वाराणसी: वाराणसी की विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का भव्य आगाज हो गया. हर साल भादप्रद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी के दिन से इसका शुभारंभ होता है. आज से अगले तीस दिन रामनगर बन जाएगा त्रेता युग. क्षीरसागर की दिव्य झांकी से रामलीला का श्री गणेश होता है. आज ही के दिन रावण का जन्म होता है. इस अद्भुत लीला ने अब तक 190 साल का सफर तय कर लिया है.
काशी नरेश ने 1836 में शुरू कराई थी रामलीला: काशी नरेश की उपस्थिति में रामलीला का आयोजन होता है. नगर निगम से लेकर दुर्ग प्रशासन तक इस लीला को सफल बनाने में जुटा रहता है. यह रामलीला साल 1836 में प्रारंभ हुई थी. उस समय के तत्काल काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने इस रामलीला को प्रारंभ कराया था. तब से लेकर यह रामलीला आज तक चली आ रही है. 40 दिनों की ट्रेनिंग के बाद इस लीला में पात्रों को मंचन करने की अनुमति मिलती है.
बिना लाइट बिना साउंड के रामलीला का मंचन: काशी की रामलीला आज भी बिना लाइट और बिना साउंड के निभाया जाता है, इस लीला को आज भी पेट्रोमैक्स की रोशनी में संपन्न की जाती है. इस लीला को देखने के लिए देशभर से साधु संत सन्यासी जुटते हैं. जो पूरे एक महीने तक काशी में रहकर इस लीला का आनंद लेंगे.
यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है रामलीला: बता दें कि, रामनगर की रामलीला को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में स्थान मिला हुआ है. इसी से इसकी भव्यता और प्राचीन विरासत का अंदाजा लगाया जा सकता है. रामनगर की रामलीला का आयोजन 10 किलोमीटर के परिक्षेत्र में किया जाता है. जिसके चलते इसे देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी रामलीला के रूप में मान्यता मिली हुई है.