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लॉकडाउन का सदुपयोग: फल्गु नदी की बंजर जमीन पर चंदन ने बनाया 'शांतिवन' - मोक्षदायिनी फल्गु का तट

कोरोना महामारी को लेकर लाॅकडाउन में गया के चंदन ने फल्गु नदी के तट की बंजर जमीन को जीवन देने वाले बागवान में बदल दिया है. उन्होंने इसे शांतिवन नाम दिया है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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शांतिवन में खड़े चंदन
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Published : May 26, 2021, 4:21 AM IST

Updated : May 26, 2021, 8:21 AM IST

गयाः बिहार में कोरोना महामारी से बचाव को लेकर लॉकडाउन लागू है. ऐसे में हम और आप जहां घरों में कैद होकर समय व्यतीत रहे रहे हैं. वहीं गया का एक युवक इसी लॉकडाउन में एक ऐसा काम कर रहा है जिससे पर्यावरण के साथ ही आम लोगों को भी फायदा हो रहा है.

यह युवक लाॅकडाउन के खाली समय का सदुपयोग कर फल्गु नदी के तट की बंजर भूमि को हरा-भरा बना रहा है. गया के चंदन लाल ने फल्गु नदी के तट की बंजर भूमि पर लगभग 500 पौधे लगाए हैं. उन्होंने अपने द्वारा लगाए गए इन पौधों को शांतिवन नाम दिया है. इस शांति वन में लगे सभी पौधे पिछले 15 माह में अब पेड़ का आकार ले रहे हैं.

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शांतिवन में पौधा लगाते चंदन

इसे भी पढ़ेंः धर्म नगरी में 65 करोड़ की लागत से बनेगा बिहार का पहला लक्ष्मण झूला, तीर्थयात्रियों को मिलेगी सुविधा

वट सावित्री पूजा से मिली प्रेरणा
दरअसल, गया नगर प्रखण्ड के केंदुआ गांव के युवक चंदन लाल को बंजर भूमि पर पेड़ पौधा लगाने की प्रेरणा वट सावित्री पूजा से मिली. वट सावित्री पूजा को लेकर गांव की महिलाओंं को एक पेड़ की तलाश में कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. महिलाओं को ज्यादा दूर न जाना पड़े इसी सोच को लेकर चंदन ने नदी के तट की बंजर भूमि में वट का पौधरोपण किया. उसके बाद ये कारवां चलता रहा. अभी तक यहां 500 पौधे लगाए गए हैं. ये सभी पौधा अब पेड़ का रूप धारण कर रहे हैं.

देखें वीडियो

वन विभाग की तरफ से भी की गई मदद
चंदन लाल बताते हैं कि उनके गांव में पिछले साल वट सावित्री पूजा के दौरान बरगद का पेड़ नहीं था, तपती धूप में महिलाएं दूसरे गांव में जाति थी. ये बात उन्हें अच्छी नहीं लगी. जिसको लेकर उन्होंने लॉक डाउन के दरम्यान गांव के अन्य युवाओं को प्रेरित कर फल्गु नदी के तट पर स्थित बंजर भूमि पर पौधे लगाने की शुरूआत की. शुरुआत में कुछ पौधे वन विभाग की तरफ से भी और कुछ हमने खरीदकर लगाए.

"इस बंजर भूमि को शांति वन नाम दिया है. इसमें 40 किस्म के 500 से अधिक पेड़-पौधे लगाए गए हैं. चे सारे पिछले लॉकडाउन के दरम्यान रोपे गए थे. बरगद अब बड़ा हो गया है, गांव की महिलाएं को अब दूसरे गांव में जाने का जरूरत नही पड़ेगी." चंदन लाल, शांतिवन का नींव रखनेवाला

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शांतिवन दिखाते चंदन

"शुरुआत में इस बंजर भूमि में काम करना बहुत मुश्किल था. इस बागवानी का रखवाली करनी थी ताकि कोई पौधो को तोड़े नहीं, ये किसी जानवर का चारा नही बन जाए. असके लिए गांव के ही एक दिव्यांग को पांच हजार के मेहनताना पर रखा गया, जो पौधे का देखभाल करते है. फल्गु नदी के तट पर ऐसी कई बंजर भूमि है ,धीरे धीरे सभी बंजर भूमि हैं जिनपर पौधे लगाये जा सकते हैं." चंदन लाल, शांतिवन का नींव रखनेवाला

मोक्षदायिनी फल्गु के तट को जीवन देनेवाले बगवान में बदलने का है सपना
आपको बता दे चंदन लाल जिला प्रशासनिक विभाग में कर्मचारी के तौर पर काम करते हैं. दिन में काम और सुबह - शाम शांतिवन की देखभाल ये उनकी दिनचर्या का हिस्सा है. चंदन का इस प्रयास की जिला प्रशासन और कृषि विभाग कई बार सराहना की है. चंदन इस शांतिवन में छायादार और फलदार पेड़ को तैयार करने के लिए हर माह 6 से 10 हजार खर्च करते है. उनका प्रयास है कि वे मोक्षदायिनी फल्गु के तट को जीवनदायिनी बगवान में बदल सकें.

