आगरा : मुगलिया दौर में आगरा किले से ही हिंदुस्तान की हुकूमत चलती थी. आगरा किला विश्व धरोहर है. इसे देखने के लिए हर दिन हजारों की संख्या में देशी और विदेशी मेहमान आते हैं. आगरा किले पर राजपूतों, मुगलों, जाटों और मराठों समेत कई राजवंशों का कब्जा रहा है. मगर, उसी आगरा किले के इतिहास से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) अनजान है. एएसआई को पता नहीं है कि आगरा किला किसने बनवाया था ?. मामला एक साल पहले का है. अब आरटीआई में मिले एएसआई के इस जवाब का केंद्रीय सूचना आयोग ने भी समर्थन किया है.
जून 2023 में आरटीआई के जवाब में एएसआई के आगरा सर्किल के लोक सूचना अधिकारी महेश चंद्र मीणा ने जवाब दिया कि पूछे गए सवालों से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. ऐसी जानकारी समकालीन साहित्य में पाई जा सकती है. दरअसल, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करने वाले एएसआई के पास पुरानी धरोहरों की सभी जानकारी होती है.
मई 2023 में मांगी थी आरटीआई में जानकारी : आगरा के एमएम गेट थाना क्षेत्र स्थित कालीबाड़ी निवासी डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य ने बीती 27 मई को सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत आगरा के किले के बारे में तीन सवाल बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी.
-आगरा का किला किसने बनवाया ये सवाल पूछा गया था ?
-सम्राट अकबर ने आगरा के किले में क्या बदलाव किए ?
-आगरा के किले के निर्माण से पहले वहां पर किए गए कार्य क्या थे ?
जानकारी से संतुष्ट नहीं : डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य ने बताया कि आगरा किला विश्व धरोहर स्मारक है. जो ऐतिहासिक स्मारक है. इसकी हर जानकारी एएसआई के पास होनी चाहिए. आरटीआई में जो ये जबाव दिया हे. जो समझ से बाहर है. मैंने एएसआई की जानकारी पर अपील की थी. जिस पर अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. राजकुमार पटेल ने भी पूर्व में दिए गए जबाव का समर्थन किया. इसके साथ मैंने केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की तो इसकी 25 नवंबर को सुनवाई हुई. जिसके बाद बुधवार को आदेश जारी किया तो उसमें भी एएसआई के जबाव का समर्थन किया. इस बारे में समकालीन इतिहास पढ़कर डिटेल रिपोर्ट बनानी होगी. विश्व धरोहर के इतिहास और संरक्षण के जानकारी की जिम्मेदारी की है. उसे ही इतिहास नहीं पता है. इसलिए, ये मामला कोर्ट लेकर जाऊंगा.
11वीं सदी में था किले का वजूद : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि 11वीं सदी में आगरा में एक किला का अस्तित्व था. यह सिकरवार वंश के राजपूतों के अधिकार में था. ये मिट्टी का बना एक किला था. सन 1089 से 1114 तक खिलजी के सुल्तानों के आगरा पर लगातार आक्रमण किए. इसमें ये किला ध्वस्त हो गया था. विदेशी इतिहासकार खौड़ा मीर ने अपनी किताब ' हवीवस सियारा' में लिखा है कि सन 1058 से 1059 तक इस किले पर अपना अधिकार रखा था. सन 1475 में बादल सिंह ने इस किले को पुन: बनाया. इससे ही इसका नाम बादलगढ़ हो गया. सन 1487 में सिकंदर लोदी ने इसे कब्जे में लिया. जुलाई 1504 में आगरा में आए भूकंप में बादलगढ़ किला में नुकसान हुआ था. इस पर सिकंदर लोदी ने फिर सन 1504 में यहां पर जीर्णोद्धार कराया. सिकंदर लोदी ने तब आगरा को अपनी राजधानी बनाया. सिकंदर लोदी की मौत के बाद उसका बेटा इब्राहिम लोदी ने सत्ता संभाली.
अकबर ने लाल पत्थर से किया था पुनर्निर्मित : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' के अनुसार मैंने किताब 'तवारीख-ए-आगरा' में आगरा किला का पूरा इतिहास लिखा है. सन 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में मुगल वंश के संस्थापक बाबर की सेना से लड़ते हुए इब्राहिम लोदी मारा गया. इसमें लोदीवंश का भारत में अंत हुआ और आगरा का बादलगढ़ तब बाबर के अधिकार क्षेत्र में आया. बादलगढ़ से ही मुगलों को कोहिनूर हीरा मिला था. सन 1530 में मुगल बादशाह हुमायूं ने आगरा के बादलगढ़ किला में ताज पहना था. हालांकि सन 1539 में चौसा की लड़ाई में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हरा कर बादलगढ़ किला पर अधिकार किया. सन 1545 में शेरशाह की मौत के बाद भी सन 1556 तक बादलगढ़ किला पर सूरी राजवंश का अधिकार रहा. पानीपत की दूसरी लड़ाई में अकबर के सेनापति बैरम खान ने हेमू को हरा दिया और बादलगढ़ किला तक पर कब्जा कर लिया. अकबर ने तब आगरा किला को अपनी राजधानी बनाया. अकबर ने बादलगढ़ किला के वर्तमान स्वरूप को लाल बलुआ पत्थर के उपयोग से पुनर्निर्मित किया था.