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बिहार में लीची के लिए बारिश बनी 'संजीवनी', तेज हवा व ओलावृष्टि से फसलों को हुआ था नुकसान - Muzaffarpur News

बिहार में इस बार की बारिश ने लीची किसानों (Litchi Cultivation in Bihar) में नई आस जगी है. पूरे प्रदेश में अगले दो दिनों तक आंधी- बारिश की स्थिति बनी हुई है. कई इलाकों में बारिश के बाद फसलों को भी फायदा पहुंचा हैं. दो साल नुकसान झेलने वाले किसान अब मुनाफे की उम्मीद कर रहे है. पढ़ें पूरी खबर

बिहार में लीची किसानों के चेहरे खिले
बिहार में लीची किसानों के चेहरे खिले
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Published : May 6, 2022, 9:09 PM IST

मुजफ्फरपुर: बिहार में पिछले दिनों हुई बारिश और तापमान में हुई गिरावट के बाद लीची किसान खुश (Rain given new hope to litchi farmers) हैं. रसीली और मिट्ठी लीची के लिए प्रसिद्ध बिहार में बारिश के बाद फलों में लाल रंग विकसित होने लगा है. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि अप्रैल महीने में तापमान में हुई अभूतपूर्व वृद्धि के बाद लीची के छिलके फटने लगे थे. हालंकि इस बारिश से लीची को लाभ हुआ है. वैसे, वैज्ञानिक किसानों को कीटों से फलों को बचाने की भी सलाह दे रहे हैं.

ये भी पढ़ें : मुजफ्फरपुर: मार्च में ही बढ़ने लगा तापमान, लीची के फसल पर मंडराने लगे संकट के बादल

कृषि वैज्ञानिक बोले- सतर्क रहने की जरूरत : अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक और सह निदेशक अनुसंधान, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर के प्रोफेसर एस के सिंह बताते हैं कि बिहार के अधिकांश इलाके में बारिश होने की वजह से तापमान में कमी आई है, वातावरण नम हो गया है, जिसकी वजह से बिहार में मशहूर शाही प्रजाति के लीची के फल में लगभग सभी जगह लाल रंग विकसित हो गया है.

''इस समय फल छेदक कीट के आक्रमण की संभावना बढ़ जाती है यदि बाग का ठीक से नहीं प्रबंधन किया गया तो भारी नुकसान होने की संभावना बनी रहती है. लीची में फूल आने से लेकर फल की तुड़ाई के मध्य मात्र 40 से 45 दिन का समय मिलता है. लीची की सफल खेती में इसकी दो अवस्थाएं अति महत्वपूर्ण होती है, पहला जब फल लौंग के बराबर के हो जाते हैं, जो की निकल चुकी है एवं दूसरी अवस्था जब लीची के फल लाल रंग के होने प्रारंभ होते हैं. इन दोनों समय पर फल बेधक कीट के नियंत्रण के लिए दवा का छिड़काव अनिवार्य है. लीची में फल छेदक कीट का प्रकोप कम हो इसके लिए आवश्यक है की साफ -सुथरी खेती को बढ़ावा दिया जाय.'' - प्रोफेसर एस के सिंह, सह निदेशक अनुसंधान, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय

प्रोफेसर एस के सिंह बताते हैं कि अप्रैल के अंतिम सप्ताह में कहीं कहीं पर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आस पास पहुंच गया था, जिसकी वजह से फल के छिलकों पर जलने जैसा लक्षण दिखाई देने लगा था, धूप से जले छिलकों की कोशिकाएं मर गई थीं, अब जब की फल के गुद्दे का विकास अंदर से हो रहा है तो छिलके जले वाले हिस्से से फट जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें : CSC के माध्यम से मुजफ्फपुर के किसान ने लंदन के खरीदार को लीची बेची

इस तरह से लीची के जो भी फल फट रहे हैं उसका समाधान ओवर हेड स्प्रिंकलर ही है. फल के फटने के बहुत से कारण हैं. मशहूर शाही लीची के फलों की तुड़ाई 20-25 मई के आस पास करते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि फलों में गहरा लाल रंग विकसित हो जाने मात्र से यह नहीं समझना चाहिए की फल तुड़ाई योग्य हो गया है. फलों की तुड़ाई फलों में मिठास आने के बाद ही करनी चाहिए.

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मुजफ्फरपुर: बिहार में पिछले दिनों हुई बारिश और तापमान में हुई गिरावट के बाद लीची किसान खुश (Rain given new hope to litchi farmers) हैं. रसीली और मिट्ठी लीची के लिए प्रसिद्ध बिहार में बारिश के बाद फलों में लाल रंग विकसित होने लगा है. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि अप्रैल महीने में तापमान में हुई अभूतपूर्व वृद्धि के बाद लीची के छिलके फटने लगे थे. हालंकि इस बारिश से लीची को लाभ हुआ है. वैसे, वैज्ञानिक किसानों को कीटों से फलों को बचाने की भी सलाह दे रहे हैं.

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कृषि वैज्ञानिक बोले- सतर्क रहने की जरूरत : अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक और सह निदेशक अनुसंधान, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर के प्रोफेसर एस के सिंह बताते हैं कि बिहार के अधिकांश इलाके में बारिश होने की वजह से तापमान में कमी आई है, वातावरण नम हो गया है, जिसकी वजह से बिहार में मशहूर शाही प्रजाति के लीची के फल में लगभग सभी जगह लाल रंग विकसित हो गया है.

''इस समय फल छेदक कीट के आक्रमण की संभावना बढ़ जाती है यदि बाग का ठीक से नहीं प्रबंधन किया गया तो भारी नुकसान होने की संभावना बनी रहती है. लीची में फूल आने से लेकर फल की तुड़ाई के मध्य मात्र 40 से 45 दिन का समय मिलता है. लीची की सफल खेती में इसकी दो अवस्थाएं अति महत्वपूर्ण होती है, पहला जब फल लौंग के बराबर के हो जाते हैं, जो की निकल चुकी है एवं दूसरी अवस्था जब लीची के फल लाल रंग के होने प्रारंभ होते हैं. इन दोनों समय पर फल बेधक कीट के नियंत्रण के लिए दवा का छिड़काव अनिवार्य है. लीची में फल छेदक कीट का प्रकोप कम हो इसके लिए आवश्यक है की साफ -सुथरी खेती को बढ़ावा दिया जाय.'' - प्रोफेसर एस के सिंह, सह निदेशक अनुसंधान, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय

प्रोफेसर एस के सिंह बताते हैं कि अप्रैल के अंतिम सप्ताह में कहीं कहीं पर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आस पास पहुंच गया था, जिसकी वजह से फल के छिलकों पर जलने जैसा लक्षण दिखाई देने लगा था, धूप से जले छिलकों की कोशिकाएं मर गई थीं, अब जब की फल के गुद्दे का विकास अंदर से हो रहा है तो छिलके जले वाले हिस्से से फट जा रहे हैं.

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इस तरह से लीची के जो भी फल फट रहे हैं उसका समाधान ओवर हेड स्प्रिंकलर ही है. फल के फटने के बहुत से कारण हैं. मशहूर शाही लीची के फलों की तुड़ाई 20-25 मई के आस पास करते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि फलों में गहरा लाल रंग विकसित हो जाने मात्र से यह नहीं समझना चाहिए की फल तुड़ाई योग्य हो गया है. फलों की तुड़ाई फलों में मिठास आने के बाद ही करनी चाहिए.

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