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काशी में कन्याओं का हुआ यज्ञोपवीत संस्कार, जानिए

काशी में कन्याओं का यज्ञोपवीत संस्कार हुआ है. चलिए जानते हैं इस बारे में.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 15, 2024, 9:49 AM IST

वाराणसी: यज्ञोपवीत संस्कार आमतौर पर इस संस्कार को समाज में लड़कों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन काशी में यज्ञोपवीत संस्कार की इस परंपरा का निर्माण लड़कियों के साथ हुआ सुनकर आश्चर्य जरूर हो रहा होगा लेकिन यह सच है. काशी में बसंत पंचमी के अवसर पर बेटियो ने तमाम रूढ़ियों को तोड़कर उपनयन संस्कार कर इस मान्यता के प्रति विद्रोह कर दिया की लड़कियों का उपनयन नही होता है.

उपनयन, जनेऊ या यज्ञोपवीत की बात करे तो यह सनातन धर्म के प्रमुख संस्कारों में माना जाता है, लेकिन कहने को तो यह सनातन संस्कार है, लेकिन यह कुछ जाति विशेष में रह गया है ,ब्राह्मण इसे 8 से 12 साल के उम्र में तो राजपूत इसे विवाह के समय विवाह मंडप में करते है. जबकि यह शिक्षा का संस्कार है और शिक्षा ग्रहण के दौरान ही सभी का संस्कार हो जाना चाहिए.

वाराणसी जो धर्म और संस्कारो का प्रतिनिधित्व भी करती है ने आज अपनी 5 बेटियो समेत 12 बच्चो का सामुहिक उपनयन संस्कार संपादित कर एक नया और विद्रोही संदेश दिया है. बच्चो के शिक्षा और संस्कार के दिशा में कार्यरत संस्था राजसूत्र पीठ के माध्यम से यज्ञोपवीत का कार्यक्रम काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य रोहतम के संरक्षण और राजसूत्र पीठ द्वारा आयोजित सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार में संपन्न हुआ.

कन्या के उपनयन के बारे में आचार्य रोहतम ने बताया की यह तो वेदों में लिखा है की कन्या उपनयन संस्कार के बाद शिक्षा ग्रहण करके ही योग्य वर का चयन करेगी, अर्थात शिक्षा और संस्कार में स्त्री भी अनादि काल से प्रमुख रही ह और मुगल काल से पूर्व तक सनातन में कन्या का उपनयन होता रहा, लेकिन मुगल काल में हिंदू कन्याओं के अपहरण गलत आचरण से भय वश लड़कियों का संस्कार बंद हो गया था और आजादी के बाद भी अब तक इसे किसी ने पुनः प्रारंभ करने का प्रयास नही किया, लेकिन राजसूत्र द्वारा इसे शुरू करना सनातन संस्कार को दृष्टि से एक एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.

इस बारे में उपनयन कराने वाली बेटी के पिता दृगविंदु मणि सिंह का कहना है कि जब बिटिया श्मशान में कंधा देने जा सकती है तो जनेऊ क्यों न धारण करे, और यह तो हमारे धर्म ग्रंथ में है अतः इसे समाज हित में शुरू करना एक अच्छा कदम है. राजसूत्र पीठ के संस्थापक ट्रस्टी रोहित सिंह का कहना है कि यह सिर्फ अध्यात्म और धर्म का विषय नही बल्कि विज्ञान पर आधारित है इससे बच्चो में अनुशासन का निर्माण के साथ हेल्थ केलिए एक बेहतर कदम है और पीठ द्वारा समाज के बच्चो को जागृत करने के साथ उनमें संस्कार भरना महत्वपूर्ण है खासकर बेटियो को समृद्ध करना है और बेटी पढ़ाओ के नारे को स्थान देना है तो बेटी का उपनयन भी करना ही होगा और रूढ़ियों को तोड़ना होगा.

जब उन्होंने बेटियो के उपनयन की बाते लोगो में रखी तो शुरू में लोगो ने इसे पागलपन और सनक करार दिया लेकिन जब इसके महत्व को जाना तो अपने बेटियो को इस आयोजन में शामिल किया. इस बार 12 बच्चो का हो संस्कार हो पाया क्योंकि परीक्षा का समय है, लेकिन ग्रीष्म अवकाश के समय 101 बच्चो का पुन सामूहिक यज्ञपावीत संस्कार होगा जिसमे 50 प्रतिशत बिटिया भी होगी.

