पटना: बिहार की मिठाईयों की बात चले और उसमें बाढ़ की लाई का जिक्र न हो ऐसा संभव नहीं. राजधानी पटना के बाढ़ अनुमंडल की प्रसिद्ध मिठाई है लाई. ये मिठाई अपने स्वाद के लिए देश-दुनिया में मशहूर है. पटना से मोकामा की ओर जाने वाले लोग अक्सर बाढ़ में रुक कर लाई खरीदना नहीं भूलते. बाढ़ सहित आसपास के क्षेत्रों में होने वाले शादी विवाह जैसे मांगलिक कामों में लाई जरूर शामिल की जाती है.
100 साल पहले हुई लाई बनाने की शुरुआत
लाई को लेकर कई तरह के तथ्य है. कहा जाता है लावा से लाई बनाने की शुरुआत हुई थी. कठिन हालातों में जब इलाके में खाने-पीने के चीजों की किल्लत हुई, तो लोग लाई बना कर खाने लगे. धीरे-धीरे ये उद्योग का रूप लेता चला गया. कहा तो ये भी जाता है कि करीब 100 साल पहले बाढ़ के चोन्दी के निवासी गोविंद साह ने लाई बनाने की शुरुआत की थी. शुरुआत में सादी लाई बनती थी, बाद में गुजरते वक्त के साथ सादे लावा की लाई के अलावा खोवा और गाय के दूध से भी लाई बनने लगी.
मावे के साथ मिलाई जाती है कई सामग्रियां
बाढ़ की प्रसिद्ध लाई बनाने के लिए लावा, खोवा, चीनी, काजू और किसमिस जैसी सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है. सबसे पहले खोवा तैयार किया जाता है. फिर खोवे में माढ़ा और बाकि सामग्रियां मिलाकर गोल आकार में गढ़ दिया जाता है. कुछ समय तक इसे सुखाया जाता है. उसके बाद लाई को खाने के लिए तैयार किया जाता है. इसकी खासियत है कि यह कई दिनों तक अच्छी रहती है और खराब नहीं होती.
कई मशहूर हस्ती भी लाई के दीवाने
अपने स्वाद के लिए मशहूर लाई के शौकीनों में देश दुनिया के लोगों के साथ-साथ बिहार के बड़े कद्दावर नेता भी शामिल हैं. इस रास्ते से गुजरने के बाद बिना लाई खरीदे और उसका स्वाद चखे कोई राजनेता नहीं जाता. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी लाई के शौकीन हैं. राजनेता अपनी पार्टी में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में बाढ़ की लाई जरूर मंगवाते और अपने कार्यकर्ताओं के बीच बांटते हैं.
लाई के व्यवसाइयों को नहीं मिली सरकारी मदद
हालांकि विडंबना ये है कि 5 से 7 हजार लोगों को जीविका देने वाले लाई के व्यवसाइयों को अब तक कोई सरकारी मदद, अनुदान या सहयोग नहीं मिला है. रोजाना दो से ढाई लाख रुपये की लाई की बिक्री होती है. व्यापारी लाई के दीवानों के दम पर ही खुशी-खुशी यह व्यवसाय चला रहे हैं.