देहरादून: रिस्पना नदी के आसपास इन दिनों हलचल बढ़ गई है. दरअसल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों ने इस नदी के लिए सरकारी सिस्टम की परवाह को एकाएक बढ़ा दिया है. ऐसे में अब नदी को अतिक्रमण मुक्त भी किया जा रहा है. इसकी सफाई के लिए भी कार्य योजना तैयार हो रही है.
रिस्पना नदी कभी थी देहरादून की लाइफ लाइन: खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रिस्पना की इस बदहाली से रूबरू हो चुके हैं. इसके बाद राज्य सरकार भी इस पर एक बड़ा अभियान चला चुकी है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसके बावजूद प्रदूषित रिस्पना की दशा में कोई बदलाव नहीं आया. विश्व पर्यावरण दिवस पर रिस्पना नदी की गंदगी को लेकर एक खास रिपोर्ट.
नाले में तब्दील हुई रिस्पना नदी: देहरादून की रिस्पना नदी में आज पानी की मौजूदगी नहीं दिखाई देती है. नदी के नाम पर ना तो इसमें पर्याप्त पानी है और ना ही इसका आकार नदी की तरह विशाल दिखाई देता है. मौजूदा स्थिति के लिहाज से कहा जाए तो यह अब रिस्पना नाला बन चुका है. इस नाले में सिवाय कूड़ा करकट और गंदगी के कुछ नहीं है. भगत सिंह कॉलोनी क्षेत्र से गुजर रही इस नदी की गंदगी इसके हालात को अच्छी तरह से बयां कर रही है. लोगों ने अपने घरों की गंदगी को नदी में डाल कर अपनी पर्यावरण को लेकर गैर जिम्मेदारी का बखूबी परिचय दिया है. साफ है कि लोग नदी की धारा को बनाए रखने और नदी को प्रदूषण मुक्त रखने को लेकर बिल्कुल भी जागरूक नहीं हैं. वह बात अलग है कि पर्यावरण दिवस पर लोगों की नदी में उतरकर गंदगी साफ करने की तस्वीर बनाना आम बात है.
लाखों खर्चने के बाद भी नदी नहीं बन पाई रिस्पना: ऐसा नहीं है कि रिस्पना की इस हालत को सरकार ना जानती हो. उत्तराखंड सरकार के पास नदी के प्रदूषण की हर जानकारी और आंकड़े मौजूद हैं. इतना ही नहीं इस नदी की बदहाली के बारे में इसके पास रहने वाली एक स्कूली छात्रा बाकायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी कह चुकी है. नतीजा यह रहा कि तत्कालीन सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नदी को साफ करने के लिए रिस्पना से ऋषिपर्णा का एक स्लोगन भी दिया. उस दौरान नदी को साफ करने के लिए कई अभियान भी चलाए गए. लेकिन यह अभियान ज्यादा दिनों तक नहीं टिके और यह नदी न केवल अपना स्वरूप खोती गई, बल्कि इसके पानी की गुणवत्ता भी गिरती चली गई. अब एक बार फिर विश्व पर्यावरण दिवस पर इस नदी की स्वच्छता को लेकर अभियान चलते हुए दिखाई देंगे. इसमें लाखों रुपया भी खर्च किया जाएगा लेकिन यह सब सिर्फ कुछ दिन की ही बात होगी. फिर एक बार इस नदी को इसी के हाल पर छोड़ दिया जाएगा. हालांकि इस मामले पर लोग अपनी जागरूकता को नजरअंदाज करते हुए सरकारी सिस्टम को ज्यादा कोसते हुए नजर आते हैं.
रिस्पना के तटों से हटाया जा रहा है अतिक्रमण: बात रिस्पना नदी की स्वच्छता तक ही सीमित नहीं है. इसमें मौजूद गंदगी का अंबार तो इस नदी के लिए एक बड़ी चिंता है ही, इसके अलावा इस पर हो रहा अतिक्रमण भी नदी के स्वरूप को बिगाड़ रहा है. देहरादून में जेसीबी से घरों को तोड़ने की इन तस्वीरों ने पिछले दिनों ना केवल मलिन बस्तियों में हड़कंप मचाए रखा, बल्कि उत्तराखंड की राजनीति में भी चर्चा का सबब बन गई. दरअसल देहरादून नगर निगम, जिला प्रशासन के साथ मिलकर रिस्पना नदी के किनारों पर एक अभियान के तहत कार्रवाई कर रहा है.
अतिक्रमण और प्रदूषण ने बिगाड़ी रिस्पना की सूरत: यह कार्रवाई उन लोगों पर है जिन्होंने रिस्पना नदी के स्वरूप को बदलने का काम किया है. यानी नदी किनारों पर अतिक्रमण करते हुए नदी के प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ की है. हालांकि नगर निगम या जिला प्रशासन की तरफ से रिस्पना नदी की चिंता या अपनी सक्रियता के कारण ऐसा नहीं किया गया है, बल्कि यह कार्रवाई नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों के क्रम में हो रही है. देहरादून शहर के बीचों-बीच से बहने वाली इस नदी के दोनों तरफ हजारों लोगों ने अपने आशियाने बना लिए हैं. इस वजह से नदी की चौड़ाई कई जगह पर नाले में तब्दील हो गई. हैरानी की बात यह है कि देहरादून की इस मुख्य रिस्पना नदी पर कब्जे होते रहे और राज्य सरकारें और सरकारी सिस्टम आंख बंद किए रहे. अभी यह कार्रवाई नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के बाद हो पा रही है.
ये है रिस्पना की तबाही का कारण!
- रिस्पना नदी पर अतिक्रमण करने वाले 525 भवन किए गए हैं चिन्हित
- रिकॉर्ड के अनुसार 89 मकान नगर निगम की भूमि पर मौजूद हैं
- यहां कुल चिन्हित 12 मकान नगर पालिका मसूरी क्षेत्र में मौजूद हैं
- 415 चिन्हित मकानों को एमडीडीए द्वारा नोटिस दिया गया है
- 09 मकानों को राज्य सरकार की भूमि पर बनाया गया है
नदी पर बना दिए मकान: मलिन बस्ती से जुड़े अधिनियम के कारण 2016 से पहले के निर्माण सरकारी कार्रवाई से दूर रखे गए हैं. इसके बाद बनाए गए भवनों पर चिन्हीकरण के बाद कार्रवाई हो रही है. लेकिन नई परेशानी यह है कि इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने यहां किसी और से घर खरीद कर रहना शुरू किया है. एक तरह से देखा जाए तो यह लोग बड़ी ठगी का शिकार हुए हैं. इसके लिए प्रशासन और निगम भी कम जिम्मेदार नहीं हैं, क्योंकि यदि अतिक्रमण पर पहले ही चाबुक चल गया होता, तो शायद यह लोग इस तरह अवैध जमीन पर बने घरों को खरीदने की हिम्मत नहीं करते. हालांकि अधिकारी इस बार नियमतः अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ अभियान चलाकर कड़ी कार्रवाई की बात कह रहे हैं.
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