हो रहा है जो कम पौष्टिक भोजन करते हैं या किसी तरह से कुछ भी खाकर समय गुजारते हैं.

ब्रेन टीबी लाइलाज नहीं है, समय पर पहचान जरूरीः ब्रेन टीबी लाइलाज नहीं है. समय पर इलाज और दवा लेने से इसका इलाज संभव है. ब्रेन टीबी के मरीजों का इलाज लगातार 9 महीने तक होना होता है. इसके बाद मरीज ठीक हो जाते हैं. लेकिन मरीज की रिकवरी इसमें स्लो होती है. कोई भी मरीज इस बीमारी से पीड़ित होता है तो उसे ठीक होने में समय लगता है. लेकिन अच्छी बात इसमें यह है कि दवा से यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है. अगर इसकी जल्दी पहचान होती है तो दवाइयां जल्दी चलनी शुरू हो जाएगी और मरीज भी जल्द स्वस्थ हो जाएगा.

बेहोशी और चक्कर की है शिकायत तो कराएं जांचः इस बीमारी से पीड़ित मरीजों के दिमागी संतुलन पर भी धीरे-धीरे असर पड़ता है यानि वह दिमागी संतुलन खोने लगता है. मरीज जब बेहोशी की तरफ बढ़ने लगता है और मरीज को चक्कर आने लगता है तब उसे जांच कराने का ख्याल आता है. यही वजह है कि काफी लेट स्टेज में लोगों को ब्रेन टीबी के बारे में पता चलता है. आईजीआईएमएस के डॉ मनीष मंडल ने आगे बताया कि ब्रेन टीबी का लक्षण यह है कि अगर किसी को चक्कर आने लगता है, चमकी आये या ऐसा लगता है कि व्यक्ति दिमागी तौर पर कमजोर हो रहा है. शरीर में कम शक्ति महसूस हो तो उसे अविलंब डॉक्टरों से जांच कराना चाहिए.

आईजीआईएमएस जैसे बड़े सरकारी अस्पताल में ब्रेन टीबी का इलाज उपलब्धः आईजीआईएमएस के डॉ मनीष मंडल ने आगे बताया कि सरकारी अस्पताल खासकर आईजीआईएमएस जैसे बड़े सरकारी अस्पताल में ब्रेन टीबी के इलाज की अच्छी सुविधा उपलब्ध है. लोगों को यहां आना चाहिए. ब्रेन टीबी की जांच ब्लड और सीएसए फ्लूड से भी होता है. सीएसए फ्लूड का मतलब होता है ब्रेन के अंदर जो पानी होती है उसका जांच सबसे सटीक होता है. सिटी स्कैन में भी यह बीमारी पकड़ में आ सकता है. यह सब जांच प्रदेश के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है.

3 तरह का होता है टीबीः डॉक्टर मनीष मंडल ने बताया कि मेनिनजाइटिस एक सिस्टम है और यह कई तरह के होते हैं. जैसे कि ट्यूबरक्लोस मेनिनजाइटिस जिसकी बात की जा रही है, बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस जो अन्य इंफेक्शन के कारण होता है और एक होता है अननोन जो जनरली वायरल मेनिनजाइटिस के नाम से जाना जाता है जो किसी वायरस की वजह से होता है. अलग-अलग बीमारी का सिस्टम एक ही है मेनिनजाइटिस यानी कि ब्रेन के झिल्ली में इंफेक्शन होता है.

ब्रेन टीबी में कोविड के असर पर बात करते हुए डॉक्टर मनीष मंडल ने कहा कि कोरोना शरीर के इम्यूनिटी पर हमला करता है. कोरोना होने पर लोग कमजोर होते हैं और जो लोग कमजोर होंगे तो उनके शरीर का जो अंग सबसे कमजोर होगा वहां पर इंफेक्शन फैलता है. बहुत लोग फेफड़े की टीबी कि शिकायत को लेकर आते हैं. बहुत लोग हड्डी की टीबी की शिकायत को लेकर आते हैं. लेकिन इधर कुछ दिनों में ब्रेन टीबी के मामले अस्पतालों में बढ़े हैं. सही समय पर लोगों को इस बीमारी का पता चले तो दवाइयों के माध्यम से पूरा इलाज संभव है.

पढ़ें - नई टीबी वैक्सीन के लिए भारत बायोटेक ने बायोफैब्री के साथ मिलाया हाथ

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पटनाः राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में ब्रेन टीबी के मामले इन दिनों तेजी से बढ़ (Brain Tuberculosis Case Are Increasing In Bihar) रहे हैं. समय पर ब्रेन टीबी के मामलों की डायग्नोसिस नहीं होने से लोगों की मौतें भी हो रही है. ब्रेन टीबी के मरीजों में मेनिनजाइटिस के लक्षण भी मिल रहे हैं. राजधानी पटना के पीएमसीएच, आईजीआईएमएस और एम्स जैसे बड़े अस्पतालों में प्रतिदिन इससे जुड़े मामले आ रहे हैं. आईजीआईएमएस (IGIMS Patna) की बात करें तो ब्रेन टीबी के 3 से 4 मरीज प्रतिदिन आ रहे हैं. महीने भर में इनकी संख्या 100 से अधिक हो जा रही है. कोरोना के समय लोगों को सही समय पर ब्रेन टीबी का इलाज नहीं मिल पाने के कारण मरीजों की समस्या बढ़ी है.

