हैदराबाद: मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस (Desertification and Drought day) प्रत्येक वर्ष 17 जून को मनाया जाता है. 2020 में यह मानवता के अथक उत्पादन और उपभोग के सार्वजनिक दृष्टिकोण को बदलने पर केंद्रित होगा. 'फूड. फीड. फाइबर.' के नारे के साथ मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस का उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है कि कैसे वह मिट्टी को कम से कम नुकसान पहुंचाएं.
इस वर्ष से पहले मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस को द वर्ल्ड डे टू कांबैट डेजर्टिफिकेशन एंड ड्राउट (The World Day to Combat Desertification and Drought) के नाम से जाना जाता था. इसका उद्देश्य लोगों को मरुस्थलीकरण के प्रति जागरूक करना है. इसके माध्यम से लोगों को यह संदेश दिया जाता है कि मरुस्थलीकरण को सामुदायिक भागीदारी और सभी स्तरों पर सहयोग के माध्यम से रोका जा सकता है.
मरुस्थलीकरण क्या है?
मरुस्थलीकरण शुष्क, अर्द्ध शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है. इसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियां होती हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण भी मृदा की गुणवत्ता में गिरावट आती है. इससे मौजूदा रेगिस्तानों का विस्तार नहीं होता है. यह पारिस्थितिकी में बदलाव, वनों की कटाई, अत्यधिक चराई, खराब तरह से सिंचाई करने आदि के कारण होता है. इससे भूमि की उत्पादकता प्रभावित होती है.
इतिहास
1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जून 17 को द वर्ल्ड डे टू कांबैट डेजर्टिफिकेशन एंड ड्राउट घोषित किया था. इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण के बारे में जागरूकता फैलाना था और यह सुनिश्चित करना था कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए जारी किए गए दिशानिर्देशों का पालन हो. यह खास तौर से उन क्षेत्रों के लिए था जो गंभीर मरुस्थलीकरण या सूखे से ग्रसित थे.
उद्देश्य
मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
- समस्या के बारे में जागरूकता फैलाना
- लोगों को यह बताना कि इससे निबटा जा सकता है
- लोगों को जागरूक करना कि इससे निबटने के लिए सामुदायिक भागीदारी और सभी स्तरों पर सहयोग जरूरी है
- संयुक्त राष्ट्र के दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन करना, खासकर उन देशों में जो गंभीर रूप से मरुस्थलीकरण और सूखे से ग्रसित हैं
भारत में मरुस्थलीकरण और सूखा
भारत के मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस के मुताबिक 2011-2013 के दौरान 96.4 मिलियन हेक्टेयर यानी देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 29.32 प्रतिशत हिस्सा मरुस्थलीकरण / भूमि क्षरण का शिकार हो रहा था. केवल उत्तर प्रदेश में ही 6.35 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण / भूमि क्षरण का शिकार हो रही थी. बता दें कि यह आंकड़े अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र द्वारा जारी किए गए हैं.
भारत द्वारा उठाए गए कदम
2030 तक भारत ने भूमि क्षरण को रोकने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है. सितंबर 2019 में भारत में आयोजित संयुक्त राष्ट्र कंवेंशन के दलों के सम्मेलन के 14वें सत्र में, भारत ने 2030 तक 21 मिलियन हेक्टेयर के बजाय 26 मिलियन हेक्टेयर खराब भूमि को बहाल करने के लिए प्रतिबद्धता जताई थी.
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का प्रभाग राष्ट्रीय वनीकरण और पर्यावरण विकास बोर्ड (NAEB) राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP) को लागू कर रहा है. इसका उद्देश्य खराब हो चुके वन क्षेत्र की पारिस्थितिकी बहाली करना है. इसके लिए 3874 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है.
ग्रीन इंडिया मिशन, कॉम्पेंसेशनरी एफोरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी (CAMPA), नगर वन योजना आदि योजनाएं भी वनों के क्षरण रोकने के लिए कार्य कर रही हैं. मंत्रालय जंगल के बाहर पेड़ों (Trees outside forest) को भी बढ़ावा दे रहा है.
प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना, प्रति बूंद अधिक फसल, आदि योजानाएं भी भूमि क्षरण को कम करने में मदद कर रही हैं.