नई दिल्ली: कोरिया इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (KOICA) ने भारत की व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए मीस्टर स्कूल पाठ्यक्रम शुरू करने का फैसला किया है. कोरिया पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार KOICA ने मंगलवार को घोषणा की कि वह भारत की व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से एक बड़े पैमाने पर पहल शुरू करने के लिए 2027 तक 2 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी.
रिपोर्ट में कहा गया है, "यह दक्षिण कोरिया और भारत के बीच पहला ग्रांट-बेस्ड डेवलपमेंट कोऑपरेशन प्रोजेक्ट है, जो भारत सरकार के 'मेक इन इंडिया' अभियान के साथ संरेखित है. इसका उद्देश्य देश के मैन्युफैक्चुरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना है." इस पहल के केंद्र में भारत की माध्यमिक व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली में मेक्ट्रोनिक्स की शुरूआत है.
बता दें कि मेक्ट्रोनिक्स - मैकेनिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर विज्ञान को मिलाकर एक मल्टी डिसिप्लिनरी क्षेत्र है. यह दक्षिण कोरिया के मीस्टर हाई स्कूलों की आधारशिला रहा है, जिसे उभरते उद्योगों की मांगों को पूरा करने के लिए तैयार किया गया है. यह पायलट कार्यक्रम भारतीय छात्रों को अत्याधुनिक स्किल हासिल करने का मौका करेगा और उन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार करेगा.
दक्षिण कोरिया को ग्लोबल स्किल पावर हाउस में बदलने में अपनी सफलता के लिए प्रसिद्ध मीस्टर मॉडल उद्योग-ट्रेनिंग और कैरियर केंद्रित शिक्षा पर जोर देता है. भारत में इसकी शुरूआत देश की आर्थिक वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को आगे बढ़ाने के लिए स्किल वर्कफोर्स की बढ़ती आवश्यकता को संबोधित करने में एक महत्वपूर्ण क्षण को चिह्नित करेगी.
कोरिया पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार KOICA मार्च में भारत की नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके परियोजना को अंतिम रूप देने की योजना बना रहा है. सहयोग में भारत में एक नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एक एसोसिएट डिग्री प्रोग्राम की स्थापना भी शामिल होगी साथ ही साझेदारी की प्रगति के रूप में अतिरिक्त पहल की पहचान की जाएगी.
रिपोर्ट में KOICA के एक अधिकारी के हवाले से कहा गया है, "यह पहल एक शिक्षा मॉडल के निर्यात से परे है. यह व्यावसायिक शिक्षा में दक्षिण कोरिया की विशेषज्ञता और भारत की महत्वाकांक्षी विनिर्माण विकास रणनीतियों के अभिसरण का प्रतिनिधित्व करता है. हम भारत के साथ एक स्थायी साझेदारी बनाने के लिए तत्पर हैं."
मीस्टर स्कूल कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
मैकिन्जी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की 2012 की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण कोरियाई कॉलेज ग्रोजुएट की बेहतर आय की लाइफटाइम वैल्यू अब डिग्री प्राप्त करने के लिए आवश्यक व्यय को उचित नहीं ठहराता है. रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया कि देश के विश्वविद्यालय-शिक्षित युवाओं के बीच प्रदर्शन के प्रेशर और बढ़ती बेरोजगारी दर की मानवीय लागत का मुकाबला करने के लिए अधिक वोकेशनल शिक्षा की आवश्यकता है.
दक्षिण कोरियाई सरकार, स्कूल और उद्योग, स्विस सरकार और उद्योग की सहायता से अब मीस्टर स्कूल नामक वोकेशनल स्कूलों के एक नेटवर्क के साथ देश के एक बार मजबूत व्यावसायिक शिक्षा क्षेत्र को फिर से डिजाइन और आधुनिक बना रहे हैं.
मीस्टर स्कूलों का उद्देश्य देश में ऑटो मैकेनिक, प्लंबर, वेल्डर, बॉयलरमेकर, इलेक्ट्रीशियन, बढ़ई, मिलराइट, मशीनिस्ट और मशीन ऑपरेटर जैसे वोकेशन व्यवसायों कारोबरियों की कमी को कम करना है, क्योंकि इनमें से कई पद खाली रह जाते हैं. मीस्टर स्कूलों को दक्षिण कोरिया की व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली को नया रूप देने के लिए विकसित किया गया है ताकि युवाओं को उच्च-कुशल ट्रेडों और उच्च-कुशल विनिर्माण नौकरियों और अन्य क्षेत्रों में काम करने के लिए विशेष रूप से तैयार किया जा सके.
