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YEAR ENDER 2024: इस साल BSP को लगे दो जोरदार झटके, बुआ-भतीजा हुए फेल, चंद्रशेखर से मिली चुनौती - BSP GETS CONSECUTIVE DEFEATS IN UP

लोकसभा और वुधानसभा उपचुनाव में पार्टी को मिली असफलता, बसपा सुप्रीमो की रणनीति नहीं आई काम

यूपी में बसपा का गिरा ग्राफ
यूपी में बसपा का गिरा ग्राफ (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 29, 2024, 3:39 PM IST

लखनऊ : सियासत के लिहाज से साल 2024 बहुजन समाज पार्टी के लिए बेहद खराब साबित हुआ. बीएसपी सुप्रीमो मायावती लगातार कोशिशें में जुटी रहीं कि कैसे भी पार्टी की स्थिति बेहतर हो जाए, लेकिन ऐसा हो न सका. पार्टी की स्थिति और भी खस्ताहाल हो गई. पहले देश भर में लोकसभा चुनाव लड़ी बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई और इसके बाद नवंबर में उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी का खाता नहीं खुला. हर चुनाव बहुजन समाज पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो रहा है और इसमें पार्टी लगातार फेल ही हो रही है. उत्तर प्रदेश ही नहीं, अन्य राज्यों में भी पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन वहां भी कामयाबी नहीं मिली. लगातार गिरते मत प्रतिशत से अब तो बहुजन समाज पार्टी पर राष्ट्रीय स्तर का दर्जा भी छिनने का खतरा मंडरा रहा है.

चार बार सत्ता पर सवार, अब सियासी गलियारों में दरकिनार : उत्तर प्रदेश में जिस पार्टी की मुखिया चार बार सत्ता पर काबिज हुई हों, उस पार्टी का ग्राफ चढ़ने के बाद इस कदर उतरा कि चुनाव दर चुनाव इसमें गिरावट ही आई है. बात हो रही है बहुजन समाज पार्टी की. बीएसपी मुखिया मायावती सूबे की सत्ता पर चार बार काबिज हुईं. प्रदेश में बीएसपी की ताकत का अंदाजा साल 2007 में तब हुआ जब बीएसपी ने अकेले दम प्रचंड बहुमत हासिल किया. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. कोई पार्टी नहीं कर पाई थी. उस साल बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 212 सीटों पर जीत हासिल की और उत्तर प्रदेश के सिंहासन पर कब्जा जमाया. प्रचंड बहुमत के साथ मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. वर्ष 2012 से लेकर 2017 तक उन्होंने सत्ता पर बसपा का वर्चस्व कायम रखा, लेकिन बीएसपी ने यह कभी उम्मीद नहीं कि होगी कि जब 2017 में फिर से विधानसभा चुनाव होंगे तो पार्टी की स्थिति इस कदर बिगड़ जाएगी कि मुख्य विपक्षी दल की स्थिति तक न रह जाएगी. 2017 से बहुजन समाज पार्टी का ढलान शुरू हुआ और 2024 तक यह सिलसिला लगातार जारी है. साल 2024 तो हर लिहाज से बहुजन समाज पार्टी के लिए बुरा ही साबित हुआ है. चाहे इस साल हुआ लोकसभा चुनाव हो या फिर उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर संपन्न हुए उपचुनाव. दोनों में ही पार्टी का सूपड़ा साफ हुआ.

