लखनऊ: ढाई वर्ष से यूपी में स्थायी DGP नहीं नियुक्त किया गया है. इस अवधि में डीजीपी पद के लिए लगातार 4 IPS अफसरों को अस्थायी डीजीपी ही बनाया गया है. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. PIL दाखिल कर आरोप लगाया गया है कि यूपी समेत कुछ अन्य राज्य सुप्रीम कोर्ट के उस दिशा निर्देश को दरकिनार कर रहे है, जो पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की पीआईएल में दिए गए थे.
ऐसे में यह जानना रोचक हो जाता है कि देश भर के टॉप आईपीएस अफसर यूपी में होने के बावजूद स्थायी डीजीपी क्यों नहीं मिल सका है? अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इस नई पीआईएल पर संज्ञान लिया है तो सरकार क्या जवाब देगी?
डीएस चौहान बने थे पहले अस्थायी डीजीपी: यूपी में स्थायी डीजीपी क्यों नहीं मिल पा रहा है? यदि इसका जवाब जानना है तो सबसे पहले उस घटनाक्रम को याद करना होगा, जो 882 दिन पहले घटा था. 11 मई 2022 को यूपी सरकार ने तत्कालीन डीजीपी मुकुल गोयल को यह कह कर हटा दिया था कि उन्होंने शासकीय कार्यों की अवहेलना की और विभागीय कार्यों में रुचि नहीं ले रहे.
सरकार ने उनके स्थान पर अस्थायी तौर पर तत्कालीन डीजी इंटेलिजेंस डीएस चौहान को डीजीपी बनाया था. नियमानुसार सरकार को यूपीएससी को डीजीपी के चयन के लिए प्रस्ताव भेजना था. ऐसे में सरकार ने नए डीजीपी के लिए यूपीएससी को प्रस्ताव भेजा, जिसमें डीएस चौहान समेत अन्य कई वरिष्ठ आईपीएस अफसरों के नाम थे.
मुकुल गोयल को लेकर यूपीएससी व योगी सरकार में ठनी: सरकार आश्वस्त थी कि यूपीएससी प्रस्ताव पर मुहर लगाएगी और तीन वरिष्ठ अफसरों का पैनल सरकार को भेज देगी जिसमें डीएस चौहान का भी नाम शामिल होगा. लेकिन, आयोग ने उस प्रस्ताव को बैरंग वापस भेजते हुए सरकार से मुकुल गोयल को पद मुक्त करने का ठोस कारण पूछ लिया था. उसके बाद सरकार ने न जवाब भेजा ना ही स्थायी डीजीपी के लिए प्रस्ताव.
इसके बाद यूपी सरकार बिना प्रस्ताव भेजे मौजूदा डीजीपी के रिटायरमेंट होने के बाद अपने अनुसार अस्थायी तौर पर डीजीपी तैनात करती आ रही है. सरकार जानती थी यदि वह प्रस्ताव भेजेगी तो एक बार फिर मुकुल गोयल को हटाने का कारण पूछ लिया जाएगा. ऐसे में जब फरवरी 2024 में मुकुल गोयल रिटायर हुए तो कयास लगाए गए कि अब प्रस्ताव भेज दिया जाएगा. लेकिन, उसमें भी सरकार के सामने बड़ा पेंच आकर खड़ा हो गया.
इन 4 अफसरों को बनाया गया अस्थायी डीजीपी
- 1988 बैच के आईपीएस डीएस चौहान को 13 मई 2022 से 31 मार्च 2023
- 1988 बैच के आरके विश्वकर्मा को 1 अप्रैल 2023 से 31 मई 2023
- 1988 बैच के आईपीएस विजय कुमार को 1 जून से 31 जनवरी 2024
- अब डीजीपी प्रशांत कुमार को 1 फरवरी 2024 में बनाया गया.
मुकुल गोयल के रिटायर होने के बाद भी कम नहीं हुई मुसीबतें: वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी बताते हैं कि मुकुल गोयल के रिटायर होने के बाद यह तय था कि यूपीएससी सरकार से अब उन्हें हटाए जाने को लेकर सवाल नहीं पूछेगी लेकिन, अब डर इस बात का था कि, सरकार ने जिन्हें अस्थायी डीजीपी बनाया है यानी 1990 बैच के आईपीएस प्रशांत कुमार का नाम यूपीएससी द्वारा भेजे जाने वाले पैनल में होगा या नहीं.
क्योंकि, यदि यूपीएससी वरिष्ठता क्रम के तौर पर तीन अफसरों के नाम का पैनल वापस सरकार को भेजती है तो उसमे प्रशांत कुमार का नाम होने की संभावना न के ही बराबर है. अब ऐसा क्यों है इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार यूपीएससी डीजीपी का चयन कैसे करती है और फिर सरकार उसका किस तरह पालन करती है?
