ETV Bharat / bharat

देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत : दिल्ली हाईकोर्ट - यूसीसी दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने आज एक केस की सुनवाई के दौरान समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी की है. कोर्ट ने यूनिवर्सल सिविल कोड की आवश्यकता का समर्थन किया है. कोर्ट ने कहा कि सरकार पर देश के नागरिकों को समान नागरिक संहिता के लक्ष्य तक पहुंचाने का कर्तव्य है.

समान नागरिक संहिता पर दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी
समान नागरिक संहिता पर दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी
author img

By

Published : Jul 9, 2021, 5:35 PM IST

Updated : Jul 9, 2021, 8:33 PM IST

नई दिल्ली : समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पेश किए जाने का समर्थन करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अलग-अलग 'पर्सनल लॉ' के कारण भारतीय युवाओं को विवाह और तलाक के संबंध में समस्याओं से जूझने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता.

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने सात जुलाई के अपने आदेश में कहा कि आधुनिक भारतीय समाज धीरे-धीरे समरूप होता जा रहा है. धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध अब खत्म हो रहे हैं, और इस प्रकार समान नागरिक संहिता अब उम्मीद भर नहीं रहनी चाहिए.

आदेश में कहा गया, 'भारत के विभिन्न समुदायों, जनजातियों, जातियों या धर्मों के युवाओं को जो अपने विवाह को संपन्न करते हैं, उन्हें विभिन्न पर्सनल लॉ, विशेषकर विवाह और तलाक के संबंध में टकराव के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दों से जूझने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.'

वर्ष 1985 के ऐतिहासिक शाह बानो मामले समेत यूसीसी की आवश्यकता पर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 44 में उम्मीद जताई गई है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को हकीकत में बदलेगा. यह महज एक उम्मीद बनकर नहीं रहनी चाहिए.'

शाह बानो मामले में, शीर्ष अदालत ने कहा था कि समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधारा वाले कानूनों के प्रति असमान निष्ठा को हटाकर राष्ट्रीय एकता के उद्देश्य को पाने में मदद करेगी.

इस फैसले में यह भी कहा गया था कि सरकार पर देश के नागरिकों को समान नागरिक संहिता के लक्ष्य तक पहुंचाने का कर्तव्य है.

हाईकोर्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा समय-समय पर यूसीसी की जरूरत को रेखांकित किया गया है. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इस संबंध में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं.

कोर्ट ने निर्देश दिया कि आदेश की एक प्रति कानून और न्याय मंत्रालय के सचिव को उचित समझी जाने वाली आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी जाए.

अदालत इस पर सुनवाई कर रही थी कि क्या मीणा समुदाय के पक्षकारों के बीच विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (एचएमए) के दायरे से बाहर रखा गया है. जब पति ने तलाक मांगा तो पत्नी ने तर्क दिया कि एचएमए उन पर लागू नहीं होता, क्योंकि मीणा समुदाय राजस्थान में एक अधिसूचित अनुसूचित जनजाति है.

अदालत ने महिला के रुख को खारिज कर दिया और कहा कि वर्तमान मामले 'सब के लिए समान', इस तरह की एक संहिता की आवश्यकता को उजागर करते हैं, जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि जैसे पहलुओं के संबंध में समान सिद्धांतों को लागू करने में सक्षम बनाएंगे.

अदालत ने कहा कि मुकदमे की शुरुआत के बाद से, दोनों पक्षों ने बताया कि उनकी शादी हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार हुई थी और वे हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं. अदालत ने कहा कि हालांकि हिंदू की कोई परिभाषा नहीं है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने माना है कि अगर जनजातियों के सदस्यों का हिंदूकरण किया जाता है, तो उन पर एचएमए लागू होगा.

नई दिल्ली : समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पेश किए जाने का समर्थन करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अलग-अलग 'पर्सनल लॉ' के कारण भारतीय युवाओं को विवाह और तलाक के संबंध में समस्याओं से जूझने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता.

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने सात जुलाई के अपने आदेश में कहा कि आधुनिक भारतीय समाज धीरे-धीरे समरूप होता जा रहा है. धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध अब खत्म हो रहे हैं, और इस प्रकार समान नागरिक संहिता अब उम्मीद भर नहीं रहनी चाहिए.

आदेश में कहा गया, 'भारत के विभिन्न समुदायों, जनजातियों, जातियों या धर्मों के युवाओं को जो अपने विवाह को संपन्न करते हैं, उन्हें विभिन्न पर्सनल लॉ, विशेषकर विवाह और तलाक के संबंध में टकराव के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दों से जूझने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.'

वर्ष 1985 के ऐतिहासिक शाह बानो मामले समेत यूसीसी की आवश्यकता पर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 44 में उम्मीद जताई गई है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को हकीकत में बदलेगा. यह महज एक उम्मीद बनकर नहीं रहनी चाहिए.'

शाह बानो मामले में, शीर्ष अदालत ने कहा था कि समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधारा वाले कानूनों के प्रति असमान निष्ठा को हटाकर राष्ट्रीय एकता के उद्देश्य को पाने में मदद करेगी.

इस फैसले में यह भी कहा गया था कि सरकार पर देश के नागरिकों को समान नागरिक संहिता के लक्ष्य तक पहुंचाने का कर्तव्य है.

हाईकोर्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा समय-समय पर यूसीसी की जरूरत को रेखांकित किया गया है. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इस संबंध में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं.

कोर्ट ने निर्देश दिया कि आदेश की एक प्रति कानून और न्याय मंत्रालय के सचिव को उचित समझी जाने वाली आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी जाए.

अदालत इस पर सुनवाई कर रही थी कि क्या मीणा समुदाय के पक्षकारों के बीच विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (एचएमए) के दायरे से बाहर रखा गया है. जब पति ने तलाक मांगा तो पत्नी ने तर्क दिया कि एचएमए उन पर लागू नहीं होता, क्योंकि मीणा समुदाय राजस्थान में एक अधिसूचित अनुसूचित जनजाति है.

अदालत ने महिला के रुख को खारिज कर दिया और कहा कि वर्तमान मामले 'सब के लिए समान', इस तरह की एक संहिता की आवश्यकता को उजागर करते हैं, जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि जैसे पहलुओं के संबंध में समान सिद्धांतों को लागू करने में सक्षम बनाएंगे.

अदालत ने कहा कि मुकदमे की शुरुआत के बाद से, दोनों पक्षों ने बताया कि उनकी शादी हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार हुई थी और वे हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं. अदालत ने कहा कि हालांकि हिंदू की कोई परिभाषा नहीं है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने माना है कि अगर जनजातियों के सदस्यों का हिंदूकरण किया जाता है, तो उन पर एचएमए लागू होगा.

Last Updated : Jul 9, 2021, 8:33 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.