गयाः बिहार में कोरोना महामारी से बचाव को लेकर लॉकडाउन लागू है. ऐसे में हम और आप जहां घरों में कैद होकर समय व्यतीत रहे रहे हैं. वहीं गया का एक युवक इसी लॉकडाउन में एक ऐसा काम कर रहा है जिससे पर्यावरण के साथ ही आम लोगों को भी फायदा हो रहा है.

यह युवक लाॅकडाउन के खाली समय का सदुपयोग कर फल्गु नदी के तट की बंजर भूमि को हरा-भरा बना रहा है. गया के चंदन लाल ने फल्गु नदी के तट की बंजर भूमि पर लगभग 500 पौधे लगाए हैं. उन्होंने अपने द्वारा लगाए गए इन पौधों को शांतिवन नाम दिया है. इस शांति वन में लगे सभी पौधे पिछले 15 माह में अब पेड़ का आकार ले रहे हैं.

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शांतिवन में पौधा लगाते चंदन

इसे भी पढ़ेंः धर्म नगरी में 65 करोड़ की लागत से बनेगा बिहार का पहला लक्ष्मण झूला, तीर्थयात्रियों को मिलेगी सुविधा

वट सावित्री पूजा से मिली प्रेरणा
दरअसल, गया नगर प्रखण्ड के केंदुआ गांव के युवक चंदन लाल को बंजर भूमि पर पेड़ पौधा लगाने की प्रेरणा वट सावित्री पूजा से मिली. वट सावित्री पूजा को लेकर गांव की महिलाओंं को एक पेड़ की तलाश में कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. महिलाओं को ज्यादा दूर न जाना पड़े इसी सोच को लेकर चंदन ने नदी के तट की बंजर भूमि में वट का पौधरोपण किया. उसके बाद ये कारवां चलता रहा. अभी तक यहां 500 पौधे लगाए गए हैं. ये सभी पौधा अब पेड़ का रूप धारण कर रहे हैं.

देखें वीडियो

वन विभाग की तरफ से भी की गई मदद
चंदन लाल बताते हैं कि उनके गांव में पिछले साल वट सावित्री पूजा के दौरान बरगद का पेड़ नहीं था, तपती धूप में महिलाएं दूसरे गांव में जाति थी. ये बात उन्हें अच्छी नहीं लगी. जिसको लेकर उन्होंने लॉक डाउन के दरम्यान गांव के अन्य युवाओं को प्रेरित कर फल्गु नदी के तट पर स्थित बंजर भूमि पर पौधे लगाने की शुरूआत की. शुरुआत में कुछ पौधे वन विभाग की तरफ से भी और कुछ हमने खरीदकर लगाए.

"इस बंजर भूमि को शांति वन नाम दिया है. इसमें 40 किस्म के 500 से अधिक पेड़-पौधे लगाए गए हैं. चे सारे पिछले लॉकडाउन के दरम्यान रोपे गए थे. बरगद अब बड़ा हो गया है, गांव की महिलाएं को अब दूसरे गांव में जाने का जरूरत नही पड़ेगी." चंदन लाल, शांतिवन का नींव रखनेवाला

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शांतिवन दिखाते चंदन

"शुरुआत में इस बंजर भूमि में काम करना बहुत मुश्किल था. इस बागवानी का रखवाली करनी थी ताकि कोई पौधो को तोड़े नहीं, ये किसी जानवर का चारा नही बन जाए. असके लिए गांव के ही एक दिव्यांग को पांच हजार के मेहनताना पर रखा गया, जो पौधे का देखभाल करते है. फल्गु नदी के तट पर ऐसी कई बंजर भूमि है ,धीरे धीरे सभी बंजर भूमि हैं जिनपर पौधे लगाये जा सकते हैं." चंदन लाल, शांतिवन का नींव रखनेवाला

मोक्षदायिनी फल्गु के तट को जीवन देनेवाले बगवान में बदलने का है सपना
आपको बता दे चंदन लाल जिला प्रशासनिक विभाग में कर्मचारी के तौर पर काम करते हैं. दिन में काम और सुबह - शाम शांतिवन की देखभाल ये उनकी दिनचर्या का हिस्सा है. चंदन का इस प्रयास की जिला प्रशासन और कृषि विभाग कई बार सराहना की है. चंदन इस शांतिवन में छायादार और फलदार पेड़ को तैयार करने के लिए हर माह 6 से 10 हजार खर्च करते है. उनका प्रयास है कि वे मोक्षदायिनी फल्गु के तट को जीवनदायिनी बगवान में बदल सकें.

Last Updated : May 26, 2021, 8:21 AM IST
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