ये स्कूल जर्मन शैली के मीस्टर स्कूलों पर आधारित हैं, जहां युवाओं को कुशल व्यापार में महारत हासिल करने की शिक्षा दी जाती है. मीस्टर स्कूलों की स्थापना देश की उच्च युवा बेरोजगारी दर से निपटने के लिए की गई थी, क्योंकि लाखों युवा दक्षिण कोरियाई विश्वविद्यालय स्नातक व्यापार करने के बजाय बेकार बैठे रहते हैं, जबकि छोटे और मध्यम व्यवसायों के प्रबंधक कुशल व्यापार की कमी की शिकायत करते हैं.
मीस्टर स्कूलों का स्ट्रक्चर क्या है?
मीस्टर स्कूल एक ऐसा करिकूलम प्रदान करते हैं, जो व्यावहारिक प्रशिक्षण पर बहुत अधिक केंद्रित होता है. इसमें लगभग 70 प्रतिशत शिक्षा व्यावहारिक होती है, जबकि शेष 30 प्रतिशत मूलभूत शैक्षणिक विषयों के लिए समर्पित होती है. इसमें छात्रों को रोबोटिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, बायोटेक्नोलॉजी, ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग और अन्य जैसे उद्योगों में प्रशिक्षित किया जाता है.
ये स्कूल पाठ्यक्रम को डिजाइन और अपडेट करने के लिए उद्योगों के साथ मिलकर काम करते हैं. उद्योग पार्टनर मेंटरशिप, इंटर्नशिप और वास्तविक दुनिया के प्रोजेक्ट के अवसर प्रदान करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि छात्र प्रासंगिक कौशल के साथ स्नातक हों. मीस्टर स्कूलों में प्रवेश प्रतिस्पर्धी हैं. छात्रों का चयन व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए उनकी योग्यता के आधार पर किया जाता है, जिससे एक प्रेरित और सक्षम समूह सुनिश्चित होता है.
दक्षिण कोरिया के मीस्टर स्कूल कार्यक्रम की महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या हैं?
दक्षिण कोरियाई सरकार मीस्टर स्कूलों को वित्तीय और नीतिगत सहायता प्रदान करती है.इससे वह यह सुनिश्चित करती है उनके पास अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा, अच्छी तरह से प्रशिक्षित फैकल्टी और एक मजबूत उद्योग नेटवर्क हों. मीस्टर स्कूलों में छात्रों को भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए अक्सर छात्रवृत्ति और वजीफा मिलता है। व्यावसायिक शिक्षा की लागत को सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए बड़े पैमाने पर सब्सिडी दी जाती है.
यह कार्यक्रम वैश्विक व्यावसायिक प्रशिक्षण मानकों के मुकाबले खुद को बेंचमार्क करता है, पाठ्यक्रम में उन्नत तकनीकों और सर्वोत्तम प्रथाओं को एकीकृत करता है. मीस्टर स्नातकों को उनके संबंधित क्षेत्रों में मास्टर माना जाता है, जो व्यावसायिक शिक्षा के सामाजिक मूल्य को बढ़ाता है. उन्हें दक्षिण कोरिया की औद्योगिक सफलता में योगदान देने वाले के रूप में मनाया जाता है.
दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था पर मीस्टर स्कूल कार्यक्रम का क्या प्रभाव पड़ा है?
इस कार्यक्रम ने दक्षिण कोरिया को वैश्विक विनिर्माण और तकनीकी केंद्र में बदलने में योगदान दिया है. इसने उच्च तकनीक और उभरते उद्योगों के लिए कुशल श्रमिकों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की है. मीस्टर स्नातकों की रोजगार दर उच्च है, जो अक्सर 90 प्रतिशत से अधिक होती है. वे प्रतिष्ठित कंपनियों और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले क्षेत्रों में नौकरी हासिल करते हैं.
इस कार्यक्रम ने व्यावसायिक शिक्षा की स्थिति को सफलतापूर्वक ऊंचा किया है, जिससे यह छात्रों और परिवारों के लिए एक आकर्षक और सम्मानजनक विकल्प बन गया है. यह बाजार के रुझानों के साथ विकसित होता है, प्रशिक्षण के नए क्षेत्रों को जोड़ता है क्योंकि उद्योग हरित ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अन्य अत्याधुनिक तकनीकों की ओर बढ़ते हैं.
दक्षिण कोरिया का मीस्टर स्कूल कार्यक्रम इस बात का उदाहरण है कि व्यावसायिक शिक्षा कैसे आर्थिक विकास को आगे बढ़ा सकती है, व्यक्तिगत आजीविका को बढ़ा सकती है और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी कार्यबल का निर्माण कर सकती है. इसके सिद्धांत और अभ्यास भारत जैसे राष्ट्र के लिए एक मॉडल के रूप में काम करते हैं, क्योंकि यह अपनी बढ़ती औद्योगिक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इसी तरह की पहल को लागू करना चाहता है.
यह भी पढ़ें- भारत में बढ़ते कचरा समस्या के लिए है नए समाधान की आवश्यकता