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18 साल बाद भी नेताओं को याद नहीं आया वादा तो शहीद के पिता ने खुद ही बनवाया स्मारक

शहीद अरुण कुमार शर्मा सातवीं बिहार बटालियन के सिपाही थे. आज शहादत को 18 साल हो गए लेकिन उनके लिए एक स्मारक तक नहीं बन पाई.

शहीद स्मारक
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Published : Feb 27, 2019, 2:07 PM IST

गयाः कारगिल युद्ध के चंद महीने ही गुजरे थे कि भारत की जीत से बौखलाए पाकिस्तान ने सीजफायर का उल्लंघन कर गोलीबारी शुरू कर दी. जिसमें शहीद हुए गया के जवान की शहादत पर सरकार ने एक स्मारक तक नहीं बनाई. सरकार की बेरूखी के बाद शहीद के पिता ने खुद ही अपने शहीद बेटे की याद में स्मारक बना ली.

statue
फोटो के पास बैठे पिता

2 जुलाई साल 2000 की शाम गया का जवान अरुण कुमार शर्मा शहीद हो गए थे. पिता ने बताया कि उनकी शादी हुए लगभग तीन महीने ही बीते थे. वे सातवीं बिहार बटालियन के सिपाही थे. आज शहादत को 18 साल हो गए लेकिन उनके बेटे की शहादत पर एक स्मारक तक नहीं बन पाई.

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शहीद अरूण कुमार की फोटो

उस वक्त के स्थानीय विधायक ने किया था वादा
ग्रामीण बताते हैं अरुण शर्मा के शहीद होने पर जिला प्रशासन से कई अधिकारी आये थे. बरसात का दिन था. पूरा रास्ता कीचड़ में तब्दील था. स्थानीय विधायक और अधिकारियों ने कहा कि शहीद के नाम से एक रास्ता और स्मारक बनाया जाएगा लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद वादा भूल गए. इसके बाद परिवार ने खुद ही स्मारक बनवाया.

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शहीद अरूण कुमार की फोटो

गयाः कारगिल युद्ध के चंद महीने ही गुजरे थे कि भारत की जीत से बौखलाए पाकिस्तान ने सीजफायर का उल्लंघन कर गोलीबारी शुरू कर दी. जिसमें शहीद हुए गया के जवान की शहादत पर सरकार ने एक स्मारक तक नहीं बनाई. सरकार की बेरूखी के बाद शहीद के पिता ने खुद ही अपने शहीद बेटे की याद में स्मारक बना ली.

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फोटो के पास बैठे पिता

2 जुलाई साल 2000 की शाम गया का जवान अरुण कुमार शर्मा शहीद हो गए थे. पिता ने बताया कि उनकी शादी हुए लगभग तीन महीने ही बीते थे. वे सातवीं बिहार बटालियन के सिपाही थे. आज शहादत को 18 साल हो गए लेकिन उनके बेटे की शहादत पर एक स्मारक तक नहीं बन पाई.

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शहीद अरूण कुमार की फोटो

उस वक्त के स्थानीय विधायक ने किया था वादा
ग्रामीण बताते हैं अरुण शर्मा के शहीद होने पर जिला प्रशासन से कई अधिकारी आये थे. बरसात का दिन था. पूरा रास्ता कीचड़ में तब्दील था. स्थानीय विधायक और अधिकारियों ने कहा कि शहीद के नाम से एक रास्ता और स्मारक बनाया जाएगा लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद वादा भूल गए. इसके बाद परिवार ने खुद ही स्मारक बनवाया.

