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पटना AIIMS का बड़ा शोध: 432 हर्ट्ज फ्रीक्वेंसी का संगीत सुनने पर आती है गहरी नींद

पटना AIIMS ने शोध कर दावा किया है कि अगर सोते वक्त 432 हर्ट्ज फ्रीक्वेंसी पर म्यूजिक सुना जाए तो गहरी और अच्छी नींद आती है. यह रिसर्च 30 से 40 आयु वर्ग के 50 से अधिक स्वस्थ लोगों पर किया गया है. पढ़ें रिपोर्ट...

पटना
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Published : Nov 13, 2021, 8:25 PM IST

पटना: ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज पटना (Patna AIIMS) लोगों के स्वस्थ जीवन शैली के लिए आए दिन नए-नए शोध (Research) करते रहता है. इसी कड़ी में इन दिनों नींद की समस्या पर शोध की गई है. आधुनिक जीवन शैली में जिस प्रकार लोगों की दिनचर्या बदल गई है. लोगों की अच्छी नींद नहीं हो पा रही है. इस वजह से लोगों में सिरदर्द, माइग्रेन, ब्लड प्रेशर, शुगर इत्यादि बीमारी बढ़ रही है.

ये भी पढ़ें- अब दूर होगा गंजापन! सस्ता और टिकाऊ तरीका ढूंढ रहा पटना AIIMS

लोगों को यह शिकायत आती है कि वह बिस्तर पर जब जाते हैं, सोने के लिए तो उन्हें जल्दी नींद नहीं आती है. कई लोगों को यह शिकायत रहती है कि वह 6 से 8 घंटे की नींद तो पूरी करते हैं, लेकिन इस दौरान वह आधी नींद में रहते हैं और जब सोकर उठते हैं तो जब तरोताजा महसूस करना चाहिए, उस वक्त वह थके हारे महसूस करते हैं. ऐसे में इन सब तमाम विषयों पर पटना एम्स में शोध किया गया है और इस शोध में म्यूजिक का सहारा लिया गया है.

देखें रिपोर्ट

इस रिसर्च में यह पाया गया है कि अगर 432 हर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर सोने के समय संगीत सुनते हैं तो जल्दी नींद भी आती है और नींद भी गहरी होती है. एम्स ने अपने रिसर्च में सितार, बांसुरी के अलावा अन्य वाद्य यंत्रों की धुनों को 432 हर्ट्ज पर तैयार किया और उपयोग किया. एम्स प्रबंधन ने यह रिसर्च 30 से 40 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों के बीच किया है और इस रिसर्च में 50 स्वस्थ लोगों ने भाग लिया.

पटना एम्स में नींद की समस्या पर हुए इस शोध को लीड कर रहे न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट चिकित्सक डॉ. कमलेश झा ने बताया कि एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा सोने में बीता देता है. एम्स पटना में साल 2016 में स्लीप लैब तैयार किया गया था और इसका उद्देश्य यह था कि यह पता लगाया जाए कि नींद हमारे जीवन को किस प्रकार इफेक्ट करती है और शरीर की बीमारियों की जड़ में नींद का क्या कुछ योगदान है. नींद को लेकर एम्स पटना में कई प्रकार के शोध चल रहे हैं.

न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट चिकित्सक डॉ. कमलेश झा
न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट चिकित्सक डॉ. कमलेश झा

''शोध में यह देखा गया कि हाल के दिनों में क्वालिटी ऑफ स्लीप में काफी कमी आई है. लोग 8 घंटे तक सोते तो हैं, मगर गहरी नींद से नहीं सोते. ऐसे में एम्स पटना ने जरूरत महसूस किया कि इस पर रिसर्च किया जाए कि आखिर किन परिस्थितियों में व्यक्ति जल्दी और गहरी निद्रा में जाता है. इसके लिए अभी एक छोटे स्तर पर शोध हुआ है और उससे मेडिकल जर्नल में प्रकाशित भी किया गया है.''- डॉ. कमलेश झा, न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट चिकित्सक

ये भी पढ़ें- पटना AIIMS का रिसर्चः नींद कम आने से बीमार हो रहे बच्चे, मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा प्रभाव

उन्होंने कहा कि इस शोध में 50 वयस्क लोगों को शामिल किया गया और उन्हें अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर अलग-अलग दिन सुलाया गया. इसमें यह देखा गया कि एक खास फ्रीक्वेंसी 432 हर्ट्ज पर जो म्यूजिक सुन रहे हैं. वह जब सोने के लिए बिस्तर पर जा रहे हैं तो जल्दी सो रहे हैं और उनकी नींद भी गहरी हो रही है. उन्होंने कहा कि यह शोध काफी सफल रिजल्ट लेकर आया है और शोध में नींद देर से आने या गहरी नींद ना आने की समस्या का समाधान दिखता है.

