नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 'आजादी का अमृत महोत्सव' को लेकर सरकार से ऐसे विचाराधीन कैदियों को रिहा करने की सलाह दी है जिन्होंने अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा जेल में बिताया है. न्यायालय ने कहा कि इससे जेलों में कैदियों के दबाव कम होने के साथ- साथ निचली अदालतों में लंबित मामलों के बोझ भी कम होंगे. न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने देश के उच्च न्यायालयों में अपील और जमानत याचिकाओं के लंबित मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.
पिछली सुनवाई में अदालत ने हाईकोर्ट में लंबित मामलों की संख्या के संबंध में मामलों की श्रेणी बनाने और 30 से अधिक वर्षों से लंबित मामलों को प्राथमिकता देने के लिए कहा था. अदालत ने केंद्र सरकार को राज्यों के साथ चर्चा करने और कैदियों की रिहाई के लिए वर्गीकरण करने का सुझाव दिया. अदालत ने एएसजी केएम नटराज को सुझाव दिया, 'हम यह नहीं कह रहे हैं कि जिसने अपराध किया है उसे कैद में नहीं रहना चाहिए.
लेकिन लंबे समय तक सुनवाई और किसी को सजा के बिना सबसे लंबे समय तक सलाखों के पीछे रखना समाधान नहीं हो सकता है. साथ ही पहली बार छोटे अपराधों के दोषियों को अच्छे व्यवहार की शर्त पर रिहा किया जा सकता है. इसी तरह किसी अपराध के लिए तय सजा अवधि का एक तिहाई या अधिक उससे अधिक समय जेल में बिताये हुए विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.
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अदालत ने कहा कि 10 साल तक मामले की सुनवाई के बाद अगर आरोपी आरोपमुक्त हो जाता है तो उसके जीवन को कौन लौटा कर देगा. अगर हम 10 साल के भीतर किसी मामले का फैसला नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें आदर्श रूप से जमानत दे दी जानी चाहिए. अदालत ने एएसजी को इन सुझावों पर सरकार को अवगत कराने के लिए कहा.