मुंबई : भारतीय जनता पार्टी का जन्म किसी पवित्र चीज से नहीं हुआ है. यह पार्टी भी अन्य दलों की तरह ही बनी है, उनके पैर भी मिट्टी के ही हैं. यह इसके प्रमुख लोगों को समझ लेना चाहिए. सत्ता आती-जाती रहती है, यह उन्हें भूलना नहीं चाहिए. केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके इस पार्टी ने महाराष्ट्र में जो हंगामा बरपाया है, उसके एक-एक प्रकरण उन पर ही भारी पड़ते दिख रहे हैं.
इसमें नया प्रकरण कॉर्डेलिया क्रूज पर ड्रग्स पार्टी का है. इस क्रूज पर कुछ युवकों ने मादक पदार्थ का सेवन किया या उनके पास से बरामद किया गया. सच्चाई क्या है यह उस अधिकारी को ही पता होगा, जो कार्रवाई में अभिनेता शाहरुख खान के बेटे को पकड़ा था. शाहरुख के बेटे आर्यन खान के कारण इस प्रकरण को बेशुमार प्रचार मिल रहा है और प्रचार के कारण एनसीबी के प्रमुख अधिकारी बेलगाम व निरंकुश हो गए हैं.
सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या मामले के बाद इस पूरे मामले में मादक पदार्थ के उपयोग का रंग चढ़ाने वाले और उसमें अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती को जेल में भेजने वाले यही अधिकारी थे. रिया के पास कोई भी मादक पदार्थ नहीं मिला था. सुशांत मादक पदार्थों का सेवन करते थे यह सच्चाई है, लेकिन मादक पदार्थ देने-लेने वालों को रिया के बैंक खाते से चार हजार रुपये भेजे गए थे. इन चार हजार रुपयों की कीमत के रूप में रिया को महीने भर जेल में रहना पड़ा.
चार हजार रुपयों के मादक पदार्थ की जांच करना एनसीबी का काम नहीं है. उसके लिए मुंबई पुलिस का स्वतंत्र मादक पदार्थ विरोधी दस्ता है व मुंबई पुलिस बीच-बीच में करोड़ों रुपये का 'माल' (मादक पदार्थ) पकड़ती रहती है और नष्ट भी करती है. लेकिन वो व्यर्थ प्रचार का धंधा नहीं करते हैं, जो फिलहाल आर्यन खान प्रकरण में चल रहा है.
कॉर्डेलिया क्रूज पर एक-दो ग्राम मादक पदार्थ मिला और इसका बड़ा उत्सव एनसीबी के अधिकारी समीर वानखेडे ने मनाया. उसी दौरान गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर 3,500 किलो हेरोइन मिली, जिसकी कीमत लगभग 25 हजार करोड़ रुपये होगी. इस पोर्ट के मालिक उद्योगपति गौतम अडाणी हैं, इसलिए प्रचार व कार्रवाई के मामले में साढ़े तीन हजार किलो हेरोइन पर मुंबई के क्रूज पर मिली एक ग्राम चरस भारी पड़ गई.
यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि मुंद्रा पोर्ट पर साढ़े तीन हजार किलो हेरोइन जब्ती का मामला कब आया व कब खत्म हो गया, यह पता ही नहीं चला. लेकिन एक ग्राम चरस का मामला जारी ही है और आर्यन खान सहित कुछ बच्चे जेल में हैं.
कानून विशेषज्ञ कहते हैं कि पूरे मामले और मूल सबूतों को देखते हुए इस केस में जमानत मिल जानी चाहिए, ऐसा ही है. ऐसे मामलों में फंसे हुए बच्चों को सही मार्ग पर लाएं. उन्हें उचित दंड दें. बार-बार उसी कीचड़ में न धकेलें, ऐसा हमारा कानून कहता है, परंतु ऐसा हुआ यह दिख नहीं रहा है.
इस प्रकरण के केंद्र बिंदु में रहे एनसीबी अधिकारी समीर वानखेडे की पहले की कार्रवाइयां साहसिक थीं, वो सब ठीक है. लेकिन अंतत: कानून का पालन करना ही होता है. उसमें गफलत हुई तो कार्रवाई विवादित बन जाती है. संदेह के घेरे में फंस जाती है. इसलिए कार्रवाई विवादित क्यों ठहराई जा रही है, इस पर मंथन हर एक को खुद करना चाहिए. फिर ऐसी कार्रवाइयों की आलोचना करने का अधिकार लोकतंत्र में सभी को दिया गया है.
