रायपुर : नवा रायपुर स्थित अरण्य भवन में शनिवार को गिद्ध संरक्षण पर एक दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन किया गया. छत्तीसगढ़ वन विभाग के इस कार्यक्रम में शोधकर्ता, छात्र, और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए, जहां गिद्ध संरक्षण के कई पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई.
गिद्ध संरक्षण की दिशा में नई पहल : कार्यशाला में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और बर्ड काउंट इंडिया जैसे जाने माने संगठनों के एक्सपर्ट्स ने गिद्धों की वर्तमान स्थिति, उनकी संख्या में गिरावट की वजह और उनके लिए अनुकूल वातावरण बनाने के उपायों पर चर्चा की. गिद्ध संरक्षण के वर्कशॉप में रिसर्चर्स और स्टूडेंट्स ने गिद्ध संरक्षण के महत्व और उससे संबंधित चैलेंजेस पर चर्चा किया. इस वर्कशॉप में न केवल वल्चर कंर्जर्वेशन के प्रयासों को प्रोत्साहन दिया गया, बल्कि सभी प्रतिभागियों को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया.
गिद्धों की संख्या से जुड़े आंकड़े किए पेश : इस दौरान शोधकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ में गिद्धों की संख्या से जुड़े आंकड़े पेश किए. इस दौरान इंद्रावती टाइगर रिजर्व और अचानकमार टाइगर रिजर्व के प्रयासों की सराहना की गई, जहां गिद्ध संरक्षण के लिए वल्चर रेस्टोरेंट और वल्चर सेफ जोन जैसी पहल की गई है. इसके लिए वन विभाग, पशु चिकित्सा विभाग और ड्रग कंट्रोल विभाग के साथ समन्वय स्थापित करेगा.
गिद्ध संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ फॉरेस्ट डिपार्टमेंट नागरिकों की भावनाओं को गिद्धों से जोड़ने का प्रयास करेगा. ताकि वे गिद्धों के संरक्षण को लेकर संवेदनशील हों. बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य में व्हाईट रम्पड वल्चर को फिर से बसाने के प्रयास किए जाएंगे. इसी तरह वन विभाग, पशु चिकित्सा विभाग और ड्रग कंट्रोल विभाग के साथ समन्वय स्थापित करेगा, ताकि पालतू जानवरों के उपचार के दौरान उपयोग किए जाने वाले घातक दवाईयों पर बैन लगाया जा सके. : प्रेम कुमार, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव)
स्कूलों और कॉलेजों में होगा जागरूकता कार्यक्रम : गिद्ध संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ के स्कूलों और कॉलेजों में भी जागरूकता कार्यक्रम चलाने का प्लान है. ताकि छात्रों को प्रकृति और गिद्ध संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके. संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करने के लिए वन विभाग एनजीओ, रिसर्चर्स और अन्य संबंधित संगठनों के साथ कोऑर्डिनेट करेगा. गिद्धों के आवास और उनकी एक्टिविटी को समझने के लिए एक निगरानी प्रणाली विकसित की जाएगी और उनका जियोटैगिंग किया जाएगा.
इस कार्यशाला में वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, शोधार्थी और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से जुड़े एक्सपर्ट्स ने अपने अनुभव साझा किए. इस दौरान सभी ने गिद्ध संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए.