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Chaiti Chhath Puja: गया में भगवान भास्कर तीनों प्रहर में विराजमान, छठ पर सुबह शाम दिया जाता है अर्घ्य

लोक आस्था का महापर्व चैती छठ पूजा के तीसरे दिन अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य (Worship of Bhaskar) दिया जाएगा. गया में तीनों प्रहर में भगवान भास्कर विराजमान हैं. भगवान सूर्य की प्रतिमा ब्राह्मणी घाट में पूरे परिवार के साथ स्थापित (Lord Bhaskar sitting with entire family in Gaya) है. यहां मध्याह्न कालीन भगवान भास्कर की प्रतिमा होने के कारण सुबह और शाम दोनों वक्त छठ में अर्घ्य दिया जाता है. पढ़ें ये रिपोर्ट..

गया में भगवान भास्कर
गया में भगवान भास्कर
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Published : Apr 7, 2022, 4:38 PM IST

गया: सूर्य देवता की उपासना और चैती छठ का महापर्व (Chaiti Chhath Puja) पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. आज अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य (Worship of Bhaskar) दिया जाएगा. वहीं, 8 अप्रैल शुक्रवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इसके साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाता है. आपको बता दें कि बिहार के गया में भगवान भास्कर तीनों प्रहर के रूप में विराजमान हैं. पितामहेश्वर में उत्तरायण सूर्य, सूरजकुंड में दक्षिणायन सूर्य और ब्राह्मणी घाट में दोपहर के भगवान बिरंची के रूप में भगवान सूर्य विराजमान हैं.

ये भी पढ़ें- पटना: उलार सूर्य मंदिर में दो साल बाद धूमधाम से चैती छठ पूजा का आयोजन

तीनों प्रहर के रूप में विराजमान सूर्य देवता: गया शहर में यह तीनों मंदिर चंद मीटर की दूरी पर स्थापित हैं. उदयीमान सूर्य की पहली किरण सबसे पहले पितामहेश्वर में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा पर पड़ती है. सबसे पहले बात पितामहेश्वर की करते हैं, जहां यह अलौकिक बात है कि यहां मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य की मूर्ति पर उदयीमान सूर्य की किरण सबसे पहले पड़ती है. इस मंदिर के किनारे पर स्थित सरोवर में छठ में उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जा जाता है.

भगवान सूर्य पूरे परिवार के साथ विराजमान: वहीं, सूरजकुंड में स्थित भगवान भास्कर की प्रतिमा की काफी महिमा है. यहां पूजा करने के बाद लोग निरोग हो जाते हैं. साथ ही संतान की प्राप्ति और अन्य मिन्नते पूरी हो जाती हैं. यहां अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा सदियों से है. ब्राह्मणी घाट में अपराहन के भगवान भास्कर की प्रतिमा है. यहां भगवान सूर्य पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं.

''सूर्य के 12 नामों में से एक भगवान भास्कर की यहां मध्यकालीन प्रतिमा है. इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में शायद ही कहीं है. प्रतिमा के दाहिने ओर उनके बेटे शनि, बाएं ओर यम, पैर के पास पत्नी संध्या और सारथी के रूप में अरुण मौजूद हैं. सात घोड़े के रथ पर सभी सवार हैं. प्रातः कालीन ऊषा और संध्याकालीन प्रत्यूषा की भी प्रतिमा है. कहते हैं कि शास्त्रों के हिसाब से प्रथम सतयुग के काल में इस मंदिर की स्थापना हुई है. यहां मध्याह्न कालीन भगवान भास्कर की प्रतिमा होने के कारण सुबह और शाम दोनों वक्त छठ में अर्घ्य दिया जाता है.''- मनोज कुमार मिश्र, पुजारी

ये भी पढ़ें- स्कंद पुराण में भी छठ महापर्व का है जिक्र, जानें अर्घ्य देने का समय

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गया: सूर्य देवता की उपासना और चैती छठ का महापर्व (Chaiti Chhath Puja) पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. आज अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य (Worship of Bhaskar) दिया जाएगा. वहीं, 8 अप्रैल शुक्रवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इसके साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाता है. आपको बता दें कि बिहार के गया में भगवान भास्कर तीनों प्रहर के रूप में विराजमान हैं. पितामहेश्वर में उत्तरायण सूर्य, सूरजकुंड में दक्षिणायन सूर्य और ब्राह्मणी घाट में दोपहर के भगवान बिरंची के रूप में भगवान सूर्य विराजमान हैं.

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तीनों प्रहर के रूप में विराजमान सूर्य देवता: गया शहर में यह तीनों मंदिर चंद मीटर की दूरी पर स्थापित हैं. उदयीमान सूर्य की पहली किरण सबसे पहले पितामहेश्वर में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा पर पड़ती है. सबसे पहले बात पितामहेश्वर की करते हैं, जहां यह अलौकिक बात है कि यहां मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य की मूर्ति पर उदयीमान सूर्य की किरण सबसे पहले पड़ती है. इस मंदिर के किनारे पर स्थित सरोवर में छठ में उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जा जाता है.

भगवान सूर्य पूरे परिवार के साथ विराजमान: वहीं, सूरजकुंड में स्थित भगवान भास्कर की प्रतिमा की काफी महिमा है. यहां पूजा करने के बाद लोग निरोग हो जाते हैं. साथ ही संतान की प्राप्ति और अन्य मिन्नते पूरी हो जाती हैं. यहां अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा सदियों से है. ब्राह्मणी घाट में अपराहन के भगवान भास्कर की प्रतिमा है. यहां भगवान सूर्य पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं.

''सूर्य के 12 नामों में से एक भगवान भास्कर की यहां मध्यकालीन प्रतिमा है. इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में शायद ही कहीं है. प्रतिमा के दाहिने ओर उनके बेटे शनि, बाएं ओर यम, पैर के पास पत्नी संध्या और सारथी के रूप में अरुण मौजूद हैं. सात घोड़े के रथ पर सभी सवार हैं. प्रातः कालीन ऊषा और संध्याकालीन प्रत्यूषा की भी प्रतिमा है. कहते हैं कि शास्त्रों के हिसाब से प्रथम सतयुग के काल में इस मंदिर की स्थापना हुई है. यहां मध्याह्न कालीन भगवान भास्कर की प्रतिमा होने के कारण सुबह और शाम दोनों वक्त छठ में अर्घ्य दिया जाता है.''- मनोज कुमार मिश्र, पुजारी

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