डॉ. कमलेश झा ने बताया कि नींद कितना महत्वपूर्ण है इसको लेकर एक और शोध पटना एम्स में किया गया है और यह भी काफी छोटे स्तर पर किया गया है. इसके लिए भी 20 से 30 वर्ष के 40 लोगों को शोध में शामिल किया गया. इसमें 20-20 लोगों के दो ग्रुप बना दिए गए. दोनों ग्रुप को सुडोकू का इक्वल लेवल का पजल दिया गया. एक ग्रुप जब पजल सॉल्व करने में फंस गया तो उसे सोने के लिए भेज दिया गया और दूसरा ग्रुप जब पजल सॉल्व करने में फंस गया तो उसे कुछ देर पजल से दूर होकर बैठे रहने को कहा गया.

आधे घंटे से 45 मिनट के बाद दोनों ग्रुप को फिर से जब पजल सॉल्व करने के लिए बैठाया गया तो यह देखा गया कि जो लोग एक छोटी नींद जिसे नैप कहते हैं, करके आए उनकी प्रॉब्लम सॉल्विंग एबिलिटी काफी बेहतर नजर आई. उनके माइंड की इफिकेंसी बढ़ गई और वह काफी रिचार्ज दिखे. उन्होंने कहा कि यह शोध अभी काफी छोटे लेवल पर हुआ है और बड़े लेवल पर इस शोध को करने की पटना एम्स में तैयारी चल रही है.

डॉ. कमलेश झा ने बताया कि हर व्यक्ति का अपना बॉडी क्लॉक होता है. किसी व्यक्ति की बॉडी दिन में एक बार 8 घंटे की नींद के बाद रिचार्ज हो जाती है, तो किसी व्यक्ति को टुकड़ों में नींद की जरूरत होती है, जैसे कि रात में 6 घंटे की नींद और दिन में 2 घंटे की नींद. शरीर को जब नींद की जरूरत है और उस वक्त यदि व्यक्ति नहीं सोता है तो उसके बाद उस व्यक्ति के शरीर में कई सारी बीमारियां होनी शुरू हो जाती है, जैसे माइग्रेन, हाइपरटेंशन, ब्लड प्रेशर, शुगर और उस व्यक्ति के शरीर की हीलिंग कैपेसिटी भी कम हो जाती है.

ये भी पढ़ें- थर्ड वेव से बच्चों को बचाने के लिए पटना एम्स के डॉक्टर ने इजाद किया VHIT एंड MAAP फार्मूला, जानें...

उन्होंने कहा कि नींद बीमारी को ठीक करने और घाव को भरने के लिए एक बहुत बड़ा हीलिंग एलिमेंट है. ऐसे में लोगों को अच्छी और बेहतर नींद पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है ताकि वह स्वस्थ जीवन जी सकें. बताते चलें कि जिस प्रकार से अभी के समय लोगों में अच्छी नींद की कमी की समस्या बढ़ी है, लोग सोने के समय स्लीपिंग पिल्स का प्रयोग अधिक करने लगे हैं और यह उनके स्वास्थ्य के लिए भी काफी हानिकारक होता है. ऐसे में पटना एम्स का यह रिसर्च काफी लाभदायक है क्योंकि म्यूजिक सुनकर सोने का कोई साइड इफेक्ट नहीं है.

पटना: ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज पटना (Patna AIIMS) लोगों के स्वस्थ जीवन शैली के लिए आए दिन नए-नए शोध (Research) करते रहता है. इसी कड़ी में इन दिनों नींद की समस्या पर शोध की गई है. आधुनिक जीवन शैली में जिस प्रकार लोगों की दिनचर्या बदल गई है. लोगों की अच्छी नींद नहीं हो पा रही है. इस वजह से लोगों में सिरदर्द, माइग्रेन, ब्लड प्रेशर, शुगर इत्यादि बीमारी बढ़ रही है.

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लोगों को यह शिकायत आती है कि वह बिस्तर पर जब जाते हैं, सोने के लिए तो उन्हें जल्दी नींद नहीं आती है. कई लोगों को यह शिकायत रहती है कि वह 6 से 8 घंटे की नींद तो पूरी करते हैं, लेकिन इस दौरान वह आधी नींद में रहते हैं और जब सोकर उठते हैं तो जब तरोताजा महसूस करना चाहिए, उस वक्त वह थके हारे महसूस करते हैं. ऐसे में इन सब तमाम विषयों पर पटना एम्स में शोध किया गया है और इस शोध में म्यूजिक का सहारा लिया गया है.

देखें रिपोर्ट

इस रिसर्च में यह पाया गया है कि अगर 432 हर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर सोने के समय संगीत सुनते हैं तो जल्दी नींद भी आती है और नींद भी गहरी होती है. एम्स ने अपने रिसर्च में सितार, बांसुरी के अलावा अन्य वाद्य यंत्रों की धुनों को 432 हर्ट्ज पर तैयार किया और उपयोग किया. एम्स प्रबंधन ने यह रिसर्च 30 से 40 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों के बीच किया है और इस रिसर्च में 50 स्वस्थ लोगों ने भाग लिया.

पटना एम्स में नींद की समस्या पर हुए इस शोध को लीड कर रहे न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट चिकित्सक डॉ. कमलेश झा ने बताया कि एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा सोने में बीता देता है. एम्स पटना में साल 2016 में स्लीप लैब तैयार किया गया था और इसका उद्देश्य यह था कि यह पता लगाया जाए कि नींद हमारे जीवन को किस प्रकार इफेक्ट करती है और शरीर की बीमारियों की जड़ में नींद का क्या कुछ योगदान है. नींद को लेकर एम्स पटना में कई प्रकार के शोध चल रहे हैं.

