नई दिल्ली: पार्टिसिपेटरी नोट्स (पी-नोट्स) के माध्यम से भारतीय प्रतिभूति बाजार में किया गया विदेशी निवेश जून के अंत में गिरकर 81,913 करोड़ रुपये रहा. इससे पहले पिछले चार महीनों से इसमें वृद्धि हो रही थी.
पी-नोट्स भारत में पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा विदेश में अपने ग्राहकों को जारी किए जाने वाले डेरिवेटिव (ब्युत्पन्न) अनुबंध होते हैं. इन अनुबंधों के तहत लगायी जाने वाली पूंजी भारतीय प्रतिभूतियों में निवेश की जाती है. ऐसे विदेशी निवेशक जो भारतीय शेयर बाजार में सीधे पंजीकरण कराए बिना निवेश करना चाहते हैं वे पी-नोट का रास्ता अपना सकते हैं.
फरवरी के अंत में पी-नोट्स के जरिए कुल निवेश 73,428 करोड़ रुपये था. मार्च के अत में यह आंकड़ा 78,110 करोड़ रुपये, अप्रैल में 81,220 करोड़ रुपये और मई के अंत में 82,619 करोड़ रुपये था.
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बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार शेयर, ऋण और डेरिवेटिव बाजार में पी-नोट्स के जरिए होने वाला निवेश जून अंत तक गिरकर 81,913 करोड़ रुपये रह गया. इसमें 56,664 करोड़ रुपये का निवेश शेयरों में, 24,428 करोड़ रुपये बांड और 821 करोड़ रुपये घरेलू डेरिवेटिव अनुबंधों में किया गया था.
इस प्रकार जून के अंत में पी-नोट्स का निवेश मई के 82,619 करोड़ रुपये के मुकाबले 0.85 प्रतिशत कम हो गया. ग्रो के सह-संस्थापक ईशान बंसल ने कहा कि वर्ष 2017 से पी-नोट्स के जरिए निवेश का आर्षण कम हुआ है.
इसकी बड़ा कारण नियामकीय संस्थानों द्वारा इस रास्ते से निवेश को हतोत्साहित करने के लिए उठाए जाने वाले कदम हैं. भारत में एफपीआई के रूप में पंजीकरण की प्रक्रिया सरल बनाए जाने के बाद पिछले कुछ महीनों से बहुत से पी-नोट्स निवेशक अपने को एफपीआई के रूप में बदल रहे हैं.
सेबी ने जुलाई 2017 में कालेधन के दुरुपयोग पर निगरानी रखने के लिए इस तरह के प्रत्येक पी नोट अनुबंध पर 1000 डॉलर का शुल्क लगाने की अधिसूचना जारी की थी. सेबी ने हेजिंग के उद्येश्य को छोड़ डेरिवेटिव अनुबंधों के आधार पर पी नोट जारी करने पर भी रोक लगा दी है.