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विश्व हीमोफीलिया दिवस: भावी पीढ़ी को हीमोफीलिया से बचाने के लिए शादी से पहले कराएं जांच - World Haemophilia Day

World Hemophilia Day विश्व हीमोफीलिया दिवस पर हम आपके लिए लाए हैं इस बीमारी की पूरी जानकारी. हीमोफीलिया कैसे होता है और इस बीमारी से कैसे बचा जा सकता है, इसे जानने के लिए पढ़िए पूरी रिपोर्ट.

World Haemophilia Day
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 17, 2024, 6:30 AM IST

भरतपुर. कुछ बीमारियां बच्चों को सौगात में मिल रही हैं. हीमोफीलिया बीमारी ऐसी ही अनुवांशिक बीमारी है, जिससे बच्चे को जीवन भर परेशान होना पड़ता है. यदि शादी से पहले लड़का और लड़की की कुछ जरूरी स्वास्थ्य जांच करा ली जाए, तो भावी पीढ़ी को इस अनुवांशिक बीमारी से बचाया जा सकता है. भरतपुर जिले के 42 बच्चे इस गंभीर बीमारी की चपेट में हैं. विश्व हीमोफीलिया दिवस पर जानते हैं कि किस तरह बच्चों को इस गंभीर बीमारी से बचाया जा सकता है और इसके लक्षण व उपचार क्या हैं.

इस जांच से हो सकता है हीमोफीलिया से बचाव : सीएमएचओ कार्यालय के ब्लड सेल फील्ड ऑफिसर पवन कुमार ने बताया कि हीमोफीलिया माता-पिता से उनके बच्चों को होने वाली अनुवांशिक बीमारी है. इस बीमारी से बचाव का एकमात्र और सही तरीका शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों की आनुवांशिकी जांच है. शादी से पहले लड़का-लड़की की हैपेटाइटिस बी, सी, सिफ्लिस टेस्ट आदि जांच करानी चाहिए. जांच में यदि लड़का-लड़की दोनों माइनर हैं, तो उनके बच्चों के हीमोफीलिया मेजर होने की पूरी संभावना रहती है. ऐसे में इस तरह के लड़का-लड़की की शादी कराने से बचना चाहिए.

इसे भी पढ़ें-दौसाः हीमोफीलिया बीमारी की कार्यशाला का आयोजन, रक्तदान के लिए किया प्रेरित

क्या हीमोफीलिया ? : पवन कुमार ने बताया कि 5,000 की आबादी पर एक व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है. इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में खून का थक्का जमाने वाले फैक्टर 8 और फैक्टर 9 या फिर दोनों की कमी हो जाती है. इससे बच्चे के खून का थक्का नहीं जमता. इससे बच्चों के शरीर के भीतरी और बाहरी हिस्सों में खून का रिसाव होने लगता है. खून का थक्का नहीं जमने की वजह से यह रिसाव आसानी से बंद नहीं होता. ऐसे में रिसाव की वजह से बच्चे के हाथ-पैर और शरीर के अन्य जोड़ खराब होने लगते हैं. इस बीमारी से होने वाले रिसाव को रोकने के लिए बच्चों को ऊपर से फैक्टर 8 व 9 बॉडी में इंजेक्ट किया जाता है. पवन कुमार ने बताया कि जिले में हीमोफीलिया से ग्रस्त 42 बच्चे हैं. हीमोफीलिया ग्रसित बच्चों को औसतन एक माह में दो बार फैक्टर लगाए जाते हैं. कई बच्चों को तीन बार भी फैक्टर लगाने पड़ जाते हैं. इसके लिए हमारे पास मरीजों की संख्या के अनुपात में पर्याप्त मात्रा में फैक्टर उपलब्ध हैं.

WORLD HAEMOPHILIA DAY
हीमोफीलिया के लक्षण

रक्तदान के लिए जागरूक : फील्ड ऑफिसर पवन कुमार ने बताया कि इस बीमारी में बच्चों के शरीर में खून की कमी भी हो जाती है. ऐसे में समय-समय पर बच्चों को ब्लड चढ़ाना पड़ता है. बच्चों के लिए ब्लड बैंक में रक्त की कमी ना हो इसके लिए लोगों को जागरूक कर के समय-समय पर रक्तदान शिविर लगवाए जाते हैं. फील्ड ऑफिसर पवन कुमार ने बताया कि हम समय-समय पर कार्यशाला आयोजित कर पीड़ित बच्चों के माता पिता को इस बीमारी के लक्षण व उपचार के लिए जागरूक करते रहते हैं. साथ ही लोगों को शादी से पहले लड़का-लड़की की अनुवांशिकी जांच के लिए भी जागरूक किया जाता है, ताकि भावी पीढ़ी को इस तरह की अनुवांशिक बीमारियों से सुरक्षित रखा जा सके.

