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भागलपुर: बाजार से ओझल हो रहे रेशमी कपड़े, सुनिए बुनकरों का दर्द

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Published : Nov 26, 2019, 12:09 PM IST

बुनकरों ने कहा कि सरकार चाहे तो आसानी से बुनकर के बनाए रेशम कपड़ों को खरीद कर बुनकरों को आर्थिक सहयोग पहुंचा सकती है. लेकिन मौजूदा हालात ऐसा है कि सरकार ने पूरी तरह से रेशम बनाने वाले बुनकरों की उपेक्षा की है.

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बाजार से ओझल हो रहे रेशमी कपड़े

भागलपुर: पूरे देश और दुनिया में रेशम उत्पादन के लिए मशहूर भागलपुर के बुनकरों की हालत पहले से ज्यादा बदत्तर हो गई है. वह पेट भरने के लिए अपने पारंपरिक पेशे 'बुनकरी' से तो जुड़े हैं लेकिन रेशमी शहर के रेशम की बुनकरी को छोड़कर लिनन और स्टॉल तैयार कर रहे हैं.

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बुनकरों के जरिए बनाए गए कपड़े

बचपन से ही बुनकरी के पेशे से जुड़े इबरार अंसारी का कहना है. बुनकरों की इस हालत के लिए सरकार जिम्मेदार है और साथ ही साथ जो नया बाजार तैयार हुआ है. वहां पर लोग कम पैसे देकर कपड़े खरीदना चाहते हैं. जबकि रेशम के वस्त्र काफी महंगे बिकते हैं. बाजार के हिसाब से बुनकर अभी लिनन कॉटन और स्टॉल की तैयारी कर रहे हैं.

bhagalpur
जानकारी देते बुनकर

दो वक्त की रोटी को मजबूर हुए बुनकर
बुनकरों ने कहा कि सरकार चाहे तो आसानी से बुनकर के बनाए रेशम कपड़ों को खरीद कर बुनकरों को आर्थिक सहयोग पहुंचा सकती है. लेकिन मौजूदा हालात ऐसा है कि सरकार ने पूरी तरह से रेशम बनाने वाले बुनकरों की उपेक्षा की है. बुनकरों की मजबूरी है कि उन्हें अपने पेशे के जरिए ही परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटानी पड़ रही है. इसलिए बुनकर लिनन कॉटन और स्टॉल बनाकर बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का पेट पेट भर रहे हैं. सरकार ने चुनाव के दौरान बुनकरों की स्थिति को सुधारने की बात तो कही थी. लेकिन बुनकरों को सुधारने की स्थिति महज चुनावी दावा बनकर रह गई. जिसके चलते जमीनी तौर पर बुनकरों की हालत बहुत ही ज्यादा दयनीय हो गई है.

पेश है रिपोर्ट

बाजार से ओझल हो रहे रेशमी कपड़े
अपने पारंपरिक बुनकरी के पेशे से जुड़े हुए युवा बुनकर तहसीन शबाब का कहना है की इन दिनों मार्केट में कॉटन लिनन और दुपट्टे की डिमांड बढ़ी है. इसलिए मार्केट के हिसाब से कपड़ा तैयार करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि भागलपुर के मशहूर रेशम के कपड़े धीरे-धीरे बाजार से ओझल होते जा रहे हैं. जो लोग बुनकरी ही से जुड़े हुए हैं. वैसे लोगों को अपना पेट भरने के लिए बुनकरी ही करना पड़ रहा है. क्योंकि बुनकरों को दूसरा कोई पेशा नहीं दिखाई दे रहा है.

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युवा बुनकर से बात करते संवाददाता

भागलपुर: पूरे देश और दुनिया में रेशम उत्पादन के लिए मशहूर भागलपुर के बुनकरों की हालत पहले से ज्यादा बदत्तर हो गई है. वह पेट भरने के लिए अपने पारंपरिक पेशे 'बुनकरी' से तो जुड़े हैं लेकिन रेशमी शहर के रेशम की बुनकरी को छोड़कर लिनन और स्टॉल तैयार कर रहे हैं.

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बुनकरों के जरिए बनाए गए कपड़े

बचपन से ही बुनकरी के पेशे से जुड़े इबरार अंसारी का कहना है. बुनकरों की इस हालत के लिए सरकार जिम्मेदार है और साथ ही साथ जो नया बाजार तैयार हुआ है. वहां पर लोग कम पैसे देकर कपड़े खरीदना चाहते हैं. जबकि रेशम के वस्त्र काफी महंगे बिकते हैं. बाजार के हिसाब से बुनकर अभी लिनन कॉटन और स्टॉल की तैयारी कर रहे हैं.

bhagalpur
जानकारी देते बुनकर

दो वक्त की रोटी को मजबूर हुए बुनकर
बुनकरों ने कहा कि सरकार चाहे तो आसानी से बुनकर के बनाए रेशम कपड़ों को खरीद कर बुनकरों को आर्थिक सहयोग पहुंचा सकती है. लेकिन मौजूदा हालात ऐसा है कि सरकार ने पूरी तरह से रेशम बनाने वाले बुनकरों की उपेक्षा की है. बुनकरों की मजबूरी है कि उन्हें अपने पेशे के जरिए ही परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटानी पड़ रही है. इसलिए बुनकर लिनन कॉटन और स्टॉल बनाकर बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का पेट पेट भर रहे हैं. सरकार ने चुनाव के दौरान बुनकरों की स्थिति को सुधारने की बात तो कही थी. लेकिन बुनकरों को सुधारने की स्थिति महज चुनावी दावा बनकर रह गई. जिसके चलते जमीनी तौर पर बुनकरों की हालत बहुत ही ज्यादा दयनीय हो गई है.

