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दीये में रंग भरकर मूक बधिर बच्चे जरूरतमंदों की रंगीन कर रहे दीपावली

कहा जाता है कि अगर हिम्मत और जज्बा मन में हो तो किसी दूसरे की मदद कर उसकी जिंदगी में आने वाले त्योहारों में खुशियां लाई जा सकती है. ऐसा ही कुछ कर रहे हैं बिहार के मुजफ्फरपुर के मूक बधिर स्कूल के बच्चे. ये बच्चे भले ही मुंह से बोल और कान से सुन नहीं पा रहे हैं लेकिन ये अपने हुनर से दूसरे के जीवन में इस दीपावली खुशिंयां पहुंचाने और उनके घरों को रोशन करने का बीड़ा उठाया है. देखें रिपोर्ट

मूक-बधिर बच्चे बना रहे हैं दीये
मूक-बधिर बच्चे बना रहे हैं दीये
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Published : Nov 3, 2021, 8:27 AM IST

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर के गौशाला रोड स्थित एक मूक-बधिर स्कूल के बच्चे (Deaf School Children) दीया बनाकर दीपावली (Diwali) के मौके पर उन घरों को रोशन करने की तैयारी में हैं जहां दीये नहीं जलते. वैसे, यह कोई पहली बार नहीं है कि ये बच्चे जरूरतमंदों के घरों को रोशन करने वाले हैं. पिछले छह सालों से इस स्कूल के बच्चे दीपावली के 15 दिन पहले से दीया बनाकर गरीब जरूरतमंदों को देते आ रहे हैं. इस बार भी इन बच्चों ने दीया बनाना शुरू कर दिया है.

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ये बच्चे अपने हुनर से दीयों पर तरह-तरह की कलाकृति बनाते हैं जिसमें वे अपनी भी खुशी तलाशते हैं. बच्चे एक-दूसरे को इस कार्य के लिए उत्साहित भी करते हैं. यही कारण है कि ये 15 दिनों में ही सैकड़ों दीयों में अपनी कला उकेर देते हैं. विद्यालय की ओर से इन बच्चों को सारी सामग्री उपलब्ध कराई गई है. स्थनीय लोग भी कहते है कि दीपों के पर्व दीपावली को लेकर जहां कृत्रिम लाइटें, रंग-बिरंगे बल्ब और आधुनिकता की इस चकाचैंध में परंपरागत दीप पीछे छूटते जा रहे हैं ऐसे में इन बच्चों द्वारा इन दीपों को वापस लाने और संस्कृति में संजोए रखने का प्रयास काबिले-तारीफ है.

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बता दें कि मूक-बधिर इस स्कूल में दीपावली इको फ्रेंडली मनाई जाती है जिसमें शोरगुल भी नहीं होता है. यहां स्वच्छ और स्वस्थ दीपावली मनाने की परंपरा है. विद्यालय के संचालक संजय कुमार बताते हैं कि मूकबधिर बच्चों को हुनरमंद बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करने के उद्देश्य से उन्हें समय-समय पर विभिन्न विषयों का प्रशिक्षण दिलाया जाता है. उन्होंने कहा कि इस दीपावली के पहले डिजायनर दीप बनाने का प्रशिक्षण दिलाया गया था.

'प्रत्येक वर्ष यहां के बच्चों को दीपावली के पूर्व डिजाइनर दीया बनाने व पेंटिंग करने का प्रशिक्षण दिया जाता है. इस साल करीब 1,000 से अधिक दीयों को इन बच्चों द्वारा तैयार किया गया है जो आसपास के गरीब और जरूरतमंद परिवार व उनके बच्चों को दिया जाएगा जिससे उनकी दीपावली रंगीन हो सके.' : संजय कुमार, स्कूल संचालक

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लोग कहते हैं कि मूक बधिर बच्चे अपने हुनर की बदौलत दीपों को अनोखा रंग रूप और स्वरूप देकर दीपावली को और बेहतर बनाने में जुटे हैं. गौरतलब है कि संजय मुफ्त में इन मूक-बधिर बच्चों के लिए स्कूल चलाते हैं. संजय कहते हैं कि- 'इन बच्चों को पढ़ाई के अलावे हुनरमंद बनाने की कोशिश की जा रही है.'

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ये बच्चे अपने हुनर से दीयों पर तरह-तरह की कलाकृति बनाते हैं जिसमें वे अपनी भी खुशी तलाशते हैं. बच्चे एक-दूसरे को इस कार्य के लिए उत्साहित भी करते हैं. यही कारण है कि ये 15 दिनों में ही सैकड़ों दीयों में अपनी कला उकेर देते हैं. विद्यालय की ओर से इन बच्चों को सारी सामग्री उपलब्ध कराई गई है. स्थनीय लोग भी कहते है कि दीपों के पर्व दीपावली को लेकर जहां कृत्रिम लाइटें, रंग-बिरंगे बल्ब और आधुनिकता की इस चकाचैंध में परंपरागत दीप पीछे छूटते जा रहे हैं ऐसे में इन बच्चों द्वारा इन दीपों को वापस लाने और संस्कृति में संजोए रखने का प्रयास काबिले-तारीफ है.

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'प्रत्येक वर्ष यहां के बच्चों को दीपावली के पूर्व डिजाइनर दीया बनाने व पेंटिंग करने का प्रशिक्षण दिया जाता है. इस साल करीब 1,000 से अधिक दीयों को इन बच्चों द्वारा तैयार किया गया है जो आसपास के गरीब और जरूरतमंद परिवार व उनके बच्चों को दिया जाएगा जिससे उनकी दीपावली रंगीन हो सके.' : संजय कुमार, स्कूल संचालक

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