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क्या है ब्रेन टीबी का कारणः आईजीआईएमएस के सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल (IGIMS Superintendent Dr Manish Mandal) ने बताया कि जैसे फेफड़े में टीबी होता है, उसी प्रकार दिमाग में टीबी होता है जिसे ब्रेन टीबी कहते हैं. ब्रेन टीबी की प्रमुख वजह है कि आजकल के जीवन शैली के कारण लोगों के शरीर में इम्यूनिटी क्षमता कम हो रही गई है. टीबी कहीं भी होता है वह इम्यूनिटी की कमी की वजह से ही होता है. ब्रेन टीबी के पीछे का कारण भी भी शरीर में इम्यूनिटी का स्तर कम होना है. यह उन लोगों में अधिक हो रहा है जो कम पौष्टिक भोजन करते हैं या किसी तरह से कुछ भी खाकर समय गुजारते हैं.

ब्रेन टीबी लाइलाज नहीं है, समय पर पहचान जरूरीः ब्रेन टीबी लाइलाज नहीं है. समय पर इलाज और दवा लेने से इसका इलाज संभव है. ब्रेन टीबी के मरीजों का इलाज लगातार 9 महीने तक होना होता है. इसके बाद मरीज ठीक हो जाते हैं. लेकिन मरीज की रिकवरी इसमें स्लो होती है. कोई भी मरीज इस बीमारी से पीड़ित होता है तो उसे ठीक होने में समय लगता है. लेकिन अच्छी बात इसमें यह है कि दवा से यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है. अगर इसकी जल्दी पहचान होती है तो दवाइयां जल्दी चलनी शुरू हो जाएगी और मरीज भी जल्द स्वस्थ हो जाएगा.

बेहोशी और चक्कर की है शिकायत तो कराएं जांचः इस बीमारी से पीड़ित मरीजों के दिमागी संतुलन पर भी धीरे-धीरे असर पड़ता है यानि वह दिमागी संतुलन खोने लगता है. मरीज जब बेहोशी की तरफ बढ़ने लगता है और मरीज को चक्कर आने लगता है तब उसे जांच कराने का ख्याल आता है. यही वजह है कि काफी लेट स्टेज में लोगों को ब्रेन टीबी के बारे में पता चलता है. आईजीआईएमएस के डॉ मनीष मंडल ने आगे बताया कि ब्रेन टीबी का लक्षण यह है कि अगर किसी को चक्कर आने लगता है, चमकी आये या ऐसा लगता है कि व्यक्ति दिमागी तौर पर कमजोर हो रहा है. शरीर में कम शक्ति महसूस हो तो उसे अविलंब डॉक्टरों से जांच कराना चाहिए.

आईजीआईएमएस जैसे बड़े सरकारी अस्पताल में ब्रेन टीबी का इलाज उपलब्धः आईजीआईएमएस के डॉ मनीष मंडल ने आगे बताया कि सरकारी अस्पताल खासकर आईजीआईएमएस जैसे बड़े सरकारी अस्पताल में ब्रेन टीबी के इलाज की अच्छी सुविधा उपलब्ध है. लोगों को यहां आना चाहिए. ब्रेन टीबी की जांच ब्लड और सीएसए फ्लूड से भी होता है. सीएसए फ्लूड का मतलब होता है ब्रेन के अंदर जो पानी होती है उसका जांच सबसे सटीक होता है. सिटी स्कैन में भी यह बीमारी पकड़ में आ सकता है. यह सब जांच प्रदेश के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है.

3 तरह का होता है टीबीः डॉक्टर मनीष मंडल ने बताया कि मेनिनजाइटिस एक सिस्टम है और यह कई तरह के होते हैं. जैसे कि ट्यूबरक्लोस मेनिनजाइटिस जिसकी बात की जा रही है, बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस जो अन्य इंफेक्शन के कारण होता है और एक होता है अननोन जो जनरली वायरल मेनिनजाइटिस के नाम से जाना जाता है जो किसी वायरस की वजह से होता है. अलग-अलग बीमारी का सिस्टम एक ही है मेनिनजाइटिस यानी कि ब्रेन के झिल्ली में इंफेक्शन होता है.

ब्रेन टीबी में कोविड के असर पर बात करते हुए डॉक्टर मनीष मंडल ने कहा कि कोरोना शरीर के इम्यूनिटी पर हमला करता है. कोरोना होने पर लोग कमजोर होते हैं और जो लोग कमजोर होंगे तो उनके शरीर का जो अंग सबसे कमजोर होगा वहां पर इंफेक्शन फैलता है. बहुत लोग फेफड़े की टीबी कि शिकायत को लेकर आते हैं. बहुत लोग हड्डी की टीबी की शिकायत को लेकर आते हैं. लेकिन इधर कुछ दिनों में ब्रेन टीबी के मामले अस्पतालों में बढ़े हैं. सही समय पर लोगों को इस बीमारी का पता चले तो दवाइयों के माध्यम से पूरा इलाज संभव है.

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