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बिहार में शिक्षा व्यवस्था का हाल देखिए- यहां पेड़ों के नीचे लगती है पाठशाला, 70 साल से नहीं बदली तस्वीर - etv bihar news

गया में ऐसा स्कूल जिसकी 10 कक्षाओं के लिए 10 पेड़ों का सहारा लिया जाता है. सात दशकों में नहीं बदली उत्क्रमित हाई स्कूल हथियार (Upgraded High School Hathiyar In Gaya) की तस्वीर. 70 साल बाद भी इस स्कूल की सूरत बदली है ना सीरत. यहां बगीचे में बच्चों की क्लास लगती है. बिहार सरकार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती तस्वीर की पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

सरकारी विद्यालय की बदहाल स्थिति
सरकारी विद्यालय की बदहाल स्थिति
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Published : Jul 26, 2022, 11:07 PM IST

गया: बिहार के गया में सरकारी विद्यालयों की स्थिति बदहाल (Bad Condition Of Government Schools In Gaya) है. कई स्थानों पर आज भी बदतर हालात स्कूलों के हैं. बोधगया प्रखंड अंतर्गत उत्क्रमित हाई स्कूल हथियार सरकार के दावों पर काला दाग है. यहां के छात्रों के लिए 10 पेड़ों या यूं कहें कि बगीचे के सहारे यहां बच्चों को पढ़ाया जाता है तो गलत नहीं होगा. यहां के बच्चे आज भी बगीचे में बोरे पर बैठकर अध्ययन करने को विवश हैं. एक दो नहीं बल्कि 10 पेड़ों के सहारे किसी तरह यह विद्यालय संचालित हो रहा है. यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है.

ये भी पढ़ें- न रास्ता, न बिजली, न भवन, 'ऐसे पढ़ेगा बिहार, तो कैसे बढ़ेगा बिहार?'

गया में बदहाल शिक्षा व्यवस्था : बोधगया प्रखंड का उत्क्रमित हाई स्कूल हथियार (Upgraded High School Hathiyar Of Bodh Gaya Block) गया मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. लेकिन इस विद्यालय के लिए बदलाव आज भी एक चुनौती ही है. इस विद्यालय के नाम तो बदलते रहे, लेकिन न तो सूरत बदली और ना हीं सीरत. इस विद्यालय में सुविधाओं का घोर अभाव है तो छात्रों को उनके शिक्षा के अधिकार से कहीं न कहीं खिलवाड़ जरूर किया जा रहा. विद्यालय की यह स्थिति 1-2 सालों से नहीं बल्कि 7 दशकों यानि करीब 70 सालों से यथावत है. इस विद्यालय की स्थापना सबसे पहले 1954 में प्राथमिक विद्यालय हथियार के रूप में हुई थी. इसके बाद यह उच्च माध्य विद्यालय हथियार के रूप में बनाया गया और अब यह उत्क्रमित हाईस्कूल हथियार के रूप में बना है. 1954 से बने इस विद्यालय में समस्याओं का अंबार है. 7 दशकों से पेड़ ही बना है सहारा, बगीचे में होती है पढ़ाई. 700 से अधिक बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं.

सात दशकों से बनी है यही स्थिति: इस विद्यालय का सहारा दस पेड़ ही बने हुए हैं. बगीचे में बच्चों की क्लास लगती है. 700 से अधिक बच्चे यहां नामांकित हैं. ठंड हो गर्मी हो या बरसात, बच्चे सारे मौसमों की मार झेलते हुए किसी तरह यहां पढ़ाई करने को विवश हैं. गर्मी के दिन में लू के थपेड़े तो बरसात का मौसम कई दिनों तक इन्हें पढ़ाई से वंचित कर देता है. इस विद्यालय में भवनों का पूरी तरह से अभाव है. पुराने जमाने से बने दो भवन टूट-टूट कर गिर रहे हैं. वही इसके अलावा मात्र एक प्रिंसिपल का ही ऑफिस है. वह भी छोटा सा है. ऐसे में भवनों के अभाव के कारण बच्चे बगीचे में पढ़ने को विवश हैं.

पेड़ों पर लटकते हैं कक्षा के बोर्ड : अलग-अलग कक्षा के बोर्ड पेड़ों पर ही लटकाई जाती है और छात्र-छात्राएं उसी के अनुसार अपनी उपस्थिति बगीचे वाली क्लास में करते हैं. मौसम की मार से बीच में कब पढ़ाई रोककर छुट्टी कर दी जाए, यह भी मौसम ही तय करता है. यहां पढ़ने वाली छात्रा सीता कुमारी पांचवी कक्षा में अध्ययनरत है. बताती है कि- 'हम कुछ बनना चाहते हैं, लेकिन बहुत सी सुविधाएं नहीं मिलने का कारण पढ़ाई प्रभावित हो रही है. सरकार से मांग करते हैं कि हमें टेबल, कुर्सी, भवन आदि दिया जाए, जिससे कि हमारी बगीचे की कक्षा स्कूल के अंदर में लग सके और सारी सुविधाएं मिल सके.'

