भरतपुर : राजस्थान सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने और ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अनेक जतन कर रही है. बावजूद इसके भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में राज्य सरकार ने एक ऐसा नियम थोप दिया है, जिसकी वजह से गत वर्ष पर्यटकों की संख्या में करीब 18% तक की गिरावट दर्ज की गई. पक्षियों के स्वर्ग में पक्षियों की अठखेलियां देखने आने वाले हजारों पर्यटक सिर्फ इस नियम की वजह से उद्यान के गेट से ही लौट गए. असल में यह नियम है ई-रिक्शा के साथ नेचर गाइड की अनिवार्यता है. इस नियम की वजह से पर्यटकों के जेब पर कई गुना भार बढ़ गया है. यही वजह है कि वर्ष 2023-24 में 2022-23 की तुलना में 17,293 पर्यटक कम पहुंचे. अब सोचने वाली बात यह है कि भला ऐसे हालात में पर्यटन को बढ़ावा कैसे मिलेगा.
कोविड काल से भी कम पर्यटक : केवला देव राष्ट्रीय उद्यान में कोविड के बाद धीरे-धीरे पर्यटकों की संख्या में इजाफा होने लगा, लेकिन तभी वर्ष 2022 में घना में ई-रिक्शा का संचालन शुरू कर दिया गया. इससे पर्यटकों में थोड़ी खुशी दिखी, लेकिन कुछ वक्त बाद ही नया नियम लागू किया गया कि ई-रिक्शा के साथ पर्यटकों को एक नेचर गाइड भी अनिवार्य रूप से लेना होगा. इसके लागू होते ही पर्यटकों ने शुल्क का गणित देखा और धीरे धीरे घना से मुंह मोड़ने लगे. यहां तक कि सैकड़ों, हजारों पर्यटक तो घना की टिकट खिड़की से शुल्क पता कर बिना घूमे ही लौट गए.
इतना ही नहीं कितने ही पर्यटकों ने घना प्रशासन को लिखित में अपनी शिकायत दी. यही वजह रही कि वर्ष 2023-24 में पर्यटकों की संख्या में 17,293 की गिरावट के साथ सिर्फ 81,159 पर्यटक ही पहुंचे. जो कि कोविड काल के वर्ष 2021-22 के पर्यटक 94,777 से भी कम थे.
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आंकड़ों में पर्यटकों की संख्या
साल | पर्यटक |
2020-21 | 55517 |
2021-22 | 94777 |
2022-23 | 98452 |
2023-24 | 81159 |
इस नियम से महंगा हुआ घूमना : 5 अक्टूबर, 2023 को उद्यान में ई-रिक्शा के साथ नेचर गाइड की अनिवार्यता का नियम लागू किया गया. दो घंटे की ट्रिप में एक ई-रिक्शा में अधिकतम 4 पर्यटक बैठ सकते हैं. दो घंटे के लिए ई-रिक्शा का शुल्क 800 रुपए और नेचर गाइड का शुल्क 800 रुपए रहेगा. तीन घंटे की ट्रिप में यह शुल्क 1200-1200 रुपए रहेगा. यदि पर्यटक इससे भी ज्यादा समय घूमना चाहता है तो प्रति घंटे 300-300 रुपए अतिरिक्त शुल्क लगेगा. यानी यदि चार पर्यटक ई-रिक्शा से तीन घंटे घूमना चाहते हैं तो ई रिक्शा व नेचर गाइड का 2400 रुपए शुल्क और प्रति भारतीय पर्यटक 155 रुपए के हिसाब से 620 रुपए यानी कुल 3020 रुपए शुल्क देना होगा. जबकि ई रिक्शा से पहले जब पैडल रिक्शा से पर्यटक घूमते थे तो दो पर्यटक एक रिक्शा में बैठकर घूम सकते थे. एक रिक्शा का शुल्क तीन घंटे का 600 रखा गया था. जबकि 10 पर्यटकों के साथ ही नेचर गाइड लेना अनिवार्य था. ऐसे में पर्यटकों के जेब पर कम भार पड़ता था.
इनको सबसे ज्यादा समस्या : कुछ पर्यटक लंबे समय से हर साल घना घूमने आते हैं. उन्हें पक्षियों और घना के बारे में सब कुछ पता है. इसलिए इनको नेचर गाइड की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन अब नियम की वजह से गाइड लेना पड़ रहा है. ऐसे वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर जो एक एक सप्ताह के लिए घना घूमने आते हैं. वो हर दिन नेचर गाइड रखना नहीं चाहते. क्योंकि यह उनके लिए बहुत महंगा पड़ता है. स्थानीय पर्यटक जो सिर्फ घना घूमना चाहते हैं और वापस चले जाते हैं. उन्हें भी यह नियम महंगा पड़ रहा है.
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घना निदेशक मानस सिंह ने बताया कि नेचर गाइड की अनिवार्यता वाला नियम सरकार की ओर से लागू किया गया था. हमने पर्यटकों से मिली शिकायतों के आधार पर सरकार को इस नियम की कमियों और अच्छाइयों से अवगत करा दिया है. अभी तक सरकार की ओर से हमें कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं. यह बात सच है कि गत वर्ष हमारे यहां पर्यटकों की संख्या में काफी गिरावट आई थी. उसकी एक वजह नेचर गाइड की अनिवार्यता वाला नियम भी है.
नेचर गाइड की अनिवार्यता वाले नियम की वजह से जहां घना के राजस्व पर नकारात्मक असर पड़ा है वहीं यहां के होटल व्यवसाय को भी नुकसान हुआ है. इस पर्यटन सीजन में भी सितंबर के अंतिम सप्ताह तक पर्यटकों की आशानुरूप बुकिंग नहीं हुई हैं. यहां तक कि कई पर्यटक तो अभी भी नियम के बारे में जानकारी कर बुकिंग कराने से कतरा रहे हैं.