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पितृपक्ष : गया में जीते जी लोग करते हैं खुद का पिंडदान, जानिए क्या है महत्व

धार्मिक नगरी के नाम से प्रसिद्ध गया में पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. मान्यता है कि इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. वहीं, कुछ लोग यहां आकर खुद का पिंडदान भी करते हैं. ताकि मृत्यु के बाद उनकी आत्मा को शांति मिले.

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Published : Sep 28, 2021, 9:37 PM IST

गया : बिहार की धार्मिक नगरी गया (Religious City Gaya) मोक्षधाम के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. गयाजी में पिंडदान (Pind Daan in Gayaji) करने का बड़ा महत्व है. जिससे देश और विदेश से भी सनातन धर्मावलंबी यहां पिंडदान करने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

वहीं, जिंदा रहते हुए भी यहां लोग खुद का भी पिंडदान करने आते हैं, ताकि उनके शरीर त्यागने के बाद आत्मा को शांति मिल सके. देश के कोने-कोने से आकर कुछ लोग खुद का और कुछ लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए विधि-विधान से पिंडदान करते हैं.

बता दें कि मोक्षदायिनी फल्गु नदी के तट पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण पितृपक्ष में किया जाता है. यहां पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो जीवित रहते हुए खुद का पिंडदान करते हैं. जिसे आत्म पिंडदान कहा जाता है. गयाजी में आत्म पिंडदान भगवान जर्नादन के मंदिर में किया जाता है और भगवान जर्नादन को पुत्र मानकर आत्म पिंडदान का विधि विधान है.

जीते जी लोग करते हैं खुद का पिंडदान.

जनार्दन भगवान मन्दिर के पुजारी आकाश गिरि बताते हैं कि भगवान जर्नादन का मंदिर भस्मकूट पर्वत पर है. जो कि 1000 साल पुराना है. यहां जीवित लोगों के लिए तिल रहित पिंडदान किया जाता है. भगवान जनार्दन को पिता, पुत्र और पौत्र मान कर उनके हाथ में बिना तिल का पिंडदान दिया जाता है. इस मंदिर में साधु-संन्यासी अपना पिंडदान करने आते हैं.

उन्होंने बताया कि जो अपने घर से निराश हैं. जिनको लगता है कि उनकी मृत्यु के बाद उनका कोई पिंडदान नहीं करेगा, ऐसे लोग भी यहां पिंडदान करने आ रहे हैं. 2019 की बात करें तो 20 लोगों ने यहां पिंडदान किया था. इस साल अभी 1 व्यक्ति ने किया है.

यहां लोग किसी को बताकर पिंडदान नहीं करते, मंदिर का दरवाजा खुला रहता है. जिसको करना होता है, वह पंडित लेकर आते हैं और पिंडदान करके चले जाते हैं. वहीं, उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति आत्म पिंडदान करता है, वह प्रेतयोनी में चला जाता है. वह व्यक्ति किसी भी शुभ कार्य में हिस्सा नहीं ले सकता.

ये भी पढ़ें- गया की 'पंडा पोथी' में दर्ज है आपके पूर्वजों का करीब 300 साल पुराना इतिहास

हालांकि, मंदिर के पुजारी का कहना है कि जनार्दन भगवान का मंदिर सैकड़ों साल पुराना है. जिससे मंदिर की स्थिति काफी जर्जर हो गई है. इस मंदिर में बैठकर पिंडदान करने लायक जगह नहीं है. इसलिए मंदिर का जीर्णोद्धार होना चाहिए और इसके महत्व के बारे में लोगों को जानकारी दी जानी चाहिए.

बता दें कि मंदिर में भगवान विष्णु के 18वें अवतार जनार्दन भगवान की काफी प्राचीन मूर्ति स्थापित है. भगवान जर्नादन का चौखट अष्टधातु का है. इसके बगल में सनातन धर्म की सभी भाषाओं के कुछ शब्द उकेरे गये हैं. इसका निर्माण लगभग 16 ईसवी में किया गया था.

