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अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस के मौके पर कटिहार की 4 दिव्यांग बहनों ने सरकार से मांगी मदद - four daughters of the same family are divyang divyang

मीरा, हीरा, अनिता और लक्ष्मी ये सगी बहनें दिव्यांग हैं. कोई चल-फिर नहीं पाती तो कोई बोल नहीं पाती. माता-पिता के जिन्दा रहने तक दो वक्त की रोटी किसी तरह मिल जाया करती थी. लेकिन पिता और मां की मौत के बाद अब रोज की जिंदगी में गुजर-बसर करने को भी लाले पड़ रहे हैं.

four daughters of the same family are divyang
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Published : Dec 3, 2019, 1:25 PM IST

कटिहार: मंगलवार को अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस हैं. पूरे देश मे दिव्यांगों के लिये सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं. लेकिन, बिहार के कटिहार की एक परिवार की चारों दिव्यांग बहनें सरकारी मदद की बाट जोह रही है. दिव्यांगता का अभिशाप झेल रहे इस चारों बहनें आज दाने-दाने को मोहताज है.

चारों बहनों के पड़े खाने-पीने के लाले
मीरा, हीरा, अनिता और लक्ष्मी ये सगी बहनें दिव्यांग हैं. कोई चल-फिर नहीं पाती तो कोई बोल नहीं पाती. माता-पिता के जिन्दा रहने तक तो दो वक्त की रोटी किसी तरह मिल जाया करती थी. लेकिन, लगभग 20 साल पहले पिता और 17 साल पहले मां की मौत के बाद अब रोज की जिंदगी में गुजर-बसर करने को भी लाले पड़ रहे हैं. एक भाई था, वह भी मौत की भेंट चढ़ गया. अब हालात यह हैं कि किसी तरह पुश्तैनी मकान सिर छुपाने का आसरा हैं. लेकिन खाने-पीने के भी लाले हैं.

four daughters of the same family are divyang
पालतू तोते के जरिए दिल बहलाती अनीता

जिंदगी बोझ बन गयी है-अनीता
सभी बहनों के सरकार की ओर से दिव्यांग पेंशन के तहत कुल मिलाकर हजार-बारह सौ रुपये ही मिलते हैं. तीन बहनों को तो दिव्यांग पेंशन मिलता हैं, लेकिन हीरा के कागजात नहीं बन पाने की वजह से उसे दिव्यांग पेंशन के चार सौ रुपये तक नहीं मिल पाते. शरीर से लाचार अनीता कहती है कि जिंदगी बोझ बन गयी है. क्या खायेंगे, कैसे रहेगें....कोई नहीं जानता. जब से मां-बाप की मौत हुई, तब से घर के चौखट की दहलीज पार कर बाजार का नजारा तक नहीं देखा.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सरकार से मांग
इन दिव्यांग बहनों की सरकार से मांग है कि अगर दिव्यांग पेंशन की राशि बढ़ा दी जाती तो जिंदगी बसर करने में कुछ मदद हो जाती. उसी के जरिए चारों बहनों का राशन-पानी सही तरीके से मिल पाएगा. कम से कम खाने को लाले नहीं पड़ेंगे.

कटिहार: मंगलवार को अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस हैं. पूरे देश मे दिव्यांगों के लिये सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं. लेकिन, बिहार के कटिहार की एक परिवार की चारों दिव्यांग बहनें सरकारी मदद की बाट जोह रही है. दिव्यांगता का अभिशाप झेल रहे इस चारों बहनें आज दाने-दाने को मोहताज है.

चारों बहनों के पड़े खाने-पीने के लाले
मीरा, हीरा, अनिता और लक्ष्मी ये सगी बहनें दिव्यांग हैं. कोई चल-फिर नहीं पाती तो कोई बोल नहीं पाती. माता-पिता के जिन्दा रहने तक तो दो वक्त की रोटी किसी तरह मिल जाया करती थी. लेकिन, लगभग 20 साल पहले पिता और 17 साल पहले मां की मौत के बाद अब रोज की जिंदगी में गुजर-बसर करने को भी लाले पड़ रहे हैं. एक भाई था, वह भी मौत की भेंट चढ़ गया. अब हालात यह हैं कि किसी तरह पुश्तैनी मकान सिर छुपाने का आसरा हैं. लेकिन खाने-पीने के भी लाले हैं.

four daughters of the same family are divyang
पालतू तोते के जरिए दिल बहलाती अनीता

जिंदगी बोझ बन गयी है-अनीता
सभी बहनों के सरकार की ओर से दिव्यांग पेंशन के तहत कुल मिलाकर हजार-बारह सौ रुपये ही मिलते हैं. तीन बहनों को तो दिव्यांग पेंशन मिलता हैं, लेकिन हीरा के कागजात नहीं बन पाने की वजह से उसे दिव्यांग पेंशन के चार सौ रुपये तक नहीं मिल पाते. शरीर से लाचार अनीता कहती है कि जिंदगी बोझ बन गयी है. क्या खायेंगे, कैसे रहेगें....कोई नहीं जानता. जब से मां-बाप की मौत हुई, तब से घर के चौखट की दहलीज पार कर बाजार का नजारा तक नहीं देखा.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सरकार से मांग
इन दिव्यांग बहनों की सरकार से मांग है कि अगर दिव्यांग पेंशन की राशि बढ़ा दी जाती तो जिंदगी बसर करने में कुछ मदद हो जाती. उसी के जरिए चारों बहनों का राशन-पानी सही तरीके से मिल पाएगा. कम से कम खाने को लाले नहीं पड़ेंगे.