न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट चिकित्सक डॉ. कमलेश झा
न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट चिकित्सक डॉ. कमलेश झा

''शोध में यह देखा गया कि हाल के दिनों में क्वालिटी ऑफ स्लीप में काफी कमी आई है. लोग 8 घंटे तक सोते तो हैं, मगर गहरी नींद से नहीं सोते. ऐसे में एम्स पटना ने जरूरत महसूस किया कि इस पर रिसर्च किया जाए कि आखिर किन परिस्थितियों में व्यक्ति जल्दी और गहरी निद्रा में जाता है. इसके लिए अभी एक छोटे स्तर पर शोध हुआ है और उससे मेडिकल जर्नल में प्रकाशित भी किया गया है.''- डॉ. कमलेश झा, न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट चिकित्सक

ये भी पढ़ें- पटना AIIMS का रिसर्चः नींद कम आने से बीमार हो रहे बच्चे, मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा प्रभाव

उन्होंने कहा कि इस शोध में 50 वयस्क लोगों को शामिल किया गया और उन्हें अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर अलग-अलग दिन सुलाया गया. इसमें यह देखा गया कि एक खास फ्रीक्वेंसी 432 हर्ट्ज पर जो म्यूजिक सुन रहे हैं. वह जब सोने के लिए बिस्तर पर जा रहे हैं तो जल्दी सो रहे हैं और उनकी नींद भी गहरी हो रही है. उन्होंने कहा कि यह शोध काफी सफल रिजल्ट लेकर आया है और शोध में नींद देर से आने या गहरी नींद ना आने की समस्या का समाधान दिखता है.

डॉ. कमलेश झा ने बताया कि नींद कितना महत्वपूर्ण है इसको लेकर एक और शोध पटना एम्स में किया गया है और यह भी काफी छोटे स्तर पर किया गया है. इसके लिए भी 20 से 30 वर्ष के 40 लोगों को शोध में शामिल किया गया. इसमें 20-20 लोगों के दो ग्रुप बना दिए गए. दोनों ग्रुप को सुडोकू का इक्वल लेवल का पजल दिया गया. एक ग्रुप जब पजल सॉल्व करने में फंस गया तो उसे सोने के लिए भेज दिया गया और दूसरा ग्रुप जब पजल सॉल्व करने में फंस गया तो उसे कुछ देर पजल से दूर होकर बैठे रहने को कहा गया.

आधे घंटे से 45 मिनट के बाद दोनों ग्रुप को फिर से जब पजल सॉल्व करने के लिए बैठाया गया तो यह देखा गया कि जो लोग एक छोटी नींद जिसे नैप कहते हैं, करके आए उनकी प्रॉब्लम सॉल्विंग एबिलिटी काफी बेहतर नजर आई. उनके माइंड की इफिकेंसी बढ़ गई और वह काफी रिचार्ज दिखे. उन्होंने कहा कि यह शोध अभी काफी छोटे लेवल पर हुआ है और बड़े लेवल पर इस शोध को करने की पटना एम्स में तैयारी चल रही है.

डॉ. कमलेश झा ने बताया कि हर व्यक्ति का अपना बॉडी क्लॉक होता है. किसी व्यक्ति की बॉडी दिन में एक बार 8 घंटे की नींद के बाद रिचार्ज हो जाती है, तो किसी व्यक्ति को टुकड़ों में नींद की जरूरत होती है, जैसे कि रात में 6 घंटे की नींद और दिन में 2 घंटे की नींद. शरीर को जब नींद की जरूरत है और उस वक्त यदि व्यक्ति नहीं सोता है तो उसके बाद उस व्यक्ति के शरीर में कई सारी बीमारियां होनी शुरू हो जाती है, जैसे माइग्रेन, हाइपरटेंशन, ब्लड प्रेशर, शुगर और उस व्यक्ति के शरीर की हीलिंग कैपेसिटी भी कम हो जाती है.

ये भी पढ़ें- थर्ड वेव से बच्चों को बचाने के लिए पटना एम्स के डॉक्टर ने इजाद किया VHIT एंड MAAP फार्मूला, जानें...

उन्होंने कहा कि नींद बीमारी को ठीक करने और घाव को भरने के लिए एक बहुत बड़ा हीलिंग एलिमेंट है. ऐसे में लोगों को अच्छी और बेहतर नींद पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है ताकि वह स्वस्थ जीवन जी सकें. बताते चलें कि जिस प्रकार से अभी के समय लोगों में अच्छी नींद की कमी की समस्या बढ़ी है, लोग सोने के समय स्लीपिंग पिल्स का प्रयोग अधिक करने लगे हैं और यह उनके स्वास्थ्य के लिए भी काफी हानिकारक होता है. ऐसे में पटना एम्स का यह रिसर्च काफी लाभदायक है क्योंकि म्यूजिक सुनकर सोने का कोई साइड इफेक्ट नहीं है.

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