देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल सुर्खियों में हैं. इस टनल में पिछले कई दिनों से 41 मजदूर फंसे हुए हैं. जिन्हें निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल हादसे के बाद उत्तराखंड में तमाम टनल निर्माण कार्यों पर भी सवाल उठने लगे हैं. ऐसी स्थिति भविष्य में ना देखने को मिले इसको लेकर सरकार भले ही सबक लेने की बात कह रही हो, लेकिन भविष्य में क्या टनल का वैकल्पिक ऑप्शन भी इस तरह के पर्वतीय क्षेत्रों में कारगर हो सकते हैं. आइये जानते हैं.
उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को निकालने की कवायद लगातार जारी है. 14 दिन बाद भी अभी तक रेस्क्यू ऑपरेशन में सफलता नहीं मिल पाई है. टनल में फंसे मजदूरों को निकलने के लिए न सिर्फ आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है बल्कि देश के तमाम संस्थानों के वैज्ञानिक के साथ ही विदेशी वैज्ञानिक भी राहत बचाव कार्यों में जुटे हैं.
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प्रदेश में अगले 10 सालों में करीब 66 टनल प्रस्तावित: पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर तेजी से काम हो रहे हैं. जिसमें मुख्य रूप से नई रेल परियोजना, सड़क प्रोजेक्ट और पावर प्रोजेक्ट शामिल हैं. जिसके तहत पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतर जगहों पर टनल का निर्माण कार्य किया जाना है. अगले दस सालों में उत्तराखंड, देश का पहला ऐसे राज्य होगा जहां सर्वाधिक रेल और रोड टनल का निर्माण होना है. मौजूदा समय में छोटे बड़े कुल 18 टनल संचालित हो रहे हैं. इसके साथ ही तमाम प्रोजेक्ट्स के तहत 66 टनल बनाए जाने हैं. जिससे उत्तराखंड में रोड और रेल कनेक्टिविटी बढ़ेगी.
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देहरादून से टिहरी तक बड़े टनलों का होना है निर्माण: दरअसल, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट में 17 टनल का निर्माण किया जाना है. जिसके तहत देवप्रयाग से जनासू तक करीब 14 किलोमीटर की लंबी सुरंग का निर्माण कार्य चल रहा है, जो देश की दूसरी सबसे बड़ी टनल होगी. इसके अलावा, देहरादून से टिहरी के बीच 30 किमी लंबी दुनिया की सबसे बड़ी रोड टनल भी प्रस्तावित है. इसके बन जाने से देहरादून और टिहरी के बीच की दूरी करीब 105 किलोमीटर कम हो जाएगी.
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टिहरी जिले में प्रस्तावित है देश की सबसे बड़ी रेल टनल: गंगोत्री से यमुनोत्री धाम को जोड़ने के लिए 121 किलोमीटर लंबी रेल लाइन परियोजना भी प्रस्तावित है. इस प्रोजेक्ट के तहत टिहरी जिले के जाजल और मरोड़ के बीच करीब 17 किमी लंबी एक रेल टनल बनेगी. इस प्रोजेक्ट में करीब 20 टनल बनाए जाने का प्रस्ताव है. इसी क्रम में चारधाम विकास परियोजना के तहत, रुद्रप्रयाग में बदरीनाथ से गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग को जोड़ने के लिए 902 मीटर की सुरंग बनाया जाना प्रस्तावित है, जोकि करीब 200 करोड़ रुपए की लागत से बनेगी.
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क्या कहते हैं वैज्ञानिक: वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ कालाचंद साईं ने बताया जब किसी टनल का निर्माण करते हैं तो उस समय टेस्ट करते है कि जियोलॉजिकल रॉक कितना हार्ड और कितना सॉफ्ट है. सॉफ्ट रॉक होने पर वहां कोई काम करने से मना करते हैं. भविष्य में इस तरह से काम करने की जरूरत है. टनल निर्माण में जियोफिजिकल स्टडी भी काफी महत्वपूर्ण रोल अदा करती है. उसके सतह की जानकारी लेना जरूरी है. लिहाजा, हिमालई क्षेत्रों में कोई भी विकास के कार्य होते हैं तो जियोलॉजिकल और जियोफिजिकल स्टडी की जरूरी होती है. जब सॉफ्ट रॉक के पर काम किया जाता है तो दिक्कतें पैदा होती हैं.
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उन्होंने बताया उत्तराखंड क्षेत्र का पूरा हिमालय नाजुक नहीं है, इसका कुछ हिस्सा नाजुक और कुछ हिस्सा बहुत नाजुक है. जियोलॉजिकल और जियोफिजिकल स्टडी से इसकी जानकारी मिलती है. उन्होंने बताया प्रदेश के हिमालय पर स्टडी हो चुकी है.जिसमें किस क्षेत्र में कितना लोड होना चाहिए, स्ट्रक्चर कैसा होना चाहिए, इस पर रिपोर्ट दी गई है. उन्होंने कहा हिमालय के नाजुक हिस्से पर काम नहीं होना चाहिए. तमाम पहलुओं को देखते हुए प्रदेश में विकास कार्यों को करने की जरूरत है.
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उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को निकलने की जद्दोजहद जारी है. इसके साथ ही उत्तराखंड सरकार ने भूं धसाव होने की वजहों को जानने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट को अध्ययन करने की जिम्मेदारी दी है. जिसके बाद से ही वाडिया की टीम घटना स्थल पर है जो वहां के सतह की स्तिथि को जानने की कोशिश कर रही है. वहां पर पानी, रॉक की स्तिथि को जानने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही टीम को रिसिस्टिविटी (resistivity) और टोमोग्राफी स्टडी के माध्यम से सर्फेस फीचर्स के बारे में जानकारी मिलेगी. जो वहां काम कर रहे डिजास्टर मैनेजमेंट को इनपुट देगा.