पटना : कहते हैं राजनीति में हर संभावनाओं की तलाश की जाती है. बीजेपी इस 'तलाश' में माहिर है. वह हर चाल चलती है जिससे विपक्षी खेमा को पटखनी दी जा सके. अब देखिए न, मध्य प्रदेश में बीजेपी ने मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया है. मोहन यादव का नाम आते ही बिहार में हलचल बढ़ गई है.
बिहार की राजनीति के केन्द्र में 'यादव' : वैसे तो नेता कहते हैं कि वह जाति की राजनीति नहीं करते. पर उत्तर भारत की यह सच्चाई है कि यहां बिना जाति राजनीति नहीं होती. एमपी में यादव का नाम सामने आने के बाद बिहार में सुगबुगाहट तेज हो गयी है. सुशील मोदी 'यादव' का नाम लेकर लालू परिवार पर निशाना साध चुके हैं. बोले कितने यादवों को लालू ने बिहार का मुख्यमंत्री बनाया?
BJP का टारगेट 'Y' : मतलब, बीजेपी के नेता 'यादव' के नाम पर ही लालू को घेरने की तैयारी कर रहे हैं. दरअसल, बिहार में अब तक यादव वोटरों पर आरजेडी का कब्जा रहा है. लालू प्रसाद यादव के प्रभाव को बीजेपी अपने कई तरह के प्रयासों के बाद भी पार नहीं पा सकी है. आरजेडी मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण के सहारे लंबे समय से बिहार में सियासत कर रही है. बीजेपी इसी MY में Y को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुट गयी है.
MY से A to Z की बात : वैसे बीजेपी को इसमें कितनी सफलता मिलेगी यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है. पर नेता अभी से ही ताल ठोक रहे हैं. वहीं आरजेडी वाले MY समीकरण पर नहीं A to Z (सभी जाति) पर काम करने की वकालत कर रहे हैं.
''बिहार में मध्य प्रदेश का कोई असर नहीं होगा. बिहार में अकेले दम पर क्या बीजेपी सरकार बना सकी है? बिहार में भाजपा हमेशा दूसरे पर ही निर्भर रही है. इस बार आत्मनिर्भर बनकर लड़े खुद पता चल जाएगा. हम लोग माय समीकरण पर नहीं ए टू जेड पर काम करते हैं.''-जितेंद्र राय, आरजेडी कोटे से मंत्री
'आरजेडी यादवों के बीच भ्रम फैलाती रही' : बिहार के यादव वोट बैंक में सेंधमारी करने के लिए तैयार बीजेपी नेताओं का अलग ही तर्क है. कभी राबड़ी देवी को राघोपुर में हराने वाले बीजेपी नेता सतीश यादव का कहना है कि आरजेडी यादवों के बीच भ्रम फैलाती रही है. लालू सिर्फ अपने परिवार के लिए काम करते हैं.
''मध्य प्रदेश में बीजेपी ने सामान्य यादव को मुख्यमंत्री बनाकर पूरे ओबीसी समाज को मैसेज देने की कोशिश की है. बीजेपी सबका साथ, सबका विकास के मूल मंत्र पर काम करती है. रही बात लालू यादव की, तो वे केवल अपने परिवार के लिए काम करते हैं''- सतीश यादव, भाजपा नेता
दिल्ली में झंडा फहराने की तैयारी में JDU : इधर, कभी बीजेपी के साथ एनडीए गठबंधन में रहे जेडीयू के नेता दिल्ली का ख्वाब देखने में लगे हैं. वे कहते हैं कि बीजेपी के लोग समझ चुके हैं कि हमारे नेता निकल चुके हैं और देश में परिवर्तन होगा. वह दिन दूर नहीं जब हमारे नेता के हाथों से दिल्ली में झंडा फहड़ेगा.
''बिहार में माय समीकरण पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है, कोई चोट नहीं पड़ेगा. बीजेपी में नित्यानंद राय तो पहले से हैं ही, हम लोग जात की नहीं, जमात की बात करते हैं. विकास के लिए काम करते हैं.''- जमा खान, जेडीयू कोटे से मंत्री
क्या रहा पिछले लोकसभा चुनाव का हाल : लोकसभा चुनाव में भी आरजेडी से ही अधिक यादव सांसद बनते रहे हैं. वैसे तो 2019 में आरजेडी का खाता नहीं खुला था, उसके बावजूद वोट लेने में राजद पीछे नहीं रही थी. नरेंद्र मोदी के चेहरे पर और नीतीश कुमार के साथ के कारण 40 में से 39 सीट एनडीए जीती थी. नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव, अशोक यादव बीजेपी से सांसद बने. वहीं जदयू से भी यादव सांसद बने. इस बार लालू और नीतीश एक साथ हैं और इसलिए भाजपा के लिए चुनौती बड़ी है.
'यादव' पर दांव खेलती रही है BJP : अगर, गौर से देखा जाए तो बीजेपी ने बिहार में कई यादव नेताओं को मौका दिया है. नंद किशोर यादव को प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री बनाया, भूपेंद्र यादव को बिहार का प्रभारी भी बनाया. नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष के साथ अब केंद्र में मंत्री भी बनाया है. रामकृपाल यादव को राजद से तोड़कर अपने साथ लिया.
बड़ा सवाल- BJP को मिलेगा लाभ? : सब पैंतरा आजमाने के बावजूद भाजपा को यादव वोटर को तोड़ने में बहुत सफलता नहीं मिली. इस साल भाजपा ने गोवर्धन पूजा के मौके पर बड़ा कार्यक्रम कर लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी को चौंकाया भी था. अब एमपी में यादव समाज से आने वाले मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर हलचल बढ़ी है. इसका कितना लाभ बीजेपी को मिलता है इसपर नजर टिकी रहेगी.
बिहार में 14 प्रतिशत वोट पर यादवों का कब्जा : बिहार में अभी हाल ही में नीतीश कुमार ने जातीय सर्वेक्षण कराया है. जिसमें 14 प्रतिशत यादवों की संख्या है, जो पिछड़ा वर्ग में सबसे अधिक है. इसलिए बीजेपी की नजर इसपर टिकी हुई है. उसके वोट प्रतिशत में इजाफा तो होता है पर यादव का वोटबैंक अभी भी लालू के साथ है.
क्या रहा है बीजेपी का वोटबैंक : 2004 में बीजेपी को 14.57% वोट मिला था, हालांकि 2009 में बीजेपी अधिक संख्या में सीट जीती लेकिन वोट प्रतिशत 13.93 हो गया. फिर 2014 में जब नीतीश कुमार से अलग बीजेपी लड़ी तो वोट प्रतिशत 29.86% हो गया और सीटों की संख्या भी बढ़ गई. 2019 के चुनाव में एक बार फिर से जदयू भाजपा के साथ थी और बीजेपी का वोट प्रतिशत घटकर 24.05% हो गया, हालांकि एनडीए को 40 सीटों में से 39 सीटों पर जीत जरूर मिली.
विधानसभा में कैसा रहा प्रदर्शन? : इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी नीतीश कुमार से अलग चुनाव लड़ रही थी तो वोट प्रतिशत 24.4 2% मिला था, जो जदयू के 16.83% से अधिक था हालांकि सीटों की संख्या के मामले में बीजेपी को नुकसान हुआ था. 2020 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे तो बीजेपी का वोट प्रतिशत 20% के आसपास हो गया. मतलब लोकसभा चुनाव में बीजेपी के वोट प्रतिशत बढ़ने का बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा रहा और बिहार का पिछड़ा और अति पिछड़ा ने भी बीजेपी को वोट किया.
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