वाराणसी: Navratri 2024 : भारतीय हिंदी नव वर्ष के प्रथम दिन यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक 9 दिन के नवरात्र की मान्यता मानी गई है. इसे चैत्र नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 9 अप्रैल को और रामनवमी 17 अप्रैल को मनाई जाएगी.
इसे लेकर संशय की स्थिति इसलिए भी नहीं है, क्योंकि 8 तारीख को लग रही प्रतिपदा तिथि 9 तारीख को उदया तिथि के मान के साथ उपलब्ध रहेगी. इस वजह से 9 अप्रैल से ही नवरात्र की शुरुआत होगी. इतना ही नहीं कलश स्थापना को लेकर भी अभिजीत मुहूर्त में ही कलश का पूजन और स्थापना उचित है.
क्योंकि, वैधृति पुत्र नाशिनी योग में कलश स्थापना करना सही नहीं होगा. इसलिए समय का विशेष ध्यान रखें और भूलकर भी गलती ना करें. निर्धारित वक्त पर ही कलश स्थापना करें.
काशी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य व काशी विद्वत परिषद के पूर्व महामंत्री रह चुके पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 9 अप्रैल को लग रही है. प्रतिपदा 8 अप्रैल को रात्रि 11:55 पर लगेगी, जो 9 अप्रैल को रात्रि 9:43 तक रहेगी.
उदया तिथि के अनुसार 9 अप्रैल को ही नवरात्र की शुरुआत मानी जाएगी. इस बार नवरात्र में शुभ फलदायक योग का संयोग बन रहा है. इसमें सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, पुष्कर योग, नक्षत्र राज पुष्प योग शामिल है, जो शुभ कार्यों के लिए अति उत्तम मुहुर्त माने जाते हैं. नवरात्रि तो वैसे भी समस्त शुभ कार्यों के लिए अति शुभ मुहूर्त है, लेकिन विविध योग के संयोग से या और भी विशिष्ट हो जाएगा.
पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि शुभ योग के साथ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा में प्रातः काल अशुभ योग वैधृति मिल भी रहा है. इसलिए घट स्थापना अभिजीत मुहूर्त में ही किया जाएगा, जो दिन में 11:34 से 12:24 तक रहेगा. शास्त्रों में वैधृति योग में घट स्थापना को निषेध बताया गया है.
शास्त्र सम्मत है कि वैधृति पुत्र नाशिनी योग माना जाता है, अर्थात इन योग में किया गया घट स्थापना पुत्र के लिए नाशक हो सकता है. इसलिए इस समय भूलकर भी ऐसी गलती ना करें और निर्धारित वक्त में अभिजीत मुहूर्त मिलने पर ही घट स्थापना का कार्य करें.
पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि में प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नान ध्यान करने के बाद पंचांग में नव संवत्सर का फलादेश श्रवण करने के बाद अपने घर के छत पर ध्वजा, पताका, तोरण, वंदनवार आदि को सुशोभित करना चाहिए, क्योंकि यह सनातन धर्म का नववर्ष शुरू होता है.
इसलिए यह कार्य आवश्यक है. इसके बाद नवरात्र व्रत का संकल्प करने के बाद गणपति और मातृका पूजन करना चाहिए. लकड़ी के पटरे पर गेरू पानी में घोलकर नौ देवियों की आकृतियां बनाने के बाद नौ देवियों या सिंहवाहिनी मां दुर्गा की प्रतिमा को पटरे पर विराजमान करना चाहिए.
पीली मिट्टी की डली पर कलावा लपेटकर गणेश जी के रूप में कलश पर रखना चाहिए. जौ या गेहूं पात्र में रखकर वरुण पूजन करने के बाद मां जगदंबा का आवाहन करना चाहिए. नवग्रह पूजन षोडशोपचार पूजन करने के पश्चात मां की स्थापना करके 9 दिन तक उनकी सेवा करनी चाहिए.
पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि नवरात्रि की शुरुआत के बाद महानिशा पूजन सप्तमी युक्त अष्टमी के मध्य रात्रि में किया जाता है. इसे निशिथ व्यापिनी तिथि कहते हैं. 15 और 16 अप्रैल की मध्य रात्रि अष्टमी योग में महानिशा व बलिदान आदि का कार्य संपन्न होगा.
महाअष्टमी व्रत 16 अप्रैल को किया जाएगा, नवमी तिथि में 17 अप्रैल को रामनवमी का व्रत होगा. साथ ही नवरात्र का हवन व अनुष्ठान भी इसी दिन संपन्न होगा. चढ़ते उतरते यानी पहले और अंतिम दिन व्रत रखने वाले लोग महाअष्टमी व्रत का पारण नवमी तिथि 17 अप्रैल को करेंगे नवरात्र व्रत का पारण 18 अप्रैल को होगा.
ये भी पढ़ेंः चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी तिथि, शुभ कार्यों से करें परहेज व करें ये काम