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अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस: जानें, किन चुनौतियों से जूझती हैं लड़कियां - ऑनलाइन बाल विवाह तथा मानव तस्करी

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बालिकाओं के अधिकारों और उनके सामने आने वाली चुनौतियों को पहचानने के लिए 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में घोषित किया था. इसकी घोषणा महासभा ने 19 दिसंबर, 2011 में की थी.

बालिका दिवस
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Published : Oct 11, 2021, 5:00 AM IST

हैदराबाद : अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर को एक वार्षिक दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिससे बालिकाओं को सशक्त बनने और आवाज बुलंद करने का हौसला मिलता है. जिस तरह महिलाओं के लिए आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, उसी तरह अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का भी अपना महत्व, जिससे उन्हें अधिक मौकों को तलाशने की शक्ति और क्षमता मिलती है.

इतिहास

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की चर्चा वर्ष 1995 में पहली बार बीजिंग में महिलाओं के लिए आयोजित विश्व सम्मेलन में की गई थी. ये पहली बार था, जब सम्मेलन में दुनियाभर की बालिकाओं के सामने आने वाले समस्याओं से निपटने की जरूरत को महसूस किया गया. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत गैर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन योजना के एक हिस्से के तौर पर हुई थी. यह अभियान बालिकाओं को पोषित करने, खासतौर पर विकासशील देशों में उनके अधिकारियों को प्रोत्साहित करने और गरीबी से उन्हें बाहर निकालने के लिए तैयार किया गया है.

बालिकाओं के जीवन के पांच तथ्य

  • बाल विवाह: दुनिया भर में रोजाना लगभग 33,000 लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है.
  • एचआईवी पीड़िता: अनुमानित 340,000 लड़कियां और युवतियां हर साल एचआईवी वायरस से संक्रमित होती हैं. वर्तमान पूरी दुनिया में तीन मिलियन से अधिक लड़कियां और युवतियां एचआईवी के साथ जी रही हैं.
  • पतियों का अत्याचार: 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 44 प्रतिशत लड़कियों को लगता है कि पत्नी को पीटना पति का अधिकार होता है.
  • बंधुआ बालश्रम: पांच से 14 साल की उम्र की लड़कियां लड़कों से अधिक श्रम करती हैं. वे 28 घंटे से अधिक वक्त मजदूरी में बिताती हैं, जो लड़कों के मजदूरी के समय का दोगुना है.
  • मानव तस्करी: मानव तस्करी के 96 प्रतिशत लड़कियां और युवतियां यौन शोषण की शिकार बनती हैं.

लैंगिक समानता हासिल करना, महिलाओं व लड़कियों को सशक्त बनाना

सतत विकास के लिए लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाना तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा देना जरूरी है. महिलाओं और लड़कियों के प्रति भेदभाव संपन्न करना न केवल एक बुनियादी मानवाधिकार है, बल्कि इससे अन्य विकास क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ेगा.

महिलाओं व लड़कियों पर कोविड-19 का प्रभाव

  • कोविड-19 महामारी देश के विकास में चुनौती बनकर सामने आया. महामारी के कारण 10 मिलियन लड़कियों ने पढ़ाई आधी में छोड़ दी.
  • बढ़ती लैंगिक असमानता और गरीबी के कारण महिलाओं की शिक्षा के प्रति खतरा बढ़ गया है. लिंग समानता सूचकांक मूल्य के अनुसार, शिक्षा में लड़कों से लड़कियों का अनुपात कम था. पिछले कुछ वर्षों में, यह बराबर हो गया, लेकिन महामारी ने गरीबी बढ़ाई, पलायन कराया और कई लोगों की नौकरी छीन ली, जिससे लड़कियां स्कूल छोड़ने लगीं.
  • लड़कियों को उनकी शिक्षा से वंचित करने के अन्यतम कारण है कि उन्हें बाल श्रम या बाल विवाह करने को मजबूर किया जाता है.
  • बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे जनसंख्या वाले राज्यों में राष्ट्रीय औसत से कम महिला साक्षरता दर है. इन राज्यों में महामारी के कारण लड़कियों की पढ़ाई छोड़ने और बाल विवाह, गर्भावस्था, तस्करी और हिंसा के मामले अधिकार हैं.
  • बिहार में, स्कूल के बुनियादी ढांचे की कमी का मतलब स्कूल जाने के लिए लंबी दूरी तय करना है. बिहार के गरीब क्षेत्रों में, राज्य सरकार ने लड़कियों को साइकिल दिलाई थी. इससे चार सालों में स्कूलों में लड़कियों का दाखिला 175,000 से बढ़कर 600,000 हो गया था. लेकिन अब स्कूल करीब एक साल से अधिक वक्त से बंद है, जिसकी वजह से लड़कियों का दोबारा स्कूल जाना नामुमकीन नजर आ रहा है.
  • 10 से 19 वर्ष की आयु के बीच की अवधि, जिसे किशोरावस्था कहा जाता है, प्रत्येक लड़की के जीवन में एक महत्वपूर्ण चरण है. इस दौरान माध्यमिक स्कूल में पढ़ाई, मजदूरी करना या शादी करने जैसे अहम फैसले लिये जाते हैं. खासकर गरीब परिवारों की लड़कियों को अपनी शिक्षा पूरी करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
  • अब कोविड-19 से इन बाधाओं के बढ़ने की चिंता सताने लगी है. संभवतः शिक्षा में लैंगिक अंतर महामारी के कारण बढ़ सकता है. क्योंकि, कोविड-19 से पहले भारत में 30 मिलियन बच्चे स्कूल छोड़ चुके थे, जिनमें से 40 प्रतिशत छात्राएं थीं. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि महामारी के बाद लगभग माध्यामिक स्कूल की 10 मिलियन छात्राएं पढ़ाई आधे में छोड़ सकती हैं तथा इनमें से बड़ी संख्या में छात्राएं भारत से हो सकती हैं.