'वह इंजीनियर बनने का सपना पाले हुए हैं, लेकिन यहां की पढ़ाई मौसम के अनुसार ही चलती है, जिसके कारण शिक्षण काफी प्रभावित होता है. हम लोग ऐसी व्यवस्था के बीच पढ़ने को मजबूर हैं.' - फरहीन रजा, आठवीं कक्षा की छात्र

'हम लोग मजबूर हैं. भवन के बिना यह स्कूल बगीचे में चलता है. काफी दिक्कत होती हैं, लेकिन व्यवस्था के अनुसार ही अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं.' - गिरजा कुमारी सिन्हा, शिक्षिका

'यह हाई स्कूल हुआ है, लेकिन अभी तक इसका भवन की शुरुआत नहीं हुई है. कक्षा पेड़ों के नीचे बगीचे में ही संचालित करने की मजबूरी है. पढ़ाई किसी तरह गर्मी, ठंडा बरसात के मौसम में चलता है. मौसम खराब हो तो कक्षा बंद कर बच्चों को छुट्टी दे दी जाती है. सरकार से आवाज लगाई गई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए उठाए गए हैं. पिछले कई सालों से विभाग समेत सरकार तक यहां के लिए भवन, टेबल, कुर्सी समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं की मांग की गई है.' - अविनाश कुमार, शिक्षक


डेढ़ सौ बच्चों पर हैं एक शिक्षक : बड़ी बात यह है कि यहां 728 बच्चे नामांकित हैं, किंतु शिक्षक और शिक्षिका को मिलाकर कुल 5 ही पढ़ाने वाले हैं. इस तरह करीब डेढ़ सौ छात्रों पर मात्र एक शिक्षक हैं. ऐसे में सरकारी व्यवस्था और सरकार की शिक्षा नीति ढुलमुल ही नजर आती है. सरकार के मजबूत शिक्षा के दावे को खोखला करती है यहां की तस्वीरें. उत्क्रमित हाई स्कूल हथियार की दुर्दशा सरकार की मजबूत शिक्षा नीति की पोल खोलती है.

सरकारी दावों की पोल खोल रहा हथियार विद्यालय : एक ओर सरकारी रहनुमा दावा करते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में बड़े-बड़े कदम उठाए गए हैं, लेकिन यहां की व्यवस्था जमीनी हकीकत को दिखा रही है और बता रही है कि आज भी यहां के छात्र को मूलभूत सुविधाओं से ही वंचित कर दिए गए हैं. ऐसे में उनका भविष्य अंधकार में ही बना हुआ है. यहां पढ़ने वाले बच्चों की प्रतिभा भी दम तोड़ कर रह जा रही है. नतीजतन 1954 से स्थापित विद्यालय सात दशकों के बाद भी अपने शिक्षा के दुर्दशा वाले स्थान पर ही खड़ा है. इधर इस संबंध में जिला शिक्षा पदाधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई,लेकिन उनका मोबाइल स्विच ऑफ था.

गया: बिहार के गया में सरकारी विद्यालयों की स्थिति बदहाल (Bad Condition Of Government Schools In Gaya) है. कई स्थानों पर आज भी बदतर हालात स्कूलों के हैं. बोधगया प्रखंड अंतर्गत उत्क्रमित हाई स्कूल हथियार सरकार के दावों पर काला दाग है. यहां के छात्रों के लिए 10 पेड़ों या यूं कहें कि बगीचे के सहारे यहां बच्चों को पढ़ाया जाता है तो गलत नहीं होगा. यहां के बच्चे आज भी बगीचे में बोरे पर बैठकर अध्ययन करने को विवश हैं. एक दो नहीं बल्कि 10 पेड़ों के सहारे किसी तरह यह विद्यालय संचालित हो रहा है. यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है.

ये भी पढ़ें- न रास्ता, न बिजली, न भवन, 'ऐसे पढ़ेगा बिहार, तो कैसे बढ़ेगा बिहार?'

गया में बदहाल शिक्षा व्यवस्था : बोधगया प्रखंड का उत्क्रमित हाई स्कूल हथियार (Upgraded High School Hathiyar Of Bodh Gaya Block) गया मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. लेकिन इस विद्यालय के लिए बदलाव आज भी एक चुनौती ही है. इस विद्यालय के नाम तो बदलते रहे, लेकिन न तो सूरत बदली और ना हीं सीरत. इस विद्यालय में सुविधाओं का घोर अभाव है तो छात्रों को उनके शिक्षा के अधिकार से कहीं न कहीं खिलवाड़ जरूर किया जा रहा. विद्यालय की यह स्थिति 1-2 सालों से नहीं बल्कि 7 दशकों यानि करीब 70 सालों से यथावत है. इस विद्यालय की स्थापना सबसे पहले 1954 में प्राथमिक विद्यालय हथियार के रूप में हुई थी. इसके बाद यह उच्च माध्य विद्यालय हथियार के रूप में बनाया गया और अब यह उत्क्रमित हाईस्कूल हथियार के रूप में बना है. 1954 से बने इस विद्यालय में समस्याओं का अंबार है. 7 दशकों से पेड़ ही बना है सहारा, बगीचे में होती है पढ़ाई. 700 से अधिक बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं.