Intro:.........आज अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस हैं । पूरे देश मे दिव्यांगों के लिये सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं लेकिन आज हम आपको बिहार के कटिहार की एक परिवार की ऐसी दर्दनाक दास्ताँ बतायेगें जहाँ मात्र चार बहनें ही हैं और सभी के सभी दिव्यांगजन हैं । दिव्यांगता का अभिशाप झेल रहे इस चारों बहनों की जिन्दगी जिन्दा लाश बन कराह रही हैं । दिव्ययांगता की वजह से सभी बहनें ताउम्र अविवाहित हो अनाज के एक - एक दानें के लिये तिल - तिल कर भूखे मरने को विवश हैं .......।


Body:जमीन पर बैठी यह चार लोग......मीरा , हीरा , अनिता और लक्ष्मी ...आपस मे सगी बहनें हैं और चारों दिव्यांग हैं । कोई चल - फिर नही पाता तो कोई बोल नहीं पाता.....। माता - पिता के जिन्दा रहने तक किसी तरह दोनों शाम रोटी मिल जाया करते थे लेकिन सत्रह साल पूर्व पहले माँ की मौत और सात वर्ष पूर्व पिता की भी मौत हो गयी । एक भाई था , वह भी मौत की भेंट चढ़ गया । अब हालात यह हैं कि किसी तरह पुश्तैनी मकान , सिर पर छप्पर का आसरा हैं लेकिन क्या खायेगें , कैसे रहेगें ..... कोई नहीं जानता । बस किसी तरह गम के सूखे आँसू के साथ जिन्दा हैं...। सभी बहनों के सरकार के दिव्यांग पेंशन से हजार - बारह सौ रुपये आते हैं । एक आदमी पर चार सौ रुपये पेंशन मिलता हैं । तीन बहनों के तो दिव्यांग पेंशन मिलता हैं लेकिन एक बहन के कागजात नहीं बन पाने की वजह से उसे दिव्यांग पेंशन के चार सौ रुपये नहीं मिल पाते । सबसे बड़ी बहन अनिता जो कि शरीर से लाचार हैं और घिसट - घिसट कर किसी तरह इधर से उधर कर पाती हैं । अनिता बताती हैं कि जिन्दगी बोझ बन गयी हैं । क्या खायेंगे , कैसे रहेगें....कोई नहीं जानता । जब से माँ - बाप की मौत हुई , तब से घर के चौखट की दहलीज पार कर बाजार का दृश्य नहीं देखा । बस तिल - तिल कर मर रही हूँ । हीरा बताती हैं कि माँ - बाप की मौत के बाद परिजनों ने भी आना - जाना छोड़ दिया । अब तो भगवान भरोसे घिसट - घिसट कर जी रही हूँ । इससे तो अच्छा था कि ऊपर वाले का बुलावा आ जाता तो शायद मुक्ति मिल जाती । मीरा बताती हैं कि उसे तो शरीर के कष्ट के साथ मुँह से भी कुछ बोल नहीं पाती । क्या खायेगें , कैसे रहेगें , कुछ नहीं पता । बस चारों बहन एक साथ जिंदगी बसर कर रहे हैं , यही खुशकिस्मती हैं । सरकार यदि दिव्यांग पेंशन बढ़ा देती तो कुछ मदद में बढ़ोतरी होती । रोज सुबह जिन्दगी की जद्दोजहद शुरू होती हैं और हर दिन जीवन से संघर्ष करना पड़ता हैं। दिव्ययांगता की वजह से एक तरह से सामाजिक रूप से भी तिरस्कृत हो चुके हैं । इस दंश से घर में कभी खुशी के दीपक नहीं जले । अब तो धीरे - धीरे कई बीमारियों ने भी पैर पसारना शुरू कर दिया हैं लेकिन पैसे नहीं होने के कारण कैसे इलाज करायें , समझ मे नहीं आता । मीरा बताती हैं कि पहले कुछ लोग मदद के हाथ भी बढ़ाये थे लेकिन रफ्ता - रफ्ता सभी ने अपने हाथ पीछे समेट लिये .....। ख़ुशी पाने के लिये सभी बहनों ने बेजुबान तोता पाल रखा हैं ताकि ज़िन्दगी गुजारने के बहाने मिल सकें .....।


Conclusion:दिव्यांगों की जिन्दगी बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती हैं । हर छोटी - बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिये उसे दूसरों की आवश्यकता होती हैं । शारीरिक , मानसिक और आर्थिक रूप से लाचार इस चारों बहनों की नजर अब सरकारी आसरे के साथ उन दाताओं पर टिकी हैं कि कोई दाता आगे आता और मदद के हाथ आगे बढ़ाता ताकि पेट मे अनाज के दाने जाता । अब देखना दिलचस्प होगा कि कुदरत के मारे इस परिवार के मदद के लिये कोई हाथ आगे आता हैं ......।
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