लखनऊ : प्रदेश भर में इस समय हेपेटाइटिस से पीड़ित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. हेपेटाइटिस ए और ई दूषित भोजन व पानी से होता है. यह संक्रमण सात से 15 दिन में खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है. हालांकि संक्रमण का पता चलने पर मरीज व उनके तीमारदार अपनी मर्जी से तमाम बंदिशें लगा देते हैं. अत्यधिक परहेज मरीज की सेहत के लिए घातक होता है. समाज में ऐसी ही तमाम भ्रांतियां हैं. हालांकि ऐसा नहीं है. मरीज अपनी इच्छानुसार भोजन कर सकता है. यह बातें वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे के अवसर पर केजीएमयू गेस्ट्रो इंट्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुमित रुंगटा ने शनिवार को मीडिया से साझा की.
मुफ्त इलाज से हेपेटाइटिस को हराना आसान : डॉ. सुमित रुंगटा ने बताया कि यूपी के सरकारी मेडिकल कॉलेज व संस्थानों में वर्ष 2018 से नेशनल हेपेटाइटिस प्रोग्राम चल रहा है. केजीएमयू में वर्ष 2021 से यह कार्यक्रम शुरू हुआ. इसमें हेपेटाइटिस संक्रमण की पहचान व इलाज मुफ्त मुहैया कराया जा रहा है. अब तक 25 हजार संक्रमितों को मुफ्त इलाज मुहैया कराया गया. जिसमें 10 हजार हेपेटाइटिस सी के मरीज हैं. जबकि 15 हजार बी के मरीज हैं. हेपेटाइटिस ए और ई का इलाज लक्षणों के आधार पर किया जाता है. यह खुद-ब-खुद भी तय समय में ठीक हो जाता है. मौजूदा समय में केजीएमयू में 2000 हेपेटाइटिस संक्रमितों का इलाज चल रहा है.
केजीएमयू गेस्ट्रो इंट्रोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रो. डॉ. सयान मालाकर ने बताया कि संक्रमण का पता चलने पर परिवारीजन सबसे पहले मरीज को परहेज वाला खाना देना शुरू कर देते हैं. नतीजतन शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है. लिवर की कार्यक्षमता भी घटने लगती है. लोग हल्दी, तेल, घी, प्रोटीन की वस्तुओं को बिलकुल रोक देते हैं. इससे मरीज का वजन तेजी से कम होने लगता है. जबकि संक्रमण की पुष्टि के बाद मरीज को खान-पान का खास खयाल रखने की जरूरत होती है. ऐसे में बाजार की वस्तुओं से परहेज करने की जरूरत होती है. घर में बना पौष्टिक भोजन लेना चाहिए. किसी भी प्रकार के भोजन का परहेज न करें.
मुफ्त इलाज बना संजीवनी : डॉ. मयंक राजपूत ने बताया कि इलाज मुफ्त होने से बीमारी को मात देना आसान हो गया है. प्राइवेट अस्पताल में हर छह माह पर कम से कम 40 से 50 हजार रुपये का खर्च आता है. हेपेटाइटिस सी का इलाज तीन से छह माह तक चलता है.
समय-समय पर जांच जरूरी : डॉ. प्रीतम दास ने बताया कि हेपेटाइटिस बी व सी खून, संक्रमित के साथ सेक्स करने, दूषित वस्तुओं के संपर्क के माध्यम से एक से दूसरे इंसान में फैलता है. हेपेटाइटिस बी में सभी संक्रमितों को इलाज की जरूरत नहीं होती है. जिन मरीजों में वायरस एक्टिव होता है. उन्हें ही इलाज मुहैया कराया जाता है. बाकी मरीजों को छह-छह माह पर जांच के लिए बुलाया जाता है. हेपेटाइिस बी व सी लिवर को नुकसान पहुंचाता है. लिवर सिरोसिस तक हो सकता है. हेपेटाइटिस के इलाज तय समय में बंद हो जाता है, लेकिन सिरोसिस का इलाज चलता रहता है.