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कश्मीर में मछली उत्पादन में लगातार गिरावट, जानें वजह...

कश्मीर में 'झील मत्स्य पालन' नामक शीर्षक वाले शोध में सामने आया कि डल झील में कार्प प्रजातियों की मछलियों की बढ़ती संख्या की वजह से स्किज़ोथोरैक्स schizothorax (मछली की एक देशी प्रजाति, जिसे आमतौर पर स्नो ट्राउट के नाम से भी जाना जाता है) के उत्पादन में लगातार गिरावट आई है. इससे मछली उत्पादन में लगे लोगों को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है.

कश्मीर में मछली उत्पादन में लगातार गिरावट, जानें वजह...
कश्मीर में मछली उत्पादन में लगातार गिरावट, जानें वजह...
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Published : Jan 21, 2021, 8:55 AM IST

Updated : Jan 21, 2021, 1:32 PM IST

श्रीनगर : कश्मीर की झीलों डल और वुलर में कार्प (carp) जैसी मछली की प्रजातियों और पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी पर जोर देने के चलते स्थानीय प्रजातियों की मछलियों की संख्या में गिरावट आई है. इसका सीधा सीधा प्रभाव मछली उत्पादन में पड़ा है. परिणामस्वरूप उत्पादन में काफी गिरावट दर्ज की गई है. डल और वुलर झील के अलावा मीठे पानी की अन्य झीलों का हाल भी कुछ ऐसा है.

यह 'कश्मीर में झील मत्स्य पालन' नामक शीर्षक वाले शोध में सामने आया, जिसमें दिखाया गया है कि डल झील में कार्प प्रजातियों की मछलियों की बढ़ती संख्या की वजह से स्किज़ोथोरैक्स schizothorax (मछली की एक देशी प्रजाति, जिसे आमतौर पर स्नो ट्राउट के नाम से भी जाना जाता है) के उत्पादन में लगातार गिरावट आई है.

राजस्व में आई कमी
कृषि के साथ मछली उत्पादन ने भी कुछ दशक पहले राज्य की अर्थव्यवस्था में 23 प्रतिशत का योगदान दिया. लेकिन अब मीठे पानी की झीलों में गैर देशी प्रजाति की मछलियों की संख्या में बढ़ोतरी और झील के पानी के कम होने के कारण राजस्व में कमी आई है.

इसके अलावा सब्जियों आदि की पैदावार में बढ़ोतरी और फ्लोटिंग गार्डनिंग के चलते भी मछली उत्पादन सिकुड़ कर रह गया है.

स्थानीय मछलियों की घटती संख्या का कारण
शुहामा में SKUAST-K के वैज्ञानिक डॉ गौहर बिलाल वानी का कहना है कि स्थानीय मछली प्रजातियों के लिए ब्रीडिंग पैटर्न और जलीय स्थितियां उनकी संख्या में कमी का बड़ा कारण है. उन्होंने कहा कि कार्प (carp) में ऐसा परिस्थियों में भी जीवित रहने की प्रवृत्ति होती है और वह आसानी से प्रजनन कर सकती है.

इसके अलावा, वानी ने कहा कि सरकार को किसी भी स्थानीय जल निकाय में कार्प जैसी मछलियों की संख्या बढ़ाने से पहले सही तरह से शोध करना चाहिए था.

स्किज़ोथोरैक्स के प्रजनन पैटर्न पर कर रहे काम
हम अनुसंधान कर रहे हैं कि स्किज़ोथोरैक्स के प्रजनन पैटर्न को कैसे बढ़ाया जाए और हम अपने सुझावों के साथ आएंगे.

उन्होंने आगे कहा कि विषैले तत्वों की वृद्धि ने कश्मीर घाटी में जलीय निवास को व्यापक रूप से प्रभावित किया है. जो सीधे इन जल निकायों के भीतर रहने वाली प्रजातियों के लिए खतरनाक है.

एक स्थानीय मछुआरे ने आरोप लगाया कि सरकार की प्राथमिकता मत्स्य पालन के संरक्षण और विकास के बजाय पर्यटन से राजस्व सृजन थी.

यह भी पढ़ें : जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए घाटी पहुंचा संसदीय दल

स्थानीय नस्ल को बढ़ावा दे सरकार
उन्होंने कहा कि मछुआरे, जो झील की मछलियों से अपनी आय प्राप्त करते हैं, न केवल स्किज़ोथोरैक्स मछली पालन के पक्ष में हैं, वे अपने कुल मछली उत्पादन में भी वृद्धि करना चाहते हैं.