सात दशकों से बनी है यही स्थिति: इस विद्यालय का सहारा दस पेड़ ही बने हुए हैं. बगीचे में बच्चों की क्लास लगती है. 700 से अधिक बच्चे यहां नामांकित हैं. ठंड हो गर्मी हो या बरसात, बच्चे सारे मौसमों की मार झेलते हुए किसी तरह यहां पढ़ाई करने को विवश हैं. गर्मी के दिन में लू के थपेड़े तो बरसात का मौसम कई दिनों तक इन्हें पढ़ाई से वंचित कर देता है. इस विद्यालय में भवनों का पूरी तरह से अभाव है. पुराने जमाने से बने दो भवन टूट-टूट कर गिर रहे हैं. वही इसके अलावा मात्र एक प्रिंसिपल का ही ऑफिस है. वह भी छोटा सा है. ऐसे में भवनों के अभाव के कारण बच्चे बगीचे में पढ़ने को विवश हैं.

पेड़ों पर लटकते हैं कक्षा के बोर्ड : अलग-अलग कक्षा के बोर्ड पेड़ों पर ही लटकाई जाती है और छात्र-छात्राएं उसी के अनुसार अपनी उपस्थिति बगीचे वाली क्लास में करते हैं. मौसम की मार से बीच में कब पढ़ाई रोककर छुट्टी कर दी जाए, यह भी मौसम ही तय करता है. यहां पढ़ने वाली छात्रा सीता कुमारी पांचवी कक्षा में अध्ययनरत है. बताती है कि- 'हम कुछ बनना चाहते हैं, लेकिन बहुत सी सुविधाएं नहीं मिलने का कारण पढ़ाई प्रभावित हो रही है. सरकार से मांग करते हैं कि हमें टेबल, कुर्सी, भवन आदि दिया जाए, जिससे कि हमारी बगीचे की कक्षा स्कूल के अंदर में लग सके और सारी सुविधाएं मिल सके.'

'वह इंजीनियर बनने का सपना पाले हुए हैं, लेकिन यहां की पढ़ाई मौसम के अनुसार ही चलती है, जिसके कारण शिक्षण काफी प्रभावित होता है. हम लोग ऐसी व्यवस्था के बीच पढ़ने को मजबूर हैं.' - फरहीन रजा, आठवीं कक्षा की छात्र

'हम लोग मजबूर हैं. भवन के बिना यह स्कूल बगीचे में चलता है. काफी दिक्कत होती हैं, लेकिन व्यवस्था के अनुसार ही अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं.' - गिरजा कुमारी सिन्हा, शिक्षिका

'यह हाई स्कूल हुआ है, लेकिन अभी तक इसका भवन की शुरुआत नहीं हुई है. कक्षा पेड़ों के नीचे बगीचे में ही संचालित करने की मजबूरी है. पढ़ाई किसी तरह गर्मी, ठंडा बरसात के मौसम में चलता है. मौसम खराब हो तो कक्षा बंद कर बच्चों को छुट्टी दे दी जाती है. सरकार से आवाज लगाई गई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए उठाए गए हैं. पिछले कई सालों से विभाग समेत सरकार तक यहां के लिए भवन, टेबल, कुर्सी समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं की मांग की गई है.' - अविनाश कुमार, शिक्षक


डेढ़ सौ बच्चों पर हैं एक शिक्षक : बड़ी बात यह है कि यहां 728 बच्चे नामांकित हैं, किंतु शिक्षक और शिक्षिका को मिलाकर कुल 5 ही पढ़ाने वाले हैं. इस तरह करीब डेढ़ सौ छात्रों पर मात्र एक शिक्षक हैं. ऐसे में सरकारी व्यवस्था और सरकार की शिक्षा नीति ढुलमुल ही नजर आती है. सरकार के मजबूत शिक्षा के दावे को खोखला करती है यहां की तस्वीरें. उत्क्रमित हाई स्कूल हथियार की दुर्दशा सरकार की मजबूत शिक्षा नीति की पोल खोलती है.

सरकारी दावों की पोल खोल रहा हथियार विद्यालय : एक ओर सरकारी रहनुमा दावा करते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में बड़े-बड़े कदम उठाए गए हैं, लेकिन यहां की व्यवस्था जमीनी हकीकत को दिखा रही है और बता रही है कि आज भी यहां के छात्र को मूलभूत सुविधाओं से ही वंचित कर दिए गए हैं. ऐसे में उनका भविष्य अंधकार में ही बना हुआ है. यहां पढ़ने वाले बच्चों की प्रतिभा भी दम तोड़ कर रह जा रही है. नतीजतन 1954 से स्थापित विद्यालय सात दशकों के बाद भी अपने शिक्षा के दुर्दशा वाले स्थान पर ही खड़ा है. इधर इस संबंध में जिला शिक्षा पदाधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई,लेकिन उनका मोबाइल स्विच ऑफ था.

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