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शहीद अरूण कुमार की फोटो
Intro:कारगिल युद्ध के चंद महीना ही गुजरा था टिकारी प्रखंड के उसरी गाँव के अरुण शर्मा शहीद होंगे थे। शहादत के 18 वर्ष बीत गया लेकिन आज तक सरकार और प्रशासन ने स्मारक तक नही बना सका। बुजुर्ग पिता ने थक हारकर खुद से एक स्मारक बनाये हैं।


Body:शादी के महज 72 दिनों बाद में गया के लाल देश के आन बान शान के खातिर जान दे दिया था। कारगिल युद्ध में भारत विजय हुआ था पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी थी । पाकिस्तान इस हार से बौखला कर सीजफायर का उल्लंघन कर बॉर्डर पर गोली दाग रहा था। 2 जुलाई 2000 ई को शाम में पाकिस्तान ने गोली दागना शुरू किया तो भारतीय फौज ने जवाबी फायरिंग की । कुछ देर बाद फायरिंग बन्द हुआ तो सिपाही अरुण कुमार शर्मा ने बंकर के छेद से पाकिस्तानी गतिविधियों को देखने लगे । घात लगाए पाकिस्तानी रेंजर्स ने गोली दाग दिया,गोली उनके गर्दन में लगा अरुण शर्मा शहीद होंगे।

अरुण शर्मा सातवी बिहार बटालियन के सिपाही थे, 1998 में सेना ज्वाइन किये थे। 2 जुलाई 2000 को शहीद होंगे थे। घर के लाडले देश के सेवा का मौका मिला तो घर के सभी लोग खुश थे । लोगो ने शादी के बाद खुशी खुशी विदा भी किये थे। उनको क्या मालूम था कारगिल युद्ध के बाद भी पाकिस्तान नही सुधरेगा। पाकिस्तान के गोली से अरुण शर्मा शहीद होंगे थे। माँ चुपचाप आंखों में आँसू लिए बैठी रही ,बस एक बात बोली बेटा के पैर का रंग भी नही छुटा था देश के खातिर शहीद हो गया।

अरुण शर्मा के पिता बताते हैं थाना से सूचना प्राप्त हुआ मेरा बेटा शहीद हो गया। घर मे शादी के माहौल था लोग खुशी में थे , उसी बीच ये सूचना आते ही घर मर कोहराम मच गया । मैं बैचन होगया मुझे विश्वास नही हो रहा था । थाना गया वहां पूछा वो बोले सूचना यही प्राप्त हुआ है टिकारी प्रखंड के महामना पंचायत के उसरी गाँव का अरुण शर्मा शहीद होंगे है। तब भी मन नही माना तो एक नंबर बेटा दिया था उस पर कॉल लगाकर पूछे तब उधर से अधिकारियों ने बताया कि मेरा बेटा सच मे शहीद हो गया है।

हजारो से हजारो लोग अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे , उस वक़्त वादा और घोषणाएं की चिंता नही थी बेटा चल गया था ये दुःख बर्दाश्त नही हो रहा था। समय बीतते गया विधानसभा का चुनाव आया टिकारी विधानसभा से प्रत्याशी के रूप में अनिल शर्मा थे उन्होंने वादा किया था जितने पर एक स्मारक बना देंगे। अनिल शर्मा जीत गए कई महीनों के बाद उनके पास गए तो उन्होंने कह दिया अब फंड नही है इसलिए नही बन सकेगा। सरकार और प्रशासन ने नही बनाया तो जितना आर्थिक शक्ति रहा उसके अनुसार खुद एक स्मारक बना दिये। छोटा बेटा 15 अगस्त और 26 जनवरी को जो तिरंगा दिया गया था उसी को स्मारक स्थल पर फहराता हैं। 2 जुलाई को भी हमलोग भी याद में पूजा पाठ करते हैं।


Conclusion:ग्रामीण बताते हैं अरुण शर्मा के शहीद होने पर जिला प्रशासन से कई अधिकारी आये थे। बरसात के दिन था पूरा रास्ता कीचड़ में तब्दील था जैसे तैसे शव आया। सभी ने कहा था सबसे पहले एक रास्ता और स्मारक बनाया जाएगा। सड़क तो 3 माह पहले बना है। स्मारक आज तक नही बन सका। परिवार के लोग खुद से छोटा स्मारक बनाये हैं। शहादत पर कितनी बाते की गई पर आज तक कुछ नही हो सका। सरकार और प्रशासन ने वादाखिलाफी किया है।

शहीद के पिता किसान है उनका जीवन यापन खेती पर है बेटा का पेंशन बहु और माँ-पिता में आधा आधा बंट जाता हैं।
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