ये भी पढ़ेंः अयोध्या में सुग्रीव पथ बनवाएगी योगी सरकार, चंदौली में इंटीग्रेटेड टाउनशिप और झांसी में बनेंगे रेलवे कोच

वाराणसी: यज्ञोपवीत संस्कार आमतौर पर इस संस्कार को समाज में लड़कों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन काशी में यज्ञोपवीत संस्कार की इस परंपरा का निर्माण लड़कियों के साथ हुआ सुनकर आश्चर्य जरूर हो रहा होगा लेकिन यह सच है. काशी में बसंत पंचमी के अवसर पर बेटियो ने तमाम रूढ़ियों को तोड़कर उपनयन संस्कार कर इस मान्यता के प्रति विद्रोह कर दिया की लड़कियों का उपनयन नही होता है.

उपनयन, जनेऊ या यज्ञोपवीत की बात करे तो यह सनातन धर्म के प्रमुख संस्कारों में माना जाता है, लेकिन कहने को तो यह सनातन संस्कार है, लेकिन यह कुछ जाति विशेष में रह गया है ,ब्राह्मण इसे 8 से 12 साल के उम्र में तो राजपूत इसे विवाह के समय विवाह मंडप में करते है. जबकि यह शिक्षा का संस्कार है और शिक्षा ग्रहण के दौरान ही सभी का संस्कार हो जाना चाहिए.

वाराणसी जो धर्म और संस्कारो का प्रतिनिधित्व भी करती है ने आज अपनी 5 बेटियो समेत 12 बच्चो का सामुहिक उपनयन संस्कार संपादित कर एक नया और विद्रोही संदेश दिया है. बच्चो के शिक्षा और संस्कार के दिशा में कार्यरत संस्था राजसूत्र पीठ के माध्यम से यज्ञोपवीत का कार्यक्रम काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य रोहतम के संरक्षण और राजसूत्र पीठ द्वारा आयोजित सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार में संपन्न हुआ.

कन्या के उपनयन के बारे में आचार्य रोहतम ने बताया की यह तो वेदों में लिखा है की कन्या उपनयन संस्कार के बाद शिक्षा ग्रहण करके ही योग्य वर का चयन करेगी, अर्थात शिक्षा और संस्कार में स्त्री भी अनादि काल से प्रमुख रही ह और मुगल काल से पूर्व तक सनातन में कन्या का उपनयन होता रहा, लेकिन मुगल काल में हिंदू कन्याओं के अपहरण गलत आचरण से भय वश लड़कियों का संस्कार बंद हो गया था और आजादी के बाद भी अब तक इसे किसी ने पुनः प्रारंभ करने का प्रयास नही किया, लेकिन राजसूत्र द्वारा इसे शुरू करना सनातन संस्कार को दृष्टि से एक एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.

इस बारे में उपनयन कराने वाली बेटी के पिता दृगविंदु मणि सिंह का कहना है कि जब बिटिया श्मशान में कंधा देने जा सकती है तो जनेऊ क्यों न धारण करे, और यह तो हमारे धर्म ग्रंथ में है अतः इसे समाज हित में शुरू करना एक अच्छा कदम है. राजसूत्र पीठ के संस्थापक ट्रस्टी रोहित सिंह का कहना है कि यह सिर्फ अध्यात्म और धर्म का विषय नही बल्कि विज्ञान पर आधारित है इससे बच्चो में अनुशासन का निर्माण के साथ हेल्थ केलिए एक बेहतर कदम है और पीठ द्वारा समाज के बच्चो को जागृत करने के साथ उनमें संस्कार भरना महत्वपूर्ण है खासकर बेटियो को समृद्ध करना है और बेटी पढ़ाओ के नारे को स्थान देना है तो बेटी का उपनयन भी करना ही होगा और रूढ़ियों को तोड़ना होगा.

जब उन्होंने बेटियो के उपनयन की बाते लोगो में रखी तो शुरू में लोगो ने इसे पागलपन और सनक करार दिया लेकिन जब इसके महत्व को जाना तो अपने बेटियो को इस आयोजन में शामिल किया. इस बार 12 बच्चो का हो संस्कार हो पाया क्योंकि परीक्षा का समय है, लेकिन ग्रीष्म अवकाश के समय 101 बच्चो का पुन सामूहिक यज्ञपावीत संस्कार होगा जिसमे 50 प्रतिशत बिटिया भी होगी.

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