शिमला: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में दो बार महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल चुके हिमाचल के युवा नेता अनुराग ठाकुर को इस बार कैबिनेट में जगह नहीं मिली है. लगातार पांचवीं जीत हासिल करने के बाद भी अनुराग ठाकुर सरकार का हिस्सा नहीं बन पाए हैं. रविवार को नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. साथ ही उनकी कैबिनेट के 72 मंत्रियों के चेहरे भी सामने आए, लेकिन उनमें युवा नेता अनुराग ठाकुर नहीं थे.
हिमाचल से संबंध रखने वाले और मौजूदा समय में गुजरात से राज्यसभा में पहुंचे जेपी नड्डा को पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट का हिस्सा बनाया है. जेपी नड्डा अध्यक्ष बनने से पहले भी नरेंद्र मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं. छोटे राज्य हिमाचल से दो सीटों पर प्रतिनिधित्व देना शायद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी कोर टीम को उचित न लगा हो, लेकिन इसके पीछे कुछ और कारण भी संभव हैं.
हिमाचल में उन्हीं कारणों की गुपचुप चर्चा है. कारण ये कि हमीरपुर संसदीय सीट के तहत आने वाले तीन निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की हार हुई है. हिमाचल में चार संसदीय सीटों के साथ ही विधानसभा की छह सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे. इनमें तीन सीटें हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के तहत आती हैं. इन तीन सीटों यथा सुजानपुर, कुटलैहड़ व गगरेट में भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा है. केवल एक सीट भाजपा के हिस्से आई और वो बड़सर सीट है. इसके अलावा कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से धर्मशाला सीट भाजपा टिकट पर लड़े सुधीर शर्मा की झोली में आई. अब सवाल ये है कि क्या अनुराग ठाकुर की कैबिनेट कुर्सी को तीन उपचुनाव की हार का दंश लगा?
कुटलैहड़ में कंवर समर्थकों को थी नाराजगी
राज्यसभा सीट पर क्रॉस वोटिंग के बाद कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन से परास्त हो गए थे. जिन छह विधायकों ने कांग्रेस से बागी होकर हर्ष महाजन को वोट डाला, वे बाद में भाजपा में शामिल हो गए. विधानसभा सदस्यता खोने के बाद छह नेता भाजपा टिकट पर उपचुनाव में खड़े हुए. उनमें से दो जीते और चार हार गए. जब उपचुनाव के लिए टिकट बंटे तो कुटलैहड़ सीट पर देवेंद्र भुट्टो को भाजपा प्रत्याशी बनाया गया. इस चयन से जयराम सरकार के पूर्व मंत्री और कुटलैहड़ से लड़ते आए वीरेंद्र कंवर के समर्थक सहमत नहीं थे. वीरेंद्र कंवर 2022 का चुनाव देवेंद्र भुट्टो से हारे थे. यहां गौर करने वाली बात है कि वीरेंद्र कंवर पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के प्रबल समर्थक हैं. खैर, किसी तरह वीरेंद्र कंवर व उनके साथियों को मनाया गया. यही हाल सुजानपुर का रहा. यहां से विगत में प्रेम कुमार धूमल को हराकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए राजेंद्र राणा को टिकट मिला. चर्चा ये है कि चुनाव प्रचार में सुजानपुर व कुटलैहड़ में धूमल समर्थकों ने मन से काम नहीं किया. कारण कुछ भी हो, कुटलैहड़, सुजानपुर व गगरेट सीट पर उपचुनाव में हार ने अनुराग ठाकुर की जीत का स्वाद फीका जरूर किया.
अपनी विनम्र छवि से जीते लखनपाल
वहीं, हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की एक अन्य सीट बड़सर से इंद्रदत्त लखनपाल को विजय हासिल हुई. लखनपाल भी राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोट कर कांग्रेस से बागी होकर भाजपा में आए थे. उनकी छवि सभी को साथ लेकर चलने वाली है. विनम्र स्वभाव के लखनपाल की जीत में उनकी छवि का योगदान है. चर्चा ये है कि यदि सुजानपुर, गगरेट व कुटलैहड़ में भी पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के समर्थक उसी तरह सक्रिय होते, जैसे अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में थे तो दृश्य दूसरा ही होता. यहां दिलचस्प तथ्य ये है कि चुनाव प्रचार में आए पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह व योगी आदित्यनाथ ने भी दावा किया था कि हिमाचल में भी कमल खिलेगा. अब हालात ये हुए कि छह में से सिर्फ दो ही सीटें भाजपा के हाथ लगी. इससे ऑपरेशन लोटस का सपना अधूरा रह गया.
अब अनुराग के लिए आगे क्या
ये सही है कि अनुराग ठाकुर ने टीम मोदी का हिस्सा रहते हुए अपने मंत्रालयों में संतोषजनक काम किया है और वे पांचवीं बार जीतने पर मंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन उन्हें इस बार मौका नहीं मिला है. ऐसे में चर्चा है कि क्या अनुराग ठाकुर को संगठन में कोई जिम्मेदारी मिलेगी? अनुराग ठाकुर विगत में भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. ठीक वैसे ही जैसे जेपी नड्डा भी युवा मोर्चा के मुखिया रहे हैं. अनुराग को संगठन में काम करने का अनुभव है. इस तरह युवा नेता के लिए संगठन में काम करने के दरवाजे खुले हैं. ये भी संभव है कि आने वाले समय में उनकी भूमिका क्षेत्रीय राजनीति में तय की जाए. वे हिमाचल में भी सक्रिय हो सकते हैं. अनुराग ठाकुर अपनी प्रतिक्रिया में कह चुके हैं कि वे पार्टी कार्यकर्ता के नाते अपना काम जारी रखेंगे. पार्टी अनुशासन को सर्वोपरि रख कर अनुराग ठाकुर ने ये संकेत दे दिए हैं कि उन्हें जो भी जिम्मेदारी मिलेगी, उसे बेहतर तरीके से निभाएंगे. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा के अनुसार भाजपा का काम करने का तरीका अलग है. यहां कभी भी किसी को भी मौका मिल सकता है. अनुराग पांचवीं बार जीते हैं, लेकिन मंत्री नहीं बन पाए. संभव है कि आने वाले दिनों में पार्टी में उनकी नई भूमिका तय की जाए.