अजमेर. शरीर में रक्त की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. रक्त की कमी से कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं. इतना ही नहीं सर्जरी या दुर्घटना के दौरान भी अधिक रक्त बहने से रोगी का जीवन संकट में आ जाता है. कई बार रक्त के अभाव में रोगी की मौत हो जाती है. हालांकि, अस्पतालों में ब्लड बैंक होते हैं जो समय पर रोगी को रक्त देकर उसकी जान बचाने में सहायक होते हैं, लेकिन इन ब्लड बैंक में रक्त की उपलब्धता रक्तदाताओं पर निर्भर होती है. कई बार ब्लड बैंक में भी रक्त की कमी हो जाती है. इस कारण समय पर रोगी को खून नहीं मिल पाता है. रक्त के अभाव में रोगी की जान पर बन आती है. ऐसे समय में रक्तदाता ही रोगी के लिए फरिश्ता होते हैं. देश और दुनिया में ऐसे कई रक्तदाता हैं जो नियमों के अनुसार रक्तदान करते रहते है और अपना जीवन अच्छे से जी रहे हैं. ईटीवी भारत ऐसे ही रक्तदाताओं के अनुभव को साझा कर रहा है ताकि इनके जीवन और अनुभव से लोग प्रेरित और जागरूक हो सकें.
सोम रत्न आर्य अजमेर की तीन दर्जन से अधिक समाज सेवी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता भी हैं. वो 70 वर्ष की आयु में भी ऊर्जा के साथ सक्रिय रहते हैं. आर्य बताते हैं कि इस आयु में भी वे निरोगी हैं. उन्हें बीपी या शुगर की कोई बीमारी नहीं है. संतुलित भोजन, लोगों की मदद करना और रक्तदान उनके निरोगी होने के सबसे अहम कारण हैं. समाजसेवी सोम रत्न आर्य अपने जीवन में 82 यूनिट रक्तदान कर चुके हैं. आर्य बताते हैं कि 30 मार्च 1991 को अपने जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने पहली बार पूर्ण तरह से रक्तदान किया था. इस दिन राजस्थान दिवस भी था.
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ऐसे बदला जीवन : अपने अनुभव को समझा करते हुए आर्य बताते हैं कि 1990 से पहले वह मुंबई रहा करते थे. उनके भाई डॉ. वीर रत्न आर्य अजमेर रहते थे. बाईपास सर्जरी के लिए उनके बड़े भाई मुंबई आए हुए थे. अप्रैल 1990 में सर्जरी के दौरान खून की कमी हुई. चिकित्सकों ने 8 यूनिट ब्लड की व्यवस्था करने के लिए कहा. परिचित और रिश्तेदारों को देखकर वह भी ब्लड देने के लिए तैयार हो गए. पहली बार ब्लड देने में वह झिझक रहे थे, लेकिन मन को मनाकर उन्होंने ब्लड दिया मगर 150 एमएल ब्लड निकलने के बाद उन्हें चक्कर आने लगे. लिहाजा प्रक्रिया रोक दी गई. उन्हें बताया गया कि उनका रक्त पूरा नहीं होने के कारण किसी के काम नहीं आ सकता, इसलिए रक्त को फेंकना पड़ेगा. बस इन्हीं शब्दों ने सोम रत्न आर्य के जीवन को बदल कर रख दिया. उन्होंने अपने को रक्तदाता बनाने का प्रण लिया और उनके जज्बे ने उन्हें रक्तदाता बना भी दिया. आर्य सैकड़ों लोगों को रक्तदान करने के लिए प्रेरित और जागरूक कर चुके हैं. इसके लिए वह कई बार जयपुर और अजमेर में कई संस्थाओं से सम्मानित भी हो चुके हैं.
सेवा भाव के मिले संस्कार : आर्य बताते हैं कि जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में पहली बार देहदान हुआ था. उनके बड़े भाई वेद रत्न के देह को दान किया गया था. 2010 में सोम रत्न आर्य खुद अपनी देह दान की घोषणा कर चुके हैं. बकायदा अपनी घोषणा को प्रिंट करके उन्होंने अपने घर के ड्राइंग रूम में लगा रखा है, ताकि उनके परिजनों को भी उनकी यह घोषणा ध्यान रहे. सोम रत्न आर्य बताते हैं कि शहर में जहां भी रक्तदान शिविर आयोजित होता है वह लोगों को प्रेरित और जागरूक करने के लिए वहां जरूर जाते हैं.