बाल विवाह

  • भारत में महामारी के दौरान लड़कियों ने ऑनलाइन बाल विवाह तथा मानव तस्करी के खतरे का सामना किया है.
  • भारत के कुछ राज्यों में बाल विवाह तथा यौन शोषण जैसे मामले 52 प्रतिशत तक बढ़े. इसका कारण परिवार का आजीविका खोने तथा बच्चों और खासकर लड़कियों का स्कूल छोड़ना है.
  • दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना में अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच प्रशासन ने 1,355 बाल विवाह होने से रोके जो कि गत वर्ष के मुकाबले 27 फीसदी ज्यादा है.
  • जुलाई में, सेव द चिल्ड्रन ने 15 साल की लड़की को सोशल मीडिया के जरिये शादी के झांसे से बचाया. इसी तरह सोशल मीडिया के माध्यम से लड़कियों से संपर्क कर उनसे शादी करने के ऐसे कम से कम पांच शादियां रोकी गई हैं.

भारत में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (केवल बालिका पीड़ित) एनसीआरबी-2020

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (कुल)

घटना46123
पीड़िताएं46523
दुष्कर्म7.00%

बाल दुष्कर्म (पोस्को एक्ट की धारा 4 व 6/आईपीसी की धारा 376)

घटना27807
पीड़िताएं28058
दुष्कर्म4.20%

बाल यौन शोषण (पोस्को एक्ट की धारा 8 व10/आईपीसी की धारा 354)

घटना15515
पीड़िताएं15633
दुष्कर्म2.40%

यौन उत्पीड़न (पोस्को एक्ट की धारा 12/आईपीसी की धारा 509)

घटना1628
पीड़िताएं1654
दुष्कर्म0.20%

हैदराबाद : अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर को एक वार्षिक दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिससे बालिकाओं को सशक्त बनने और आवाज बुलंद करने का हौसला मिलता है. जिस तरह महिलाओं के लिए आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, उसी तरह अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का भी अपना महत्व, जिससे उन्हें अधिक मौकों को तलाशने की शक्ति और क्षमता मिलती है.

इतिहास

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की चर्चा वर्ष 1995 में पहली बार बीजिंग में महिलाओं के लिए आयोजित विश्व सम्मेलन में की गई थी. ये पहली बार था, जब सम्मेलन में दुनियाभर की बालिकाओं के सामने आने वाले समस्याओं से निपटने की जरूरत को महसूस किया गया. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत गैर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन योजना के एक हिस्से के तौर पर हुई थी. यह अभियान बालिकाओं को पोषित करने, खासतौर पर विकासशील देशों में उनके अधिकारियों को प्रोत्साहित करने और गरीबी से उन्हें बाहर निकालने के लिए तैयार किया गया है.

बालिकाओं के जीवन के पांच तथ्य

  • बाल विवाह: दुनिया भर में रोजाना लगभग 33,000 लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है.
  • एचआईवी पीड़िता: अनुमानित 340,000 लड़कियां और युवतियां हर साल एचआईवी वायरस से संक्रमित होती हैं. वर्तमान पूरी दुनिया में तीन मिलियन से अधिक लड़कियां और युवतियां एचआईवी के साथ जी रही हैं.
  • पतियों का अत्याचार: 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 44 प्रतिशत लड़कियों को लगता है कि पत्नी को पीटना पति का अधिकार होता है.
  • बंधुआ बालश्रम: पांच से 14 साल की उम्र की लड़कियां लड़कों से अधिक श्रम करती हैं. वे 28 घंटे से अधिक वक्त मजदूरी में बिताती हैं, जो लड़कों के मजदूरी के समय का दोगुना है.
  • मानव तस्करी: मानव तस्करी के 96 प्रतिशत लड़कियां और युवतियां यौन शोषण की शिकार बनती हैं.