गठबंधन होता तो बदल सकती थी स्थिति : बहुजन समाज पार्टी ने एलान किया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी से भी गठबंधन नहीं होगा. बीएसपी मुखिया मायावती ने अपने वादे के अनुसार वैसा ही किया. देश भर में लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी मैदान में उतरी. जहां एक तरफ कई पार्टियों को मिलाकर इंडी गठबंधन बना, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए गठबंधन में कई पार्टियां शामिल हुईं, लेकिन बीएसपी मुखिया ने जो फैसला लिया था उसके तहत चुनाव मैदान में पार्टी अकेले उतरी और नतीजे आए तो अन्य पार्टियों को तो खूब सीटें मिलीं पर बीएसपी अकेली ही रह गई. बसपा ने देश भर में 488 सीटों पर चुनाव लड़ा, जो राष्ट्रीय दलों में सबसे ज्यादा थीं. लोकसभा चुनाव में देश भर में बहुजन समाज पार्टी को एक सीट तक नहीं मिल पाई. पार्टी का खाता नहीं खुला तो कार्यकर्ता काफी हतोत्साहित हो गए. मायावती को भी झटका लगा. पार्टी में ही अंदरखाने चर्चा होने लगी कि अगर इंडी गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी शामिल हो जाती तो फिर यूपी में बीएसपी को भी जरूर सीटें जीतने में सफलता मिलती. हालांकि उम्मीद पर दुनिया कायम तो बीएसपी भी ने भी उम्मीद नहीं छोड़ी. आगे आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए फिर से कमर कसनी शुरू की.

उपचुनाव में हुई अग्नि परीक्षा, फिर लगा झटका : लोकसभा चुनाव में हार के जख्म से उबर न सकने वाली बहुजन समाज पार्टी ने यूपी की नौ सीटों पर विधानसभा चुनाव में यह उम्मीद की थी कि जख्मों पर मरहम लग जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीएसपी के जख्म भरने के बजाय और हरे हो गए. पार्टी का हाथी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया. नौ विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी बहुजन समाज पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. इतना ही नहीं पार्टी का मत प्रतिशत भी औंधे मुंह आ गिरा.

मायावती के लिए नई चुनौती बने चंद्रशेखर : बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती दलित वोटरों पर अपना एकाधिकार जताती रही हैं, लेकिन अब उसमें भी सेंध लग गई है. साल 2024 में मायावती के लिए सबसे बड़ी चुनौती आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद साबित हुए. लोकसभा चुनाव में नगीना सीट पर मैदान में उतरे चंद्रशेखर ने जीत हासिल की और सांसद बन गए, जबकि इस सीट पर कभी बहुजन समाज पार्टी का दबदबा हुआ करता था. यही नहीं, इसके बाद जब नौ सीटों पर उपचुनाव हुए तो चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों को तीन सीटों पर हरा दिया. यानी नई नवेली पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी और मायावती को सोचने पर मजबूर कर दिया. हालांकि इन नौ सीटों पर बहुजन समाज पार्टी जीती न आजाद समाज पार्टी, लेकिन बीएसपी का असली खेल आजाद समाज पार्टी ने ही बिगाड़ा.

फ्लॉप साबित हुए मायावती के भतीजे आकाश आनंद : बहुजन समाज पार्टी को जब जीत की उम्मीद कहीं से नजर नहीं आ रही थी तो बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को कमान थमाई. पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित किया. हालांकि कुछ दिन बाद ही उनसे ये अधिकार छीन भी लिया. लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश आनंद के भाषण जनता को खूब रास आ रहे थे. पार्टी में उम्मीद भी जागने लगी थी, लेकिन एक रैली के दौरान उन्होंने कुछ ऐसा बोला कि बसपा सुप्रीमो मायावती को उन्हें चुनावी मैदान के साथ ही पद से भी हटाना पड़ा. इससे बहुजन समाज पार्टी का गुणा गणित बिगड़ गया. लोकसभा चुनाव में आकाश आनंद फेल साबित हुए. बावजूद इसके बुआ मायावती ने भतीजे को प्रभार देना नहीं छोड़ा. मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, तेलंगाना और जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में चुनाव हुए और आकाश आनंद ने खूब रैलियां कीं, जन समर्थन जुटाया, लेकिन एक भी प्रदेश ऐसा नहीं रहा, जहां पर बीएसपी का हाथी दौड़ पाया हो. हाथी की सुस्त चाल बीएसपी के लिए कोई कमाल नहीं कर पा रही है. कुल मिलाकर बीएसपी के ब्रह्मास्त्र आकाश आनंद भी फिलहाल अभी फेल ही साबित हो रहे हैं.