कैसे होती है DGP की नियुक्ति: किसी भी राज्य के पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी या पुलिस फोर्स के मुखिया की नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार ऐसे एडीजी रैंक से ऊपर के उन सभी आईपीएस अधिकारियों के नाम संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को भेजती है, जिनका कार्यकाल कम से कम छह महीने का बचा हुआ होता है और वह 30 वर्ष आईपीएस सेवा पूरी कर चुका हो. आयोग में यूपीएससी के चैयरमैन या फिर सदस्य इम्पैनलमेंट कमेटी के अध्यक्ष होते हैं.
उनके अलावा भारत सरकार के गृह सचिव या विशेष सचिव, राज्य के मुख्यसचिव, वर्तमान डीजीपी व केंद्रीय बल का कोई एक चीफ शामिल होता है. आयोग सभी आईपीएस अफसरों की योग्यता देख कर तीन सबसे वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारियों का एक पैनल राज्य सरकार को वापस भेजता है.
यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा निर्देश बनाए थे उसके अनुसार, डीजीपी की नियुक्ति कम से कम दो वर्ष के लिए होती है. डीजीपी को हटाने की प्रक्रिया सर्विस रूल्स के उल्लंघन या क्रिमिनल केस में कोर्ट का फैसला आने, भ्रष्टाचार साबित होने पर शुरू होती है या डीजीपी को तब हटाया जा सकता है जब वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो.
आयोग को प्रस्ताव भेजा तो प्रशांत कुमार का डीजीपी बने रहना मुश्किल: वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान शुक्ला कहते हैं कि, वर्तमान हालात में सरकार के सामने सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश और यूपीएससी द्वारा भेजे जाने वाला पैनल ही सबसे बड़ी समस्या है. सरकार यदि अब लंबे समय तक अस्थायी तौर पर डीजीपी तैनात करती रहती है तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आवमनना हो रही है जिसको लेकर अभी जवाब तलब हुआ ही है.
यदि दिशा निर्देशों को मानते हुए यूपीएससी को प्रस्ताव भेजती है तो यह तय है कि वर्तमान अस्थायी डीजीपी के तौर पर आसीन प्रशांत कुमार का डीजीपी बने रहना मुश्किल है. वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान शुक्ला का यह तर्क किस मायने में सही बैठ रहा है यह जानने के लिए इन अफसरों और उनकी वरिष्ठता के विषय में जानते हैं जो डीजीपी बनने के दावेदार हैं.
वरिष्ठता सूची में जानिए कौन है सबसे ऊपर: वर्तमान में यदि यूपी सरकार को स्थायी डीजीपी के लिए यूपीएससी को प्रस्ताव भेजती है तो नियमानुसार उसमे 12 आईपीएस अफसरों के नाम शामिल होंगे. इसमें यूपीएससी सरकार को 3 उन वरिष्ठ अफसरों के नाम डीजीपी पद के लिए वापस भेजेगी जिनका कार्यकाल 6 माह या उससे अधिक बचा होगा.
नियमानुसार यूपीएससी जिन नाम को वापस भेजेगा उसमें वरिष्ठता के आधार पर 1989 बैच के अफसर आशीष गुप्ता, 1989 ही बैच के पीवी रामाशास्त्री और 1990 बैच के संदीप सालुंके शामिल हैं. इन सभी अफसरों का कार्यकाल 6 माह बचा हुआ है. जबकि मौजूदा अस्थायी डीजीपी प्रशांत कुमार वरिष्ठता सूची में 9वें नंबर पर आते हैं. ऐसे में सीएम योगी आदित्यनाथ के सबसे करीबी प्रशांत कुमार डीजीपी की रेस में दूर-दूर तक नहीं रहेंगे.
क्या कहते हैं प्रकाश सिंह: पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह के मुताबिक, कई सरकारें अपने हिसाब से डीजीपी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को भी दरकिनार कर रही हैं, जबकि साफ तौर पर कोर्ट ने कहा है कि यूपीएससी द्वारा भेजे गए तीन वरिष्ठ अफसरों में से ही राज्य सरकार को डीजीपी चुनना होगा. दरअसल राज्य सरकारें इसका पालन करना ही नहीं चाहतीं. पुलिस सुधार के लिए जरूरी है कि पुलिस मुखिया के चयन में राजनीति नहीं आनी चाहिए लेकिन, ऐसा होता नहीं है. सरकारे जाति धर्म और अपने हिसाब से काम करने वाले अफसर को डीजीपी बनाने में लगी हुई हैं.
ये भी पढ़ेंः न दशहरा-न दीवाली, थाने में ही त्योहार मनाएंगे पुलिस वाले, 8 अक्तूबर से 8 नवंबर तक की छुट्टियां कैंसिल