भरतपुर. कुछ बीमारियां बच्चों को सौगात में मिल रही हैं. हीमोफीलिया बीमारी ऐसी ही अनुवांशिक बीमारी है, जिससे बच्चे को जीवन भर परेशान होना पड़ता है. यदि शादी से पहले लड़का और लड़की की कुछ जरूरी स्वास्थ्य जांच करा ली जाए, तो भावी पीढ़ी को इस अनुवांशिक बीमारी से बचाया जा सकता है. भरतपुर जिले के 42 बच्चे इस गंभीर बीमारी की चपेट में हैं. विश्व हीमोफीलिया दिवस पर जानते हैं कि किस तरह बच्चों को इस गंभीर बीमारी से बचाया जा सकता है और इसके लक्षण व उपचार क्या हैं.

इस जांच से हो सकता है हीमोफीलिया से बचाव : सीएमएचओ कार्यालय के ब्लड सेल फील्ड ऑफिसर पवन कुमार ने बताया कि हीमोफीलिया माता-पिता से उनके बच्चों को होने वाली अनुवांशिक बीमारी है. इस बीमारी से बचाव का एकमात्र और सही तरीका शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों की आनुवांशिकी जांच है. शादी से पहले लड़का-लड़की की हैपेटाइटिस बी, सी, सिफ्लिस टेस्ट आदि जांच करानी चाहिए. जांच में यदि लड़का-लड़की दोनों माइनर हैं, तो उनके बच्चों के हीमोफीलिया मेजर होने की पूरी संभावना रहती है. ऐसे में इस तरह के लड़का-लड़की की शादी कराने से बचना चाहिए.

इसे भी पढ़ें-दौसाः हीमोफीलिया बीमारी की कार्यशाला का आयोजन, रक्तदान के लिए किया प्रेरित

क्या हीमोफीलिया ? : पवन कुमार ने बताया कि 5,000 की आबादी पर एक व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है. इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में खून का थक्का जमाने वाले फैक्टर 8 और फैक्टर 9 या फिर दोनों की कमी हो जाती है. इससे बच्चे के खून का थक्का नहीं जमता. इससे बच्चों के शरीर के भीतरी और बाहरी हिस्सों में खून का रिसाव होने लगता है. खून का थक्का नहीं जमने की वजह से यह रिसाव आसानी से बंद नहीं होता. ऐसे में रिसाव की वजह से बच्चे के हाथ-पैर और शरीर के अन्य जोड़ खराब होने लगते हैं. इस बीमारी से होने वाले रिसाव को रोकने के लिए बच्चों को ऊपर से फैक्टर 8 व 9 बॉडी में इंजेक्ट किया जाता है. पवन कुमार ने बताया कि जिले में हीमोफीलिया से ग्रस्त 42 बच्चे हैं. हीमोफीलिया ग्रसित बच्चों को औसतन एक माह में दो बार फैक्टर लगाए जाते हैं. कई बच्चों को तीन बार भी फैक्टर लगाने पड़ जाते हैं. इसके लिए हमारे पास मरीजों की संख्या के अनुपात में पर्याप्त मात्रा में फैक्टर उपलब्ध हैं.

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हीमोफीलिया के लक्षण

रक्तदान के लिए जागरूक : फील्ड ऑफिसर पवन कुमार ने बताया कि इस बीमारी में बच्चों के शरीर में खून की कमी भी हो जाती है. ऐसे में समय-समय पर बच्चों को ब्लड चढ़ाना पड़ता है. बच्चों के लिए ब्लड बैंक में रक्त की कमी ना हो इसके लिए लोगों को जागरूक कर के समय-समय पर रक्तदान शिविर लगवाए जाते हैं. फील्ड ऑफिसर पवन कुमार ने बताया कि हम समय-समय पर कार्यशाला आयोजित कर पीड़ित बच्चों के माता पिता को इस बीमारी के लक्षण व उपचार के लिए जागरूक करते रहते हैं. साथ ही लोगों को शादी से पहले लड़का-लड़की की अनुवांशिकी जांच के लिए भी जागरूक किया जाता है, ताकि भावी पीढ़ी को इस तरह की अनुवांशिक बीमारियों से सुरक्षित रखा जा सके.

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