लैंगिक समानता हासिल करना, महिलाओं व लड़कियों को सशक्त बनाना

सतत विकास के लिए लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाना तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा देना जरूरी है. महिलाओं और लड़कियों के प्रति भेदभाव संपन्न करना न केवल एक बुनियादी मानवाधिकार है, बल्कि इससे अन्य विकास क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ेगा.

महिलाओं व लड़कियों पर कोविड-19 का प्रभाव

  • कोविड-19 महामारी देश के विकास में चुनौती बनकर सामने आया. महामारी के कारण 10 मिलियन लड़कियों ने पढ़ाई आधी में छोड़ दी.
  • बढ़ती लैंगिक असमानता और गरीबी के कारण महिलाओं की शिक्षा के प्रति खतरा बढ़ गया है. लिंग समानता सूचकांक मूल्य के अनुसार, शिक्षा में लड़कों से लड़कियों का अनुपात कम था. पिछले कुछ वर्षों में, यह बराबर हो गया, लेकिन महामारी ने गरीबी बढ़ाई, पलायन कराया और कई लोगों की नौकरी छीन ली, जिससे लड़कियां स्कूल छोड़ने लगीं.
  • लड़कियों को उनकी शिक्षा से वंचित करने के अन्यतम कारण है कि उन्हें बाल श्रम या बाल विवाह करने को मजबूर किया जाता है.
  • बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे जनसंख्या वाले राज्यों में राष्ट्रीय औसत से कम महिला साक्षरता दर है. इन राज्यों में महामारी के कारण लड़कियों की पढ़ाई छोड़ने और बाल विवाह, गर्भावस्था, तस्करी और हिंसा के मामले अधिकार हैं.
  • बिहार में, स्कूल के बुनियादी ढांचे की कमी का मतलब स्कूल जाने के लिए लंबी दूरी तय करना है. बिहार के गरीब क्षेत्रों में, राज्य सरकार ने लड़कियों को साइकिल दिलाई थी. इससे चार सालों में स्कूलों में लड़कियों का दाखिला 175,000 से बढ़कर 600,000 हो गया था. लेकिन अब स्कूल करीब एक साल से अधिक वक्त से बंद है, जिसकी वजह से लड़कियों का दोबारा स्कूल जाना नामुमकीन नजर आ रहा है.
  • 10 से 19 वर्ष की आयु के बीच की अवधि, जिसे किशोरावस्था कहा जाता है, प्रत्येक लड़की के जीवन में एक महत्वपूर्ण चरण है. इस दौरान माध्यमिक स्कूल में पढ़ाई, मजदूरी करना या शादी करने जैसे अहम फैसले लिये जाते हैं. खासकर गरीब परिवारों की लड़कियों को अपनी शिक्षा पूरी करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
  • अब कोविड-19 से इन बाधाओं के बढ़ने की चिंता सताने लगी है. संभवतः शिक्षा में लैंगिक अंतर महामारी के कारण बढ़ सकता है. क्योंकि, कोविड-19 से पहले भारत में 30 मिलियन बच्चे स्कूल छोड़ चुके थे, जिनमें से 40 प्रतिशत छात्राएं थीं. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि महामारी के बाद लगभग माध्यामिक स्कूल की 10 मिलियन छात्राएं पढ़ाई आधे में छोड़ सकती हैं तथा इनमें से बड़ी संख्या में छात्राएं भारत से हो सकती हैं.

बाल विवाह

  • भारत में महामारी के दौरान लड़कियों ने ऑनलाइन बाल विवाह तथा मानव तस्करी के खतरे का सामना किया है.
  • भारत के कुछ राज्यों में बाल विवाह तथा यौन शोषण जैसे मामले 52 प्रतिशत तक बढ़े. इसका कारण परिवार का आजीविका खोने तथा बच्चों और खासकर लड़कियों का स्कूल छोड़ना है.
  • दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना में अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच प्रशासन ने 1,355 बाल विवाह होने से रोके जो कि गत वर्ष के मुकाबले 27 फीसदी ज्यादा है.
  • जुलाई में, सेव द चिल्ड्रन ने 15 साल की लड़की को सोशल मीडिया के जरिये शादी के झांसे से बचाया. इसी तरह सोशल मीडिया के माध्यम से लड़कियों से संपर्क कर उनसे शादी करने के ऐसे कम से कम पांच शादियां रोकी गई हैं.

भारत में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (केवल बालिका पीड़ित) एनसीआरबी-2020

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (कुल)

घटना46123
पीड़िताएं46523
दुष्कर्म7.00%

बाल दुष्कर्म (पोस्को एक्ट की धारा 4 व 6/आईपीसी की धारा 376)

घटना27807
पीड़िताएं28058
दुष्कर्म4.20%

बाल यौन शोषण (पोस्को एक्ट की धारा 8 व10/आईपीसी की धारा 354)

घटना15515
पीड़िताएं15633
दुष्कर्म2.40%

यौन उत्पीड़न (पोस्को एक्ट की धारा 12/आईपीसी की धारा 509)

घटना1628
पीड़िताएं1654
दुष्कर्म0.20%
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