ये भी पढ़ें: गयाजी से पहले क्यों पुनपुन में पिंडदान करना जरूरी है, ब्रह्माजी से जुड़ी किस घटना के बाद पड़ा ये नाम?

ये भी पढ़ें: न पालें कोई भ्रम, पितृपक्ष में इन चीजों को लेकर नहीं होती कोई रोकटोक

ये भी पढ़ें: Pitru Paksha 2021 : जानिए पितरों के पूजन की खास विधि और तिथियां

ये भी पढ़ें: गया जी और तिल में है गहरा संबंध, पिंडदान से लेकर प्रसाद तक में होता है उपयो

गया : बिहार की धार्मिक नगरी गया (Religious City Gaya) मोक्षधाम के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. गयाजी में पिंडदान (Pind Daan in Gayaji) करने का बड़ा महत्व है. जिससे देश और विदेश से भी सनातन धर्मावलंबी यहां पिंडदान करने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

वहीं, जिंदा रहते हुए भी यहां लोग खुद का भी पिंडदान करने आते हैं, ताकि उनके शरीर त्यागने के बाद आत्मा को शांति मिल सके. देश के कोने-कोने से आकर कुछ लोग खुद का और कुछ लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए विधि-विधान से पिंडदान करते हैं.

बता दें कि मोक्षदायिनी फल्गु नदी के तट पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण पितृपक्ष में किया जाता है. यहां पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो जीवित रहते हुए खुद का पिंडदान करते हैं. जिसे आत्म पिंडदान कहा जाता है. गयाजी में आत्म पिंडदान भगवान जर्नादन के मंदिर में किया जाता है और भगवान जर्नादन को पुत्र मानकर आत्म पिंडदान का विधि विधान है.

जीते जी लोग करते हैं खुद का पिंडदान.

जनार्दन भगवान मन्दिर के पुजारी आकाश गिरि बताते हैं कि भगवान जर्नादन का मंदिर भस्मकूट पर्वत पर है. जो कि 1000 साल पुराना है. यहां जीवित लोगों के लिए तिल रहित पिंडदान किया जाता है. भगवान जनार्दन को पिता, पुत्र और पौत्र मान कर उनके हाथ में बिना तिल का पिंडदान दिया जाता है. इस मंदिर में साधु-संन्यासी अपना पिंडदान करने आते हैं.

उन्होंने बताया कि जो अपने घर से निराश हैं. जिनको लगता है कि उनकी मृत्यु के बाद उनका कोई पिंडदान नहीं करेगा, ऐसे लोग भी यहां पिंडदान करने आ रहे हैं. 2019 की बात करें तो 20 लोगों ने यहां पिंडदान किया था. इस साल अभी 1 व्यक्ति ने किया है.

यहां लोग किसी को बताकर पिंडदान नहीं करते, मंदिर का दरवाजा खुला रहता है. जिसको करना होता है, वह पंडित लेकर आते हैं और पिंडदान करके चले जाते हैं. वहीं, उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति आत्म पिंडदान करता है, वह प्रेतयोनी में चला जाता है. वह व्यक्ति किसी भी शुभ कार्य में हिस्सा नहीं ले सकता.

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हालांकि, मंदिर के पुजारी का कहना है कि जनार्दन भगवान का मंदिर सैकड़ों साल पुराना है. जिससे मंदिर की स्थिति काफी जर्जर हो गई है. इस मंदिर में बैठकर पिंडदान करने लायक जगह नहीं है. इसलिए मंदिर का जीर्णोद्धार होना चाहिए और इसके महत्व के बारे में लोगों को जानकारी दी जानी चाहिए.

बता दें कि मंदिर में भगवान विष्णु के 18वें अवतार जनार्दन भगवान की काफी प्राचीन मूर्ति स्थापित है. भगवान जर्नादन का चौखट अष्टधातु का है. इसके बगल में सनातन धर्म की सभी भाषाओं के कुछ शब्द उकेरे गये हैं. इसका निर्माण लगभग 16 ईसवी में किया गया था.

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