बेगूसराय: कीमती लाल पथर से निर्मित सलोना गांव स्थित ठाकुरबाड़ी में पहले जहां श्रावन माह में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था. आज वीरानी इसकी पहचान बन गयी है. पुरी मंदिर या औरंगाबाद के सूर्य मंदिर की भांति खूबसूरत नक्काशी बिहार में इसे अद्वितीय बनाती है. खास बात ये कि इस मंदिर का अयोध्या कनेक्शन इसके इतिहास को स्वर्णिम बनाता है.
बेगूसराय जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर बखरी प्रखंड के सलोना गांव में स्थित "सलोना बड़ी ठाकुरबाड़ी "का अपना एक स्वर्णिम इतिहास है. इसके बावजूद भी वर्तमान समय में प्रशासनिक उदासीनता और अतिक्रमणकारियों के आघात झेलने को यह मंदिर विवश है.
300 वर्ष पहले की गई थी स्थापना
कीमती लाल पत्थर से निर्मित यह राम-जानकी मंदिर अपनी खूबसूरत नक्काशी और इतिहास के वैभवशाली क्षणों के कारण खासा लोकप्रिय है. जानकारी के मुताबिक इस मंदिर की स्थापना मुगल शासन काल में आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व स्वामी मस्तराम के द्वारा की गई थी. अयोध्या राम मंदिर से जुड़े अभिलेख के अनुसार अयोध्या के कल्पवृक्ष में भगवान राम से जुड़ी चीजों में इस मंदिर का भी जिक्र है. मंदिर के संस्थापक के रूप में स्वामी मस्त राम का नाम उल्लेखित है.
मंदिर का इतिहास
जानकारों के मुताबिक कीमती लाल पत्थर से निर्मित ये मंदिर बिहार में अद्वितीय है. इसमें की गई नक्काशी पूरी के मंदिर और औरंगाबाद के सूर्य मंदिर की भांति काफी आकर्षक है. इसके निर्माण में 15 वर्ष का समय लगा था. उस समय पांच लाख रुपये और 32 बीघे जमीन के 15 साल के फसल का मूल्य इस मंदिर में लगाया गया था. मंदिर में अष्ट धातु से निर्मित राम-जानकी बजरंगबली समेत अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित थी जो बाद में चोरों ने चोरी कर ली.
लाखों की संख्या में आते थे श्रद्धालु
पवित्र श्रावण मास में अयोध्या से आए पंडितों और प्रवचनकर्ताओं की ओर से यहां पर झूलन महोत्सव का आयोजन होता था. इसमें पूरे बिहार से लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते थे और हजारों लोग भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते थे. मंदिर के पास वैसे तो 36 सौ बीघा जमीन का मालिकाना हक था. लेकिन वर्तमान समय में न्यास बोर्ड के अभिलेख के आधार पर इस मंदिर के पास 200 बीघा जमीन है. शेष बची जमीन पर भी स्थानीय दबंग अतिक्रमणकारी गिद्ध दृष्टि लगाए हुए हैं.
लोगों का क्या है कहना
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि सैकड़ों एकड़ जमीन पर अवैध रूप से लोगों ने कब्जा जमा रखा है. जिस पर प्रशासन और न्यास बोर्ड कोई बड़ा कदम नहीं उठा रहा है. जिस जमीन पर अवैध कब्जा है, वहां कई स्कूल और जन उपयोगी कार्य किए जा सकते हैं, लेकिन प्रशासन संवेदनहीन बना बैठा है.
तारणहार की बाट जोह रहे लोग
बहरहाल इतना तय है कि प्रशासन के हस्तक्षेप से न सिर्फ इस मंदिर के सैकड़ों एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाया जा सकता है, बल्कि पर्यटन को बढ़ावा देने से इसका कायाकल्प भी किया जा सकता है. स्थानीय लोग इस मंदिर के उद्धार के लिए तारणहार की बाट जोह रहे हैं.