अब आर्यन प्रकरण में झकझोरने वाला खुलासा हुआ है. आर्यन खान पर की गई कार्रवाई को टालने के लिए 25 करोड़ रुपयों की मांग मध्यस्थों के माध्यम से की गई थी. उसमें से बड़ी रकम अर्थात आठ करोड़ रुपये अधिकारी समीर वानखेडे को मिलने वाले थे. इस पूरे प्रकरण में एक गवाह प्रभाकर ने सामने आकर इसका खुलासा किया है. इस प्रकरण का एक अन्य गवाह किरण गोसावी पहले ही लापता है. वह लापता हुआ या उसे लापता कर दिया, इसकी जांच कौन करे? केंद्रीय जांच एजेंसियां बेनकाब हो गई हैं.
सवाल शाहरुख खान या उनके पुत्र का न होकर केंद्रीय जांच एजेंसियों के चरित्र दर्शन का है. पैसे के लिए व सियासी विरोधियों को दबाने के लिए या राजनीतिक प्रतिशोध के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल निंदनीय है. राज्यों की आजादी पर, अधिकारों पर यह हमला है. केंद्रीय जांच एजेंसियां, एनसीबी के अधिकारी राज्यों में आकर झूठे मामले दर्ज करते हैं, वसूली करते हैं और उनसे सवाल पूछने वालों को भाजपा के लोग देशद्रोही, असहिष्णु ठहराते हैं. यह नादानी है.
झूठे प्रकरण दर्ज करके काला धन व लोकप्रियता हासिल करना साइड बिजनेस चल रहा है. अगर आर्यन प्रकरण में 25 करोड़ रुपये की डिमांड की गई तो फिर मुंद्रा पोर्ट पर साढ़े तीन हजार किलो हेरोइन प्रकरण में कितनी डिमांड की गई होगी? यह सवाल लोगों के मन में जरूर आया होगा.
महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने इस मामले को प्रारंभ से पकड़कर रखा है. लोकतंत्र में वह उनका अधिकार है, परंतु ऐसे विवादित प्रकरणों की आलोचना करते समय संबंधित अधिकारी की निजता को बीच में नहीं खींचना चाहिए, यह भी सही है. कड़ी आलोचना करने में कोई हर्ज नहीं है, परंतु यह कार्रवाई तक सीमित रहे यह देखना चाहिए.
केंद्र की सत्ताधारी पार्टी को तो कहीं कुछ होश बचा है क्या? वह केंद्रीय जांच एजेंसियों का निरंकुश इस्तेमाल कर रही है. ये जांच एजेंसियां भारतीय जनता पार्टी की संपत्ति नहीं हैं. यदि भाजपा उन तमाम जांच एजेंसियों की मालिक हम ही हैं, ऐसा मानकर चल रही है तो लोकतंत्र में 'मालिक' बदलते रहते हैं. यह भाजपा व उसके सियासी आदेश सुनने वाली एजेंसियों को पक्के तौर पर ध्यान में रखना चाहिए. इतिहास इसका गवाह है.
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भारतीय जनता पार्टी किसी समय साधन, शुचिता, त्याग, राष्ट्रभक्ति आदि मानने वाली पार्टी थी. आज ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है. इसलिए पार्टी के पुराने व प्रसिद्ध लोग परेशान हैं. झूठे गवाह, अनाप-शनाप बकवास, बैंकों, सार्वजनिक संस्थाओं को हजारों करोड़ का चूना लगाकर फिर आर्यन खान जैसे प्रकरण में भी 'वसूली' करने वालों के हाथ में पार्टी की नब्ज है. यह नब्ज कभी भी ढीली पड़ेगी और जो खुले हैं वो नंगे हो जाएंगे. 25 करोड़ रुपये की वसूली प्रकरण यह हिमशैल का एक छोर है. मालिक और उनके नौकरों को सावधान रहना चाहिए!