पेश है रिपोर्ट

बाजार से ओझल हो रहे रेशमी कपड़े
अपने पारंपरिक बुनकरी के पेशे से जुड़े हुए युवा बुनकर तहसीन शबाब का कहना है की इन दिनों मार्केट में कॉटन लिनन और दुपट्टे की डिमांड बढ़ी है. इसलिए मार्केट के हिसाब से कपड़ा तैयार करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि भागलपुर के मशहूर रेशम के कपड़े धीरे-धीरे बाजार से ओझल होते जा रहे हैं. जो लोग बुनकरी ही से जुड़े हुए हैं. वैसे लोगों को अपना पेट भरने के लिए बुनकरी ही करना पड़ रहा है. क्योंकि बुनकरों को दूसरा कोई पेशा नहीं दिखाई दे रहा है.

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युवा बुनकर से बात करते संवाददाता
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भागलपुर की पहचान एवं परंपरागत रेशम वस्त्र की बुनकरी को छोड़कर बुनकर कर रहे लिनन एवं स्टॉल तैयार

पूरे देश और दुनिया में रेशम उत्पादन के लिए मशहूर शहर भागलपुर के बुनकरों की हालत 1 से ज्यादा बत्तर हो गई है पेट भरने के लिए अपने पारंपरिक पेशा बुनकारी से तो जुड़े हैं लेकिन रेशमी शहर के रेशम की बुनकारी को छोड़कर लिनन और स्टॉल तैयार कर रहे हैं बचपन से ही बुनकारी के पैसे से जुड़े इबरार अंसारी का कहना है बुनकरों की इस हालत के लिए सरकार जिम्मेदार हैं और साथ ही साथ जो नया बाजार तैयार हुआ है वहां पर लोग कम पैसे देकर कपड़े खरीदना चाहते हैं जबकि रेशम के वस्त्र काफी महंगे बिकते हैं बाजार के हिसाब से बुनकर अभी लिनन कॉटन एवं स्टॉल की तैयारी कर रहे हैं ।


Body:सरकार चाहे तो आसानी से बुनकर के बनाए रेशम कपड़ों को खरीद सकती है और बुनकरों को आर्थिक सहयोग पहुंचा सकती है लेकिन मौजूदा हालात ऐसा है कि सरकार ने पूरी तरह से रेशम बनाने वाले बुनकरों की उपेक्षा की है लेकिन बुनकरों की मजबूरी है कि उन्हें अपने पेशा से ही दो जून की रोटी अपने और अपने परिवार के लिए जुटाना है इसलिए बुनकर लिनन कॉटन एवं स्टॉल बनाकर अपने परिवार का बड़ी मुश्किल से पेट भर रहे हैं । सरकार ने चुनाव के दौरान बुनकरों के स्थिति को सुधारने की बात तो कही थी लेकिन बुनकरों को सुधारने की स्थिति महज चुनावी दावा बनकर रह गया जमीनी तौर पर बुनकरों की हालत बहुत ही ज्यादा दयनीय हो गई है , काफी मुश्किल से अपने और अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम कर पा रहे हैं।


Conclusion:वही अपने पारंपरिक बुनकारी के पेशे से जुड़े हुए युवा बुनकर तहसीन शबाब का कहना है की मार्केट की डिमांड इन दिनों कॉटन लिनन एवं दुपट्टे की हो गई है इसलिए मार्केट के हिसाब से हमें कपड़ा तैयार करना पड़ रहा है जो पारंपरिक रेशम के कपड़े भागलपुर के मशहूर हुआ करते थे वह अब बिल्कुल बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं और धीरे-धीरे भागलपुर का रेशम अपनी पहचान होने के कगार पर पहुंच गया है लेकिन जो लोग बुनकरी ही से जुड़े हुए हैं वैसे लोगों को अपना पेट भरने के लिए बुनकरी ही करना पड़ रहा है क्योंकि दूसरा कोई पेशा फिलहाल बुनकरों को नहीं दिखाई दे रहा है इसलिए किसी पैसे में दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए बुनकर बुनकरी कर रहे हैं ।

पीटूसी संतोष श्रीवास्तव संवाददाता भागलपुर
बाइट तहसीन शबाब युवा बुनकर भागलपुर ब्लू टीशर्ट और टोपी में
बाइट इबरार अंसारी बुनकर भागलपुर
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