पटना : लालू प्रसाद यादव के छोटे भाई सुखदेव यादव एवं उनकी पत्नी चंपा ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र में आने वाले वेटनरी कॉलेज में उन्होंने अपना मतदान किया
लालू परिवार के लोग लगातार यहां आकर वोटिंग कर रहे हैं. सुखदेव ने कहा कि उनके बड़े भाई लालू प्रसाद को फंसाया गया है. भाजपा के लोगों ने साजिश के तहत यह काम किया है. इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ेगा. वहीं चंपा ने कहा कि इस बार महागठबंधन की जीत होगी.
शत्रुघ्न सिन्हा और रविशंकर प्रसाद आमने-सामने
पटना साहिब, बिहार की सबसे वीआईपी सीट बनी हुई है. यहां से कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा का मुकाबला बीजेपी के रविशंकर प्रसाद से है. पटना साहिब लोकसभा सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. लगातार यहां से बीजेपी के उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या शत्रुघ्न सिन्हा इस बार इस मिथक को तोड़ पाएंगे? क्या वे कांग्रेस के टिकट पर बीजेपी का किला भेद पाएंगे?
छह विधानसभा सीटों का समीकरण
पटना साहिब लोकसभा सीट में छह विधानसभा सीटें आती हैं. इन विधानसभा सीटों में बख्तियारपुर, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, दीघा और फतुहा सीटें शामिल हैं. इनमें पांच सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. सिर्फ फतुहा सीट आरजेडी के पास है.
मतदाताओं की संख्या
इस लोकसभा सीट पर कुल मतदाताओं की बात करें तो यहां 19 लाख 46 हजार 249 मतदाता हैं. इनमें महिला मतदाताओं की संख्या 8 लाख 93 हजार 971 है. वहीं, पुरुष मतदाताओं की संख्या 10 लाख 52 हजार 278 है.
ये है इस सीट का जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो पटना साहिब सीट पर कायस्थ मतदाताओं का वर्चस्व रहा है. इसके अलावा यादव और राजपूत मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में हैं. शत्रुघ्न सिन्हा दो बार से सांसद हैं और इसी जाति से आते हैं. कांग्रेस के टिकट से चुनाव मैदान में आने से शत्रुघ्न को महागठबंधन के तहत यादव, मुस्लिम, दलित मतों का समर्थन मिल सकता है. इसके अलावा कायस्थ के वोटों में भी शत्रुघ्न सेंधमारी कर सकते हैं.
कांग्रेस और बीजेपी के लिए नाक का सवाल
पटना साहिब सीट पर सिर्फ दो दिग्गजों की लड़ाई नहीं है. यहां देश के दो सबसे बड़े दलों बीजेपी और कांग्रेस और के लिए नाक का सवाल भी है. शत्रुघ्न सिन्हा के लिए जहां सीट बचाने की चुनौती है वहीं, रविशंकर के प्रतिष्ठा का सवाल. हालांकि रविशंकर प्रसाद के लिए चिंता की वजह एक और है. राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा का नाराज होना. अगर पार्टी उन्हें मना पाई तो कमल खिलना आसान हो सकता है वरना हाथ भारी भी पड़ सकता है.