जबकि मत्स्य विभाग गैर-स्थानीय मछली प्रजातियों को बढ़ावा देने में व्यस्त है. स्किज़ोथोरैक्स का स्वाद कार्प या अन्य गैर-स्थानीय मछलियों की तुलना में बेहतर होता है.

उनका कहना है कि मत्स्य विभाग को अन्य प्रजातियों के बजाय स्थानीय नस्ल को बढ़ावा देना चाहिए.

श्रीनगर : कश्मीर की झीलों डल और वुलर में कार्प (carp) जैसी मछली की प्रजातियों और पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी पर जोर देने के चलते स्थानीय प्रजातियों की मछलियों की संख्या में गिरावट आई है. इसका सीधा सीधा प्रभाव मछली उत्पादन में पड़ा है. परिणामस्वरूप उत्पादन में काफी गिरावट दर्ज की गई है. डल और वुलर झील के अलावा मीठे पानी की अन्य झीलों का हाल भी कुछ ऐसा है.

यह 'कश्मीर में झील मत्स्य पालन' नामक शीर्षक वाले शोध में सामने आया, जिसमें दिखाया गया है कि डल झील में कार्प प्रजातियों की मछलियों की बढ़ती संख्या की वजह से स्किज़ोथोरैक्स schizothorax (मछली की एक देशी प्रजाति, जिसे आमतौर पर स्नो ट्राउट के नाम से भी जाना जाता है) के उत्पादन में लगातार गिरावट आई है.

राजस्व में आई कमी
कृषि के साथ मछली उत्पादन ने भी कुछ दशक पहले राज्य की अर्थव्यवस्था में 23 प्रतिशत का योगदान दिया. लेकिन अब मीठे पानी की झीलों में गैर देशी प्रजाति की मछलियों की संख्या में बढ़ोतरी और झील के पानी के कम होने के कारण राजस्व में कमी आई है.

इसके अलावा सब्जियों आदि की पैदावार में बढ़ोतरी और फ्लोटिंग गार्डनिंग के चलते भी मछली उत्पादन सिकुड़ कर रह गया है.

स्थानीय मछलियों की घटती संख्या का कारण
शुहामा में SKUAST-K के वैज्ञानिक डॉ गौहर बिलाल वानी का कहना है कि स्थानीय मछली प्रजातियों के लिए ब्रीडिंग पैटर्न और जलीय स्थितियां उनकी संख्या में कमी का बड़ा कारण है. उन्होंने कहा कि कार्प (carp) में ऐसा परिस्थियों में भी जीवित रहने की प्रवृत्ति होती है और वह आसानी से प्रजनन कर सकती है.

इसके अलावा, वानी ने कहा कि सरकार को किसी भी स्थानीय जल निकाय में कार्प जैसी मछलियों की संख्या बढ़ाने से पहले सही तरह से शोध करना चाहिए था.

स्किज़ोथोरैक्स के प्रजनन पैटर्न पर कर रहे काम
हम अनुसंधान कर रहे हैं कि स्किज़ोथोरैक्स के प्रजनन पैटर्न को कैसे बढ़ाया जाए और हम अपने सुझावों के साथ आएंगे.

उन्होंने आगे कहा कि विषैले तत्वों की वृद्धि ने कश्मीर घाटी में जलीय निवास को व्यापक रूप से प्रभावित किया है. जो सीधे इन जल निकायों के भीतर रहने वाली प्रजातियों के लिए खतरनाक है.

एक स्थानीय मछुआरे ने आरोप लगाया कि सरकार की प्राथमिकता मत्स्य पालन के संरक्षण और विकास के बजाय पर्यटन से राजस्व सृजन थी.

यह भी पढ़ें : जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए घाटी पहुंचा संसदीय दल

स्थानीय नस्ल को बढ़ावा दे सरकार
उन्होंने कहा कि मछुआरे, जो झील की मछलियों से अपनी आय प्राप्त करते हैं, न केवल स्किज़ोथोरैक्स मछली पालन के पक्ष में हैं, वे अपने कुल मछली उत्पादन में भी वृद्धि करना चाहते हैं.

जबकि मत्स्य विभाग गैर-स्थानीय मछली प्रजातियों को बढ़ावा देने में व्यस्त है. स्किज़ोथोरैक्स का स्वाद कार्प या अन्य गैर-स्थानीय मछलियों की तुलना में बेहतर होता है.

उनका कहना है कि मत्स्य विभाग को अन्य प्रजातियों के बजाय स्थानीय नस्ल को बढ़ावा देना चाहिए.

Last Updated : Jan 21, 2021, 1:32 PM IST
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