रक्तदान से हैं फिट : सोम रत्न आर्य बताते हैं कि उनकी उम्र 70 पार हो चुकी है, लेकिन उन्हें आमतौर पर होने वाली बीमारियां ब्लड प्रेशर और शुगर नहीं है. आर्य बताते हैं कि 82 बार रक्तदान करने के बाद भी उनमें कोई शारीरिक कमजोरी या बीमारी नहीं हुई. अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि पहली बार रक्तदान करने से डर लगता है, लेकिन रक्तदान करने के 2 घंटे बाद ही शरीर में नई ऊर्जा का संचार होने का अनुभव होता है. रक्तदान करने के 26 से 36 घंटे में शरीर में रक्त की पूर्ति हो जाती है. रक्तदान करने के लिए शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए और ब्लड शुगर और हाइपर ब्लड प्रेशर भी नहीं होना चाहिए. ब्लड देने वाले रक्तदाता का वजन 48 किलोग्राम से कम नहीं होना चाहिए. साथ ही उसकी उम्र 18 से 60 वर्ष तक के बीच होना आवश्यक है.
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57 वर्ष की आयु में 68 बार कर चुके हैं रक्तदान : कई रक्तदाता हैं जिनके प्रयासों से खून की कमी से जूझ रहे लोगों को रक्त की पूर्ति हुई है. कई लोगों का जीवन भी बचा है. ऐसे ही रक्तदाता अजमेर के फॉयसागर रोड निवासी मुकेश कर्णावट हैं. मुकेश रेलवे विभाग में अकाउंट सेक्शन में अधिकारी हैं. 57 वर्ष की आयु तक मुकेश 68 बार रक्तदान कर चुके हैं. इसके अलावा मुकेश समाज सेवा से भी जुड़े हुए हैं. कई सामाजिक संस्थाओं के अलावा जैन समाज की कई संस्थानों में भी वह सक्रिय हैं. फॉरेन संस्थानों में रहकर भी मुकेश कर्णावट लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित और जागरूक करते रहते हैं. सोशल मीडिया के माध्यम से प्रत्येक दिन लोगों को रक्तदान करने का मैसेज भेजते हैं. वहीं, 24 घंटे 'O' नेगेटिव ब्लड ग्रुप की पूर्ति के लिए तत्पर रहते हैं.
19 वर्ष की आयु में नाना को दिया था रक्त : बातचीत में मुकेश कर्णावट ने बताया कि 1987 में उनके नाना तेजमल सुराणा अस्पताल में भर्ती थे. ब्लड की कमी होने के कारण चिकित्सकों ने परिजनों को रक्त देने के लिए कहा. परिचित रिश्तेदार रक्त देने के लिए कतरा रहे थे. नाना के जीवन को बचाने के लिए 19 वर्ष की आयु में उन्होंने पहली बार रक्त दिया. उस वक्त से ही मुकेश कर्णावट ने रक्तदाता बनने का मानस बना लिया. मुकेश कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़े और कई रक्तदान शिविर लगाए. मुकेश कर्णावट बताते हैं कि जैन सोशल इंटरनेशनल फेडरेशन के ब्लड डोनेशन कमेटी के वह चेयरमैन रह चुके हैं. उनके कार्यकाल में देशभर में एक लाख यूनिट ब्लड डोनेट करवाया गया था. इस प्रयास के लिए उन्हें मुंबई में सम्मानित भी किया गया था. कर्णावट बताते हैं कि रक्तदान करने से उन्हें कोई शारीरिक समस्या नहीं हुई, बल्कि रक्तदान करने से वह फीट हैं. उन्होंने बताया कि 1992 से लोगों को रक्त नेत्र और देहदान के लिए वह प्रेरित और जागरूक कर रहे हैं.
इसलिए मनाया जाता है विश्व रक्तदाता दिवस : विश्व रक्तदाता दिवस पहली बार में 2005 में मनाया गया था. इसे 58वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में शुरू किया गया था. कार्ल लैंडस्टीनर की जन्म जयंती के उपलक्ष में विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है. कार्ल लैंडस्टीनर का जन्म 14 जून 1868 को हुआ था. उन्होंने ब्लड ग्रुप एबीओ सिस्टम की खोज करके स्वास्थ्य विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.