नए साल में पुराने नेताओं को साथ लेकर 2027 की तैयारी : नए साल में अब बहुजन समाज पार्टी अपनी रणनीति बदल सकती है. पार्टी से जो भी पुराने नेता निकाले गए हैं, उन्हें वापस ले सकती है. पुराने नेताओं के साथ नए साल से नई रणनीति पर चलकर 2027 में फिर से बहुजन समाज पार्टी का दबदबा कायम करने की कोशिश हो सकती है. कई बार इशारों इशारों में बीएसपी मुखिया ने जताया भी कि पुराने वफादार नेताओं का पार्टी में फिर से स्वागत है. अगर वह आएंगे तो उन्हें एतराज नहीं होगा. ऐसे में नए साल में उम्मीद जाहिर की जा सकती है कि पुराने नेताओं के साथ नए सिरे से नई रणनीति के साथ उतरकर बीएसपी फिर से करिश्माई प्रदर्शन कर सकती है.

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक प्रभात रंजन दीन कहते हैं बहुजन समाज पार्टी की हालत अपने कर्मों के चलते ही खराब हुई है. पार्टी अपने अहंकार में अभी तक चूर है. सभी पार्टियों के नेता चुनाव के दौरान तो कम से कम जनता के बीच जाते ही हैं, लेकिन बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती उस दौरान भी कोई विशेष गंभीरता नहीं दिखाती हैं. ऐसे में जब जनता के बीच नेता जाएगा ही नहीं तो फिर धीरे-धीरे जनता का रुख नेता के प्रति वफादारी का नहीं रहेगा. बीएसपी के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है. अब बीएसपी के अपने वोटरों में ही विश्वास खत्म हो रहा है. यही वजह है कि अब कोर वोटर भी बहुजन समाज पार्टी को वोट नहीं कर रहे हैं. पार्टी की अपनी लापरवाही से ही चंद्रशेखर अब बीएसपी मतदाताओं पर अपना प्रभाव छोड़ने लगे हैं. बसपा को चाहिए कि अपने पुराने नेताओं को साथ लेकर आगे बढ़े और बसपा मुखिया मायावती खुद मैदान में उतरे तभी बेहतरी की उम्मीद संभव है.

यह भी पढ़ें : YEAR ENDER 2024: भाजपा को पहले बड़ा झटका लगा फिर उपचुनाव में मरहम; केशव मौर्य की दिल्ली दौड़, सीएम योगी से तनातनी बनीं सुर्खियां - MIX FEELINGS FOR UP BJP

लखनऊ : सियासत के लिहाज से साल 2024 बहुजन समाज पार्टी के लिए बेहद खराब साबित हुआ. बीएसपी सुप्रीमो मायावती लगातार कोशिशें में जुटी रहीं कि कैसे भी पार्टी की स्थिति बेहतर हो जाए, लेकिन ऐसा हो न सका. पार्टी की स्थिति और भी खस्ताहाल हो गई. पहले देश भर में लोकसभा चुनाव लड़ी बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई और इसके बाद नवंबर में उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी का खाता नहीं खुला. हर चुनाव बहुजन समाज पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो रहा है और इसमें पार्टी लगातार फेल ही हो रही है. उत्तर प्रदेश ही नहीं, अन्य राज्यों में भी पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन वहां भी कामयाबी नहीं मिली. लगातार गिरते मत प्रतिशत से अब तो बहुजन समाज पार्टी पर राष्ट्रीय स्तर का दर्जा भी छिनने का खतरा मंडरा रहा है.

चार बार सत्ता पर सवार, अब सियासी गलियारों में दरकिनार : उत्तर प्रदेश में जिस पार्टी की मुखिया चार बार सत्ता पर काबिज हुई हों, उस पार्टी का ग्राफ चढ़ने के बाद इस कदर उतरा कि चुनाव दर चुनाव इसमें गिरावट ही आई है. बात हो रही है बहुजन समाज पार्टी की. बीएसपी मुखिया मायावती सूबे की सत्ता पर चार बार काबिज हुईं. प्रदेश में बीएसपी की ताकत का अंदाजा साल 2007 में तब हुआ जब बीएसपी ने अकेले दम प्रचंड बहुमत हासिल किया. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. कोई पार्टी नहीं कर पाई थी. उस साल बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 212 सीटों पर जीत हासिल की और उत्तर प्रदेश के सिंहासन पर कब्जा जमाया. प्रचंड बहुमत के साथ मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. वर्ष 2012 से लेकर 2017 तक उन्होंने सत्ता पर बसपा का वर्चस्व कायम रखा, लेकिन बीएसपी ने यह कभी उम्मीद नहीं कि होगी कि जब 2017 में फिर से विधानसभा चुनाव होंगे तो पार्टी की स्थिति इस कदर बिगड़ जाएगी कि मुख्य विपक्षी दल की स्थिति तक न रह जाएगी. 2017 से बहुजन समाज पार्टी का ढलान शुरू हुआ और 2024 तक यह सिलसिला लगातार जारी है. साल 2024 तो हर लिहाज से बहुजन समाज पार्टी के लिए बुरा ही साबित हुआ है. चाहे इस साल हुआ लोकसभा चुनाव हो या फिर उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर संपन्न हुए उपचुनाव. दोनों में ही पार्टी का सूपड़ा साफ हुआ.

गठबंधन होता तो बदल सकती थी स्थिति : बहुजन समाज पार्टी ने एलान किया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी से भी गठबंधन नहीं होगा. बीएसपी मुखिया मायावती ने अपने वादे के अनुसार वैसा ही किया. देश भर में लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी मैदान में उतरी. जहां एक तरफ कई पार्टियों को मिलाकर इंडी गठबंधन बना, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए गठबंधन में कई पार्टियां शामिल हुईं, लेकिन बीएसपी मुखिया ने जो फैसला लिया था उसके तहत चुनाव मैदान में पार्टी अकेले उतरी और नतीजे आए तो अन्य पार्टियों को तो खूब सीटें मिलीं पर बीएसपी अकेली ही रह गई. बसपा ने देश भर में 488 सीटों पर चुनाव लड़ा, जो राष्ट्रीय दलों में सबसे ज्यादा थीं. लोकसभा चुनाव में देश भर में बहुजन समाज पार्टी को एक सीट तक नहीं मिल पाई. पार्टी का खाता नहीं खुला तो कार्यकर्ता काफी हतोत्साहित हो गए. मायावती को भी झटका लगा. पार्टी में ही अंदरखाने चर्चा होने लगी कि अगर इंडी गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी शामिल हो जाती तो फिर यूपी में बीएसपी को भी जरूर सीटें जीतने में सफलता मिलती. हालांकि उम्मीद पर दुनिया कायम तो बीएसपी भी ने भी उम्मीद नहीं छोड़ी. आगे आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए फिर से कमर कसनी शुरू की.

उपचुनाव में हुई अग्नि परीक्षा, फिर लगा झटका : लोकसभा चुनाव में हार के जख्म से उबर न सकने वाली बहुजन समाज पार्टी ने यूपी की नौ सीटों पर विधानसभा चुनाव में यह उम्मीद की थी कि जख्मों पर मरहम लग जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीएसपी के जख्म भरने के बजाय और हरे हो गए. पार्टी का हाथी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया. नौ विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी बहुजन समाज पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. इतना ही नहीं पार्टी का मत प्रतिशत भी औंधे मुंह आ गिरा.

मायावती के लिए नई चुनौती बने चंद्रशेखर : बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती दलित वोटरों पर अपना एकाधिकार जताती रही हैं, लेकिन अब उसमें भी सेंध लग गई है. साल 2024 में मायावती के लिए सबसे बड़ी चुनौती आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद साबित हुए. लोकसभा चुनाव में नगीना सीट पर मैदान में उतरे चंद्रशेखर ने जीत हासिल की और सांसद बन गए, जबकि इस सीट पर कभी बहुजन समाज पार्टी का दबदबा हुआ करता था. यही नहीं, इसके बाद जब नौ सीटों पर उपचुनाव हुए तो चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों को तीन सीटों पर हरा दिया. यानी नई नवेली पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी और मायावती को सोचने पर मजबूर कर दिया. हालांकि इन नौ सीटों पर बहुजन समाज पार्टी जीती न आजाद समाज पार्टी, लेकिन बीएसपी का असली खेल आजाद समाज पार्टी ने ही बिगाड़ा.

फ्लॉप साबित हुए मायावती के भतीजे आकाश आनंद : बहुजन समाज पार्टी को जब जीत की उम्मीद कहीं से नजर नहीं आ रही थी तो बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को कमान थमाई. पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित किया. हालांकि कुछ दिन बाद ही उनसे ये अधिकार छीन भी लिया. लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश आनंद के भाषण जनता को खूब रास आ रहे थे. पार्टी में उम्मीद भी जागने लगी थी, लेकिन एक रैली के दौरान उन्होंने कुछ ऐसा बोला कि बसपा सुप्रीमो मायावती को उन्हें चुनावी मैदान के साथ ही पद से भी हटाना पड़ा. इससे बहुजन समाज पार्टी का गुणा गणित बिगड़ गया. लोकसभा चुनाव में आकाश आनंद फेल साबित हुए. बावजूद इसके बुआ मायावती ने भतीजे को प्रभार देना नहीं छोड़ा. मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, तेलंगाना और जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में चुनाव हुए और आकाश आनंद ने खूब रैलियां कीं, जन समर्थन जुटाया, लेकिन एक भी प्रदेश ऐसा नहीं रहा, जहां पर बीएसपी का हाथी दौड़ पाया हो. हाथी की सुस्त चाल बीएसपी के लिए कोई कमाल नहीं कर पा रही है. कुल मिलाकर बीएसपी के ब्रह्मास्त्र आकाश आनंद भी फिलहाल अभी फेल ही साबित हो रहे हैं.

नए साल में पुराने नेताओं को साथ लेकर 2027 की तैयारी : नए साल में अब बहुजन समाज पार्टी अपनी रणनीति बदल सकती है. पार्टी से जो भी पुराने नेता निकाले गए हैं, उन्हें वापस ले सकती है. पुराने नेताओं के साथ नए साल से नई रणनीति पर चलकर 2027 में फिर से बहुजन समाज पार्टी का दबदबा कायम करने की कोशिश हो सकती है. कई बार इशारों इशारों में बीएसपी मुखिया ने जताया भी कि पुराने वफादार नेताओं का पार्टी में फिर से स्वागत है. अगर वह आएंगे तो उन्हें एतराज नहीं होगा. ऐसे में नए साल में उम्मीद जाहिर की जा सकती है कि पुराने नेताओं के साथ नए सिरे से नई रणनीति के साथ उतरकर बीएसपी फिर से करिश्माई प्रदर्शन कर सकती है.

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक प्रभात रंजन दीन कहते हैं बहुजन समाज पार्टी की हालत अपने कर्मों के चलते ही खराब हुई है. पार्टी अपने अहंकार में अभी तक चूर है. सभी पार्टियों के नेता चुनाव के दौरान तो कम से कम जनता के बीच जाते ही हैं, लेकिन बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती उस दौरान भी कोई विशेष गंभीरता नहीं दिखाती हैं. ऐसे में जब जनता के बीच नेता जाएगा ही नहीं तो फिर धीरे-धीरे जनता का रुख नेता के प्रति वफादारी का नहीं रहेगा. बीएसपी के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है. अब बीएसपी के अपने वोटरों में ही विश्वास खत्म हो रहा है. यही वजह है कि अब कोर वोटर भी बहुजन समाज पार्टी को वोट नहीं कर रहे हैं. पार्टी की अपनी लापरवाही से ही चंद्रशेखर अब बीएसपी मतदाताओं पर अपना प्रभाव छोड़ने लगे हैं. बसपा को चाहिए कि अपने पुराने नेताओं को साथ लेकर आगे बढ़े और बसपा मुखिया मायावती खुद मैदान में उतरे तभी बेहतरी